UTTARAKHAND

परस्पर राग-द्वेष,लोभ,मद,ईर्ष्या त्याग का हो दहन।

   होलिका को न जलने का वरदान प्राप्त था,लेकिन फिर भी जलना पड़ा।जगत जननी सीता माता को कोई ऐसा वरदान नही था,लेकिन फिर भी लंका से आयोध्या वापसी से पूर्व सीता माता की अग्नि परीक्षा लेने पर माता सीता नहीं जली यह सब मनोभाव का विषय है,
होलिका दहन के अवसर पर हम सब अपने अन्दर के रागद्वेष,लोभ,मद,ईर्ष्या,तृष्णा,घृणा,दुराग्रह, कोध्र,वैमनस्यता,लोकेक्षणा,प्रांग प्रसिद्धि,क्षेत्रवाद,जातिवाद युक्त धारणा,गरीब-अमीर का भाव एवं अहंकारों को भष्म करके परस्पर सामाजिक सदभाव से प्रेम,वन्धुत्व,भाईचारा एवं समरसता से अपने मन के प्रहलाद को जीवनदान प्रदान कर प्रकृति प्रदत्त सभी जड़ चेतन आनन्दित और उत्साहित हो होली पर्व हमें यही संदेश देता है।
होलिका दहन के अवसर पर समाज में व्याप्त बुराईयों और आपसी मतभेदों का दहन कर खुशी, प्रेम और उल्लास के प्रसार का संकल्प लें।

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