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प्रदेश में शराब को सस्ता करने पर हंगामा क्यों है बरपा ?

जिला स्तर पर और अधिक शक्तियां दे कर सचिवालय का बोझ कम किया जाय

अल्प अवधि के खनन के मामले में जिलाधीश को ताक़त दिया जाना भी बेहत्तर निर्णय

शराब की तस्करी की बहती नदी में आबकारी विभाग और पुलिस महखमा हर साल करोड़ो के गोते लगाता रहा

अनिल बहुगुणा 

पौड़ी : प्रदेश में शराब को सस्ता करने पर हंगामा क्यों बरपा है..ये समझ से परे है। ये तो तय है कि प्रदेश के राजस्व की बढ़ोत्तरी के लिये आबकारी और खनन को शुरू से ही सबसे बड़ा मान कर चला गया। राज्य गठन के समय से ही ये मान कर चला गया कि प्रदेश को सबसे अधिक राजस्व इनसे ही मिलेगा। राजस्व देने में तीसरे नंबर पर पर्यटन को मान कर सरकारें चली। सरकारों को ये लत अंतरिम सरकार से ही पड़ गई थी।

आबकारी के मामले में सरकार राजस्व कमाने की कोशिश में तो रही पर हमेशा ही फेल रही,कारण यहाँ की शराब का महंगी होना परिणाम ये हुआ कि शराब तस्करों के लिये उत्तराखण्ड स्वर्ग हो गया। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा से उत्तराखंड में शराब की तस्करी अपने चरम पर पहुँच गई। शराब की इस तस्करी की बहती नदी में आबकारी विभाग और पुलिस महखमा हर साल करोड़ो के गोते लगाता रहा हासिल में सरकार का आबकारी विभाग अपने राजस्व के लक्ष्य से दूर हो गया और इस ब्यापार में लगे स्थानीय युवक दिवालिया हो गये।

जहाँ तक मदिरालय(बार) का सवाल है उसको भी नेताओ और आबकारी अधिकारियों के साथ बाबुओं ने भी अपनी कमाई का जरिया बना लिया था। एक साल के मदिरालय के परमिट के लिये आदम को राजधानी के चक्कर लगाने पड़ते थे,और इसको हासिल करने के लिये उसे निचोड़ लिया जाता था। अब काबिनो के नये निर्णय के बाद जिला स्तर पर ही ये परमिट हासिल हो जायेगा.. तो परेशानी नहीं होनी चाहिये। अल्प अवधि के खनन के मामले में जिलाधीश को ताक़त दिया जाना भी बेहत्तर निर्णय है, बशर्ते दरिया में वैज्ञानिक तरीके से और दरिया के बीच में ही सफ़ाई की जाय। इसके लिये जिलाधिकारियों को सचेत रहना होगा ही।

जहाँ तक सफ़र के लिये अब अधिक चुकता करने का सवाल है..ये निर्णय कुछ हद तक ग़लत है। सरकार को अपने प्रदेश में बेहत्तर और सस्ती परिवहन सेवा सुलभ करानी चाहिये, इस पर पुनर्विचार किया ही जाना चाहिये।

हर काम के लिये नकली राजधानी की दौड़ माफ़िक भी नहीं थी जो काम जिला स्तर से हो सकते है उसे जिले से ही हो जाना चाहिये। सरकार को चाहिये कि जिला स्तर पर और अधिक शक्तियां दे कर सचिवालय का बोझ कम किया जाय।@ त्रिवेंद्र सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए। अब जिला अधिकारी के साथ कमिश्नरी की शक्तियों को भी वापस किया जाना चाहिये ताकि पहाड़ो की ग़रीब जनता को राहत मिल सके और ब्यर्थ देहरादूनि दौड़ से जनता बचे।

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