VIEWS & REVIEWS

सत्ता का ‘शक्तिपीठ’ बनता ‘योगपीठ’

योगेश भट्ट 
अंग्रेजी में गवर्मेंट यानी सरकर के लिए एक कहावत है, ‘गवर्मेंट बाइ द पीपुल, फार द पीपुल’ यानी सरकार, जनता के द्वारा और जनता के लिए। लेकिन जो आज के हालात हैं उन्हें देख कर तो ऐसा लग रहा है मानो सरकार का मतलब ‘बाबाओं के द्वारा और बाबाओं के लिए’ होकर रह गया है।

आसाराम से लेकर राम रहीम तक इस तरह की कई नजीर हैं। इन ‘बाबाओं’ के असल चेहरे आज सबके सामने हैं, मगर दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस बाद भी कई ‘बाबा’ और उनके आश्रम, अखाड़े सरकारों के लिए ‘शक्तिपीठ’ बने हुए हैं। इन शक्तिपीठों के आगे नतमस्तक सरकारें खुले तौर पर इनके इशारों पर काम करती हैं।

अपने उत्तरखंड को ही लें, यहां भी बाबाओं का सरकार में प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। यूं तो उत्तराखंड में तमाम सारे बाबा शक्तिपीठ हैं, जिनमें पायलट बाबा, स्वामी चिदानंद मुनि, शंकराचार्य राजराजेश्वरानंद, स्वामी कैलाशानंद से लेकर भोले महाराज और माता मंगला तक तमाम नाम शामिल हैं।

लेकिन इन सभी नामों से इतर इन दिनों जो नाम शक्तिपीठ के रूप में सबसे ज्यादा प्रभावी होकर सामने आया है, वह है बालकृष्ण और रामदेव की जोड़ी। इस जोड़ी का ‘योगपीठ’ आज उत्तराखंड की सत्ता का शक्तिपीठ बनता जा रहा है। इस योगपीठ पर सरकार पूरी तरह मेहरबान है। हालांकि रामदेव की छवि फिलवक्त आसाराम और राम रहीम जैसी नहीं है।

इन दोनों से उनकी तुलना भी नहीं की जा सकती, मगर यह भी उतना ही सत्य है कि बाबा रामदेव का अतीत भी कम संदिग्ध नहीं है। इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि वे भगवा चोलाधारी योगगुरु के साथ-साथ अब बड़े कारोबारी और बिजनेस टायकून भी बन चुके हैं। योग के नाम पर योग से इतर हजारों करोड़ रुपये का साम्राज्य आज वे खड़ा कर चुके हैं। अब तो उनकी देखा-देखी कई दूसरे बाबा भी कारोबारी बनने की दिशा में हैं और उन्हें चुनौती देने लगे हैं।

बहरहाल बात बाबा रामदेव की योगपीठ के शक्तिपीठ बनने की चल रही है, तो आलम यह है कि मौजूदा सरकार का वश चले तो वह पूरे प्रदेश का ‘पट्टा’ ही इस योगपीठ के नाम कर दे, और पूरे तंत्र को पतंजलि की ब्रांडिंग में लगा दे। इसका इससे बड़ा प्रमाण और क्या होगा कि प्रदेश के सहकारिता मंत्री ने तो आते ही यहां तक कह दिया था कि उनकी सरकार बाबा के बनाए उत्पादों को बेचेगी।

हाल ही में त्रिवेंद्र सरकार ने प्रदेश में उत्पादित होने वाली जड़ी बूटियों का मूल्य तय करने का अधिकार, जो कि सरकार का अपना अधिकार होता है, भी पतंजलि को सौंप दिया है। यही नहीं, कई योजनाएं मसलन बदरी गाय संरक्षण योजना को भी रामदेव के रहमोकरम पर छोड़ दिया गया है। यानी जब पतंजलि चारा देगा, तब जाकर उन गायों का संरक्षण हो सकेगा। पतंजलि पर मेहरबानी का सिलसिला यहीं नहीं थम रहा है। राज्य के उद्यान विभाग के बगीचों को भी बाबा के योगपीठ को सौंपने की तैयारी है।

राज्य को इससे क्या लाभ होने जा रहा है, यह सरकार की कार्ययोजना में कहीं भी स्पष्ट नहीं है। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पूरी दुनिया में योग के नाम पर भारी भरकम साम्राज्य खड़ा करने वाले रामदेव की कर्मभूमि उत्तराखंड में योग प्रशिक्षकों की जो हालत है वह किसी से छुपी नहीं है। योग प्रशिक्षक रोजगार के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। वे तंगहाली का जीवन जीने को मजबूर हैं। न तो सरकार और ना ही योग की बदौलत इतना बड़ा नाम कमाने वाले बाबा के पास इन योग प्रशिक्षकों के लिए कोई योजना है।

इस सबके बावजूद सरकार रामदेव पर लगातार मेहरबान है। बाबाओं के बारे में आए दिन हो रहे सनसनीखेज खुलासों से भी सरकार नहीं चेत रही है। जहां तक बाबा रामदेव के अतीत की बात है तो उनका अतीत पाक-साफ नहीं है। हैरानी की बात यह है कि मौजूदा सरकार ने रामदेव से घनिष्टता ऐसे वक्त बढानी शुरू की जब उनके अतीत को लेकर सनसनीखेज खुलासे करने वाली एक पुस्तक सामने आई है।

मुंबई की पत्रकार प्रियंका पाठक नारायण ने वर्षों की मेहनत और शोध के बाद एक किताब, ‘गाडमैन टू टायकून’ (द अनटोल्ट स्टोरी आफ बाबा रामदेव) लिखी है। बताया जा रहा है कि इस किताब में बाबा रामदेव के फर्श से अर्श तक पहुंचने का सफरनामा दर्ज है। किताब में इस सफरनामे के दौरान के सभी दबे ‘राजों’ को बेपर्दा किया गया है। जिन भी लोगों का रामदेव की सफलता में योगदान रहा, वे रहस्मय तरीके से गायब क्यों और कैसे हो गए, इसका भी खुलासा किताब में है। फिलवक्त इस किताब पर न्यायालय ने अंतरिम रोक लगाई हुई है।

दिलचस्प यह है कि ये रोक बाबा रामदेव की अर्जी पर लगाई गई है। इससे इतना तो साफ है कि किताब में कुछ तो ऐसा जरूर है जो बाबा को परेशान कर रहा है, विचलित कर रहा है। मगर उत्तराखंड सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। बाबा भले ही विचलित हैं, लेकिन प्रदेश सरकार उनको लेकर निश्चिंत है।

एक बार को इस किताब वाले विषय को अलग भी रख दिया जाए तब भी उत्तराखंड में ही रामदेव को लेकर विवादों की लंबी श्रंखला है। उनकी कंपनी पतंजलि द्वारा बनाए गए तकरीबन 60 उत्पाद यहां जांच में फेल हो चुके हैं। पड़ोसी देश नेपाल में भी पतंजलि के कई सैंपल फेल पाए जा चुके हैं। पतंजलि के उत्पादों की गुणवत्ता में दिनो दिन आ रही गिरावट का ही नतीजा है कि तमाम सैन्य कैंटीन में इनकी बिक्री बंद हो चुकी है। इसके अलावा बाबा रामदेव पर सरकारी से लेकर निजी जमीन पर कब्जा करने का भी गंभीर आरोप है।

उनके सहयोगी बालकृष्ण की बात करें तो, उनके शैक्षिक दस्तावेजों से लेकर नागरिकता तक पर सवाल हैं। इस सबके बाद भी मौजूदा सरकार योगपीठ के आगे नतमस्तक है तो यह उसकी साख पर बड़ा सवाल है। तथाकथित बाबाओं का आज जो हश्र हो रहा है उसे देखने के बात तो सरकारों को समझ जाना चाहिए कि, सरकार किसी शक्तिपीठ से नहीं बल्कि अपने इकबाल से चलती है। सरकारों को यह भी समझ जाना चाहिए कि उनकी निष्ठा और जबाबदेही किसी शक्तिपीठ के प्रति नहीं बल्कि उस जनता के प्रति होती है जिसने उन्हें चुना होता है।

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »