ENTERTAINMENT

होली के इस गीत पर नरेंद्र सिंह नेगी के इस गीत पर मचेगा धमाल !

“पिचकारी छरररर केन मारी छरररर , तन मन भिग़ेगे रूझेगे हो हो हो होरी एगे “

देहरादून : लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी के हार्ट अटैक से उबरने के बाद उनकी  मंच पर पहले ही वापसी कर चुकी हैं, लेकिन अब अपने नए गीत के जरिये वह प्रशंसकों को बीच फिर से धमाल मचाने को तैयार हैं। नेगी जी को होली का त्यौहार सबसे ज्यादा भाता रहा है इस अवसर पर वे बीते सालों तक जमकर धमाल मचाया करते रहे हैं। बीमारी से उबरने के बाद इस बार होली पर नेगीदा का नया गीत वीडियो के रूप में सुनने-देखने को जनता के सामने आ रहा है । उनके होली गीत की शूटिंग हाल ही में गोपेश्वर के मंदिर में हुई है। इस गीत की एडिटिंग का काम तेजी से चल रहा है। संभवत: होली से पहले ये गीत रिलीज हो जाएगा। होली की मस्ती से सरोबार इस गीत के बोल होली ऐ ग्ये छा. रा, रा..है काफी मनमोहक तरीके से संगीतबद्ध किया गया है। चमोली जिले के विभिन्न इलाकों में गीत को शूट किया गया है। नेगी जी के मित्र संजय नौडियाल ने बताया कि मुझे भी मोका दिया तो नरेंद्र सिंह नेगी जी के साथ होरी का ऐसा रंग जमा कि मज़ा आ गया ।

पिछले साल आए हार्ट अटैक के बाद नेगीदा को कई दिन अस्पताल में गुजारने पड़े थे। उसके बाद उन्होंने मंचों पर वापसी तो की, लेकिन स्वास्थ्य कारणों के चलते एकाधबार ही मंच पर गीत गाया। अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं और उन्होने खुद ही शूटिंग में हिस्सा लिया है। इस गीत के वीडियों का निर्देशन उनके बेटे कविलास नेगी ने गोविंद सिंह नेगी के साथ मिलकर किया है। नेगीदा का आखिरी वीडियो एलबम अब कथगा खैल्यो सात साल पहले रिलीज हुआ था।

नरेंद्र सिंह नेगी के बेटे कविलाश नेगी ने बताया कि गोपेश्वर मंदिर परिसर में सामूहिक रूप से जिस तरह से होली खेली जाती है। उसकी बानगी नेगीजी को लोगों ने फोटो और वीडियो भेज कर बतायी थी। साथ ही कई प्रत्यक्षदर्शियों ने भी बताया था कि यहां पर सामूहिक तौर पर होली खेली जाती है। इसी से प्रेरित होकर नेगी ने होली के वीडियो को बनाने का निर्णय लिया। सरर्र पिचकारी… कैन मारी होली गीत का मुखड़ा है। होली वीडियो शूटिंग में स्थानीय कलाकारों को मौका दिया गया है।

गोपेश्वर मंदिर परिसर में रुद्रनाथ के स्थल के विशाल चौक में सामूहिक रूप से होली खेले जाने की परंपरा सदियों से रही है। स्थानीय बुजुर्ग कन्हैया प्रसाद, शंभुप्रसाद तिवारी, दर्शन सिंह बिष्ट, गेंदा लाल बताते हैं कि पहले अखरोट और अन्य प्राकृतिक रंगों की होली यहां पर खेली जाती थी। मंदिर की तीवारी में बाल्टियों में रंग घोल कर रखा जाता था और चौक में सभी लोग वाद्य यंत्रों पर थिरकते हुए होली खेलते थे। इसी होली की मस्ती के बीच उन पर बांस की पिचकारी से रंग फेंका जाता था। भगवान शिव को भी होली खेलने के लिए आग्रह किया जाता था।

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »