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नई शिक्षा नीति में हो योग और अध्यात्म का समावेश

देश के युवाओं को शारीरिक,मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से बलशाली बनाने के लिए है यह समय की आवश्यकता
कमल किशोर डुकलान
अगर किसी भी राष्ट्र के निर्माण का रास्ता शिक्षा के गलियारे से होकर गुजरेगा तो उस राष्ट्र की शिक्षा व्यवस्था सक्षम होगी और वहां का राष्ट्र मजबूती के साथ आगे बढेगा। अगर हम भारत की शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो आज कल भारत में एक बात आम होने लगी है कि भारतीय शिक्षा अपने परिवेशीय संस्कृति से दूर होती जा रही है। वर्तमान समय में जो अपनी शिक्षा-दीक्षा पूर्ण कर लेते हैं, वह मानो एक बड़ी यांत्रिक व्यवस्था के उपकरण के रूप में ढल जाते है। आज की इस प्रतिस्पर्धा की दुनिया में उनका उद्देश्य सफलता, उपलब्धि और भौतिक प्रगति के मार्ग पर आगे बढ़ने तक ही सीमित रह जाता है।
आज की प्रचलित शिक्षा मनुष्य को स्वचालित रोबोट बनाने पर जोर देती है। किन्तु वर्तमान शिक्षा से निकलने वाले होनहार युवाओं की स्थिति विचित्र देखने को मिल रही है। जिस सीढ़ी के सहारे चढ़कर वे ऊपर पहुंचते है उसी सीढ़ी से ही आगे जाकर वे बेझिझक अलग हो जाते हैं।
आज शिक्षा एक खास तरह का व्यापार बनती जा रही है। आज शिक्षा में विद्यालयों के साथ समाज का रिश्ता नहीं बन रहा है और समाज की जनभागीदारी बहुत ही सीमित हो गई है। वर्तमान की शिक्षा व्यवस्था आधुनिकता और हमारी प्राचीन ज्ञान परंपरा के बीच आज तक सामंजस्य नहीं बना पा रही है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमनें प्रगति तो बहुत की है, परंतु इन सबके बीच इंसान खो सा गया है। आज बुद्ध, महावीर, गुरुनानक, स्वामी विवेकानंद सहित हमारे पूर्वजों के विचार ही लुप्त हैं। हम किधर जा रहे हैं? आज यह एक बेहद विचारणीय प्रश्न बन गया है।
आज देशी विदेशी अनुसंधान से जो आंकड़े सामने आ रहे हैं उनसे साफ है कि वैश्विक भाग-दौड़ दौर की जिंदगी ने बच्चों की आंखों से नींद गायब कर दी है। बच्चे अब पहले की तुलना में ज्यादा जिद्दी, निर्मम, आक्रमक और एकल होते जा रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार देश के 42 फ़ीसदी बच्चे अनिद्रा के शिकार हो रहे हैं। जिसका दुष्परिणाम यह है कि नींद में डर जाना, चलना, सोते-सोते बातें करना, रोना और डरावने सपने देखने जैसी समस्याएं उनकी परेशान का सबक बन रही है। एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि भारतीय बच्चे यूरोपीय बच्चों की तुलना में कम नींद ले पा रहे हैं जिसका परिणाम है कि उनका स्वाभाविक क्रमबद्ध विकास बाधित हो रहा है और खेलने खाने की उम्र में ही उनका बचपन से ही अनेकों विसंगतियों की ओर जा रहा है।
इन सभी समस्याओं का कारण कहीं ना कहीं हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था ही है। अगर हम प्राचीन काल की शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो हमारे यहां गुरुकुल आश्रम पद्धति एवं शिक्षा केन्द्र मौजूद थे। जिसमें योग एवं अध्यात्म का शिक्षा व्यवस्था में समावेश था। इसमें कोई शक नहीं कि प्राचीन काल में योग एवं अध्यात्म के बल पर जो शिक्षा छात्रों दी जाती थी उसी के बल पर कभी विश्व गुरु हुआ हुआ करता था।
यहां ध्यान देने वाली बात है कि अंग्रेजी शासन में अगर सबसे ज्यादा किसी क्षेत्र पर प्रहार हुआ तो वह क्षेत्र हमारा शिक्षा का क्षेत्र ही है। मुगलों के शासन के बाद गुलामी के शासनकाल में अंग्रेज अधिकारियों ने प्रारंभिक शिक्षा के संबंध में जो आख्या बनाई वह आश्चर्यजनक रूप से इस स्थिति को प्रदर्शित करती है कि अंग्रेजों की दृष्टि में भारत की शिक्षा हमारी संस्कृति से जुड़ी थी। जिसे धीरे धीरे अंग्रेजी शासकों ने यहां की शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त किया और भारतीय संस्कृति को शिक्षा व्यवस्था से अलग करने का काम किया।
आजादी के सात दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद जहां देश में अनेकों राजनीतिक दलों की सरकारें आई और चली गई, परंतु देश में लम्बे समय तक राज करने वाली सरकारों ने भारतीय संस्कृति के अनुरूप यहां की शिक्षा व्यवस्था में उस तरह से बदलाव नहीं कर पाई जिससे कि हम अपनी पुरानी शिक्षा व्यवस्था की ओर रुक कर पाते। इन सबका ही परिणाम है कि आज हम भले ही अपने आप को स्वतंत्र महसूस करते हो, परन्तु कहीं न कहीं मानसिक रूप से हम आज भी अंग्रेजों के अधीन हैं।
मोदी जी के नेतृत्व में अभी हाल ही में केन्द्रीय कैबिनेट में नई शिक्षा नीति का ड्राप्ट को मंजूरी मिलने के बाद शायद अब समय आ चुका है हम अपनी इस नई शिक्षा व्यवस्था में एक बार पुनः गंभीरता के साथ विचार करते हुए इसमें योग अध्यात्म को सम्मिलित करें।
आज देश के युवाओं को शारीरिक,मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से बलशाली बनने की आवश्यकता है। महाभारत काल में भीम,दुर्योधन, बलराम हम सबके सामने उदहारण हैं। भागवत गीता में तो भगवान श्री कृष्ण को योगेश्वर ही कहां गया है। इसका केवल और केवल एक ही तरीका है कि हमारी नई शिक्षा व्यवस्था में योग एवं अध्यात्म शिक्षा का अभिन्न अंग बनें, ताकि हम सभी सामूहिक रुप से इस देश को पुनः विश्वरूप के रूप में स्थापित कर सकें।
यहां ध्यान देने वाली बात यह भी है कि पिछले 6 सालों में देश में आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है जिसने देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी योग को पुनः स्थापित करने में एक बड़ी भूमिका अदा की है। पूरे विश्व में 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाया जाना इसका सबसे बड़ा उदाहरण है।
इस लेख के माध्यम से मैं सरकार का ध्यान इस तरफ अग्रेषित करना चाहता हूं कि अगर हमें इस देश को पुनः विश्व गुरु बनाना है तो कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में योग एवं अध्यात्म को शिक्षा व्यवस्था का प्रमुख हिस्सा बनाना पड़ेगा। तभी हम सभी का भारत के विश्व गुरु बनने का सपना साकार होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि इस निर्णय का हिंदुस्तान की 137 करोड़ जनता पूरी गंभीरता के साथ स्वागत करेगी।