फ्यूँलड़िया गीत के मूल रचियता को भी मिले सम्मान

वेद विलास उनियाल
उत्तराखंड में इन दिनों फ्यूलडि़यां गीत काफी चर्चित है। हर उत्सवी माहौल में .यह गीत सुना जा रहा है। इसकी रिदम पर लोग थिरक रहे हैं। लेकिन क्या हम इस गीत के असली रचियता शिप प्रसाद पोखरियालजी को उनका सम्मान दे पा रहे हैं। कितना सुंदर गीत और कितना माधुर्य भरी धुन बनाई थी उन्होंने ।एक ज़माने में रेडियो पर इस गीत की बडी फरमाइश होती थी। यह प्रेम सौंदर्य का गीत है। फ्यूलाडी त्वे देखिक औंदी यमन मा ( साथी तुझे देख कर याद आता है, जैसे तरा मेरा साथ पिछले जन्म में भी था। ) शिवप्रसादजी इस गीत को बहुत भावुक होकर गाते थे।
आज के दौर में नए प्रतिभावान कलाकार पुराने लोकप्रिय गीतों को नई धुन या फ्यूजन में ढाल रहे हैं। नए साजों के साथ यह प्रयोग लोगों को पसंद भी आ रहा है। इस बहाने नई पीढी पुराने गीतों से परिचित हो रही है। जो गीत अपने आप में साहित्य ही था। इस फ्यूजन और नए कलेवर में फ्यूलाडी, गाढो गुलबंद, घुघुती घुरोण लगी कन बजे मुरूली जैसे गीत फिर से सुनाई दे रहे हैं।
फ्यूजन या नया संगीत पर किसी गाने को लाया जा सकता है। लेकिन हम उन पुराने गीतों और उनके रचियता को पूरा आदर दें। केशव अनुरागी, शिव प्रसाद, जीत सिंह नेगी नरेंद्र सिंह नेगी, चंद्र सिंह राही, बाबू गोपाल गोस्वामी जैसे रचियता और साधकों का गीत संगीत अनमोल है।
आप बेशक नई धुनों को लाकर पोपुलर होइए लेकिन उन गीतों का पहला श्रेय उनके मूल रचियता को ही मिलना चाहिए। जैसे कि फ्यूलडिया गीत के लिए पहला श्रेय शिवप्रसाद पोखरियालजी को मिलना चाहिए। यह बडप्पन किसी और को नहीं फ्यूजन करने वाले, वीडियो एलबम बनाने वाले लोगो को दिखाना चाहिए। नया सृजन करने में बहुत साधना चाहिए। फ्यूजन के लिए एक प्लेटफार्म पहले से तैयार होता है। इसलिए नए कलाकारों को किसी फ्यूजन गीत की प्रस्तुति से पहले सम्मान के साथ गीत संगीत के मूल रचियता का नाम जरूर लेना चाहिए।
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