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सरकार, सीबीआई जांच का साहस दिखाएं

दाता राम चमोली 
धर्मनगरी हरिद्वार में भूमि हस्तांतरण में जबर्दस्त धांधलियां हुईं। सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे और अवैध निर्माण करवाने में राजनेता, नौकरशाह, भूमाफिया से लेकर साधु-संतों तक की मिलीभगत रही। कुंभ में धन की बंदरबांट सुर्खियों में रही। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को चाहिए कि पिछले 25 वर्षों के दौरान हुए इस तरह के तमाम मामलों की सीबीआई जांच करवाने का साहस दिखाएं। भले ही इसमें उनकी पार्टी का कोई नेता ही क्यों न लपेटे में आ जाए।

अभी हाल में 14 अप्रैल को बैसाखी के दिन हरिद्वार में कुछ स्थानीय नेताओं द्वारा सरकारी भूमि पर झंडा गाड़ दिया गया। बहुत संभव है कि जल्द ही वहां निर्माण कार्य भी शुरू हो जाएगा। लेकिन यदि शासन-प्रशासन पूर्व की भांति आंख मूंदकर रह जाए तो इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं होगी। खासकर तब जब जनता ने प्रधानमंत्री मोदी पर भरोसा कर राज्य में बंपर बहुमत से एक ऐसी सरकार चुनकर भेजी है जिसे कठोर फैसले लेने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। धर्म नगरी में अवैध निर्माणों से सिकुड़ चुकी कुंभ भूमि को मुक्त कराने का साहस यह सरकार बेहिचक दिखा सकती है। वह देख सकती है कि आखिर ऋषिकेश से लेकर कनखल तक गंगा तट पर 500 मीटर के दायरे में अवैध निर्माण क्यों और कैसे हो गए? कुंभ मेला क्षेत्र में भूमि पर निरंतर आश्रम और भव्य भवन बनते रहे तो भविष्य में कुंभ मेले का संचालन कहां होगा?

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सोचना चाहिए कि प्रधानमंत्री मोदी गंगा की सफाई को लेकर चिंतित हैं। पूर्व में माननीय नैनीताल हाईकोर्ट ने भी उन 180 उद्योगों और धर्मशालाओं को बंद करने का आदेश दिया था जिनका प्रदूषण एवं सीवर सीधे गंगा में समाता है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को गंगा के किनारे शौचालयों के निर्माण का आदेश भी दिया था। करीब एक साल पहले मुंबई के बोहरा समाज ने यहां गंगा तट पर दोनों ओर आधुनिक शौचालयों के निर्माण को लेकर प्रधानमंत्री मोदी के सम्मुख उत्साह दिखाया था। भाजपा गंगा प्रकोष्ठ के संयोजक रहे त्रिवेंद्र रावत को सोचना होगा कि केंद्रीय गंगा उद्धार मंत्रालय और हरिद्वार विकास प्राधिकरण ने इस नेक काम में दिलचस्पी क्यों नहीं दिखाई होगी? ऐसे में गंगा को स्वच्छ और निर्मल बनाने का सपना कितना साकार हो पाएगा खासकर तब राज्य में मातृसदन के साधुओं के निरंतर संघर्ष और बलिदान के बावजूद गंगा अंधाधुंध अवैध खनन से त्राहिमाम करती आ रही है।

यदि केंद्रीय गंगा उद्धार मंत्रालय और राज्य सरकार वास्तव में गंगा के प्रति गंभीर है तो गंगा में सीवर बहाने वालों को सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए बाध्य किया जाए। गंगा के पानी की गुणवत्ता की जांच के लिए हर चार-पांच किलोमीटर के बीच डिजिटल एनालाइजर लगाए जाएं। विद्युत शवदाह गृह भी बनाए जाएं। दुखद है कि गंगा सभा जैसी संस्थाएं श्रद्धालुओं से पर्ची काटने को तो आतुर रहती हैं लेकिन यह देखने वाला कोई नहीं कि गंगा किनारे उनके लिए शौचालयों और पेयजल की भी व्यवस्था होनी चाहिए। लिहाजा पंड़ों, पुजारियों, अखाड़ा परिषद, मंदिरों- मठों को लेकर एक ऐसा प्रबंध निकाय बनाया जाना चाहिए जो हरिद्वार के तमाम मंदिरों या तीर्थ स्थलों की व्यवस्था सुधारे। ध्यान रहे कि गंगा के आस-पास सात्विक वातावरण बना रहे, इसके लिए पंड़े वहां के बजाए ज्वालापुर में रहते थे। लेकिन आज धर्मशालाओं में तीर्थ यात्रियों को ठहराने के बजाए इनका व्यावसायिक इस्तेमाल हो रहा है।

मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत को चाहिए कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तराखण्ड की जनता की भावनाओं का सम्मान करते हुए हरिद्वार में पिछले 25 साल के दौरान सरकारी जमीनों पर हुए अवैध कब्जों और अवैध निर्माणों की जांच करवाएं। यहां सरकारी भूमि को औने-पौने दामों में बेचे जाने की खबरें सुर्खियों में रही हैं। भूमि हड़पने में कई तरह से धांधलियां हुईं। मसलन कृषि भूमि का लैंडयूज बदले बिना सीधे इसका व्यावसायिक गतिविधियों में उपयोग किया गया। औद्योगिक इकाइयों ने स्टांप ड्यूटी बचाने के लिए बैक डेट में रजिस्ट्री करवाकर सरकार को लाखों-करोड़ों के राजस्व की चपत लगाई। इसके अलावा सत्ता में बैठे राजनेताओं ने अपने-अपने आकाओं या रहनुमाओं को खुश करने के लिए उन्हें कौड़ियों के भाव जमीनें दी। इन तमाम मामलों में राजनताओं, सरकारी अधिकारियों और भूमाफिया की मिली भगत रही। मुख्यमंत्री पिछले 25 साल के इन तमाम मामलों और कुंभ में हुए घोटालों के आरोपों की यदि सीबीआई जांच कराने का संकल्प लें तो राज्य के लोग इसका तहेदिल से स्वागत करेंगे।

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