विकास के पप्पा,ये टीवीवालों को नहीं अपने बेटे को समझाओ

इन्द्रेश मैखुरी
चंडीगढ़ की सड़कों पर आधी रात में जो विकास अपने दोस्तों के साथ एक लड़की के पीछे गाडी दौड़ा रहा था,क्या ये वो ही “सबका साथ,सबका विकास” के नारे वाला विकास था? बड़ा खतरनाक है, भाई लोगो तुम्हारा विकास ! जिनका ये विकास है,वो पूछ रहे हैं कि लड़की इतनी रात को सड़क पर क्यूँ थी।अरे तुम ये बताओ कि तुम्हारा विकास,क्यूँ था,इतनी रात में सड़क पर? क्या यही चौकीदारी करने सड़क पर था कि कोई लड़की इतनी रात में सड़क पर तो नहीं है ! और अगर रात में कोई लड़की सड़क पर होगी तो वो उसे उठा लेगा और जो चाहे करेगा। इसलिए क्यूंकि उसके बाप और बाप के माईबापों का राज है?अचानक दो दिन बाद,पता चल रहा है कि विकास के पप्पा की भी ‘अंतरात्मा’ जाग उठी है।
ट्यूबलाइट हो चली है,अंतरात्मा भी,बड़ी देर तक प्डिंग-प्डिंग करने के बाद जागती है।तो जागी हुई अंतरात्मा के साथ विकास के पप्पा फरमाते हैं कि जिस लडकी को उनका चश्मे चिराग उठा लेना चाहता है,वो तो उनकी बेटी समान है।विकास के पप्पा,ये टीवीवालों को नहीं अपने बेटे को समझाओ।आगे विकास के पप्पा ने कहा कि इस मामले में कानून अपना काम करेगा।कानून का तो महाशय,आपने तभी काम तमाम कर दिया,जब लड़की की शिकायत को दर्ज न होने देने के लिए आपकी पार्टी के मंत्री-संतरियों से लेकर बडभय्या-छुटभय्या तक पुलिस पर दबाव डालते रहे कि “ज़रा देख लो”। विकास के पप्पा की दो दिन बाद जागी अंतरात्मा से एक फ़िल्मी दृश्य याद आ गया।
एक फिल्म में अमरीश पुरी,राजनेता का खल किरदार कर रहे थे। इस खल किरदार का पुत्र भी विकास मार्का कारनामा कर देता है।पहले तो एड़ी-चोटी का जोर लगाया जाता है कि खल किरदार के पुत्र को बचा लिया जाए। जब बचाना मुमकिन नहीं हो पाता तो वकीलों की सलाह पर अमरीश पुरी का पात्र, अपने फ़िल्मी पुत्र को पीटते हुए अदालत तक ले जाता है ताकि जनता में उसकी मसीहाई छवि बनी रहे।दो दिन बाद मुंह खोलने में, विकास के पप्पा ने थोड़ा अमरीश पुरी के खल पात्र के निकट जाने की कोशिश की।लेकिन इसमें भी उन्होंने ये नहीं बताया कि उन्हीं के प्रतापी वंश के कुलदीप नामधारी कुलदीपक पर जिस लड़की के अपहरण करने का आरोप है,उस लड़की को वे अपनी बेटी समान समझते हैं कि नहीं !
हरियाणा के मुख्यमंत्री कहते हैं कि बेटे के कृत्य की सजा बाप को नहीं दी जा सकती।मुख्यमंत्री जी, यह सबक तो उन्हें देना चाहिए था,जो थाने में बेटे की रिपोर्ट न दर्ज हो,इसलिए पूरा जोर लगाकर खड़े हो गए।यदि मुख्यमंत्री जी,उन्हें समझा पाते कि भाई,इसके पक्ष में मत खड़े होवो,ये अपराधी है।हमारी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष इसका बाप है,ये नहीं। तो तर्क स्वीकार्य होता। लेकिन हरियाणा के तमाम मंत्री और बड़े नेता तो सिर्फ इसीलिए थाने वालों पर दबाव बनाने मैदान में उतर पड़े कि आरोप बारला साहब के चश्मे चिराग पर लगा है।
जब वर्तमान हुकूमत ने बेटी पढाओ के साथ,बेटी बचाओ का नारा दिया तो यह मालूम न था कि उसमें यह भी अंतरनिहित है कि हमारे छिछोरे बेटों से बचा सकते हो तो बेटी बचा लो। और चुनौती, सिर्फ सड़क पर ही छिछोरों से बेटी बचाने की नहीं है बल्कि सड़क पर बचा भी लो तो ट्विटर पर,फेसबुक पर,व्हाट्स एप्प पर बैठे छिछोरों से भी बचाने की है।चंडीगढ़ का मामला कोई एकलौता थोड़े है।पहला भी नहीं,अंतिम भी नहीं। चंडीगढ़ की चर्चा थमी भी न थी कि छत्तीसगढ़ में आदिवासी लड़कियों के साथ,देश रक्षा की जिम्मेदारी सँभालने वालों द्वारा ऐसा ही वाकया अंजाम देने की खबर चर्चा में आ गयी।जाने और कितनी बेटियों की चीखें और कितनी मोमबत्तियां लगेंगी, इनका जमीर रौशन करने में !