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“द कश्मीर फाइल्स” में हिन्दुओं की त्रासदी से जुड़े तमाम विमर्शों में चर्चा।

कश्मीरी पंडितों के दर्द को बयां करने वाली  “द कश्मीर फाइल्स”फिल्म के बहाने लाखों कश्मीरी हिंदुओं पर हुए नरसंहार और त्रासदी से जुड़े तमाम विमर्श आज चर्चा में हैं।

बीते तीन दशकों के दौरान इस विषय पर चर्चा ना के बराबर हुई जबकि इस त्रासदी के शिकार कश्मीरी हिन्दू बड़ी संख्या में दिल्ली में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं।
किशोर कुमार डुकलान की कलम से:-
अगर हम प्राचीन भारत के इतिहास के पन्नों को उलटकर देखें तो हमें ऐसी बहुत सी दर्दनाक घटनाएं सुनने को मिलेंगी जिन घटनाओं ने इंसानियत और समाज को ना सिर्फ शर्मसार किया है बल्कि ऐसे अनेकों जख्म भी दिए हैं। कश्मीरी हालातों पर विवेक अग्निहोत्री द्वारा बनाई गई फिल्म “द कश्मीर फाइल्स ” ऐसे अनेकों प्रश्न मिल रहे हैं। ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने इस मुद्दे को बेहद तीखे और जोरदार ढंग से सामने लाने का काम किया है।
90 के दशक में जम्मू-कश्मीर में रहने वाले लाखों कश्मीरी हिंदुओं को मजहबी कट्टरपंथियों के आतंक के कारण अपनी मातृभूमि को छोड़कर पलायन करना पड़ा था। बड़ी संख्या में पंडितों का नरसंहार भी हुआ, लेकिन केंद्र से लेकर राज्य तक की तत्कालीन सरकारें इस त्रासदी पर मूकदर्शक बनी रहीं और पंडितों की सुरक्षा के लिए किसी ने भी कुछ ठोस नहीं किया। यहां तक कि बाद के समय में भी उनके पुनर्वास के लिए कोई प्रयास नहीं हुए। परिणाम यह रहा कि लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी की तरह रहने को मजबूर होना पड़ा। ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने इस पूरी त्रासदी की सच्चाई को देश और समाज के सामने रखने का काम किया है।
एक कहावत है कि सच जब तक जूते पहनता है, झूठ पूरी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है। कश्मीरी पंडितों के साथ हुई त्रासदी के संदर्भ में यह कहावत सटीक बैठती है। कश्मीरी पंडितों ने नरसंहार और विस्थापन का दंश तो झेला ही, उसके बाद विचारधारा विशेष के लोगों द्वारा गढ़ा गया यह झूठ भी उन्हें सुनना पड़ा कि उनका कोई नरसंहार हुआ ही नहीं था। इस झूठ को चलाने के लिए आंकड़ों की बाजीगरी कर मारे गए और बेघर हुए कश्मीरी पंडितों की संख्या को कम करके बताने के प्रयास भी हुए।
कश्मीरी पंडित अपने घर से तो निकाले ही गए थे, उनकी त्रासदी का सच भी हाशिये पर ही चला गया और झूठ दुनिया के चक्कर लगाता रहा। आज ‘द कश्मीर फाइल्स’ का प्रसारण रुकवाने के लिए यदि कोर्ट में याचिका लगाने से लेकर तरह-तरह से उसका विरोध देखने को मिला है तो उसके पीछे की मंशा भी यही है कि कश्मीरी पंडितों के नरसंहार और विस्थापन का सच सामने न आ पाए और वामपंथी खेमे द्वारा झूठ का जो मकडज़ाल बुना गया है, वह समाज के सामने बना रहे। वरना यही लोग जब कश्मीर एवं आतंकवाद को लेकर’हैदर’ ‘मुल्क’ जैसी फिल्में बनती हैं तो उन पर लहालोट हो जाते हैं। वहीं कश्मीर फाइल्स जैसी फिल्मों में जब सिक्के का दूसरा पहलू दिखाया जा जाता है तो इससे इन्हें तकलीफ होने लगती है।
सन् 2014 तक देश में सर्वाधिक समय कांग्रेस की अगुआई वाली सरकारों का ही शासन रहा, लेकिन इन सरकारों ने कभी भी कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की कोई विशेष चिंता नहीं की। उनके विस्थापन के 18 वर्ष बाद कांग्रेस एक पुनर्वास योजना लाई भी तो उसका कोई क्रियान्वयन नहीं हो सका। अनुच्छेद-370 को जम्मू-कश्मीर के लिए जरूरी मानने वाली कांग्रेसी सरकारों के एजेंडे में कश्मीरी पंडितों का दर्द भला कैसे हो सकता था!
इन परिस्थितियों के बीच आज जब भारतीय जनता पार्टी शासित राज्य कश्मीरी पंडितों के दर्द को दुनिया के सामने लाने वाली ‘द कश्मीर फाइल्सÓ को करमुक्त करने में लगे हैं, तब कांग्रेस इंटरनेट मीडिया पर इस फिल्म पर निशाना साधने में जुटी है। जाहिर है, आज भी कांग्रेस के भीतर कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अन्याय के प्रति कोई सहानुभूति एवं संवेदना नहीं उपजी है।
सन् 2014 में मोदी सरकार आने के बाद कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की दिशा में कश्मीर के अन्दर जो कदम उठाए गए। सन् 2015 में केन्द्र सरकार द्वारा विकास पैकेज जो एलान किया। सन् 2015 के बाद भी कश्मीरी पंडितों को घाटी में वापस बसाने के लिए अनेकों योजनाओं पर काम शुरू हुआ। पांच साल के अंतराल में 610 कश्मीरी पंडितों को उनके कश्मीर स्थित घर लौटाने में कामयाबी हासिल हुई है।
सन् 2019 में अनुच्छेद-370 हटने के बाद बीते लगभग ढाई वर्षों में जम्मू-कश्मीर में जिस तेजी से हालात बदले हैं,उसे देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि अब कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर और अधिक तेजी से काम किया जाएगा। बात केवल कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की ही नहीं, उनके साथ पूरा न्याय तभी होगा जब उनके दोषियों को समुचित दंड मिलेगा। बिट्टा कराटे हो या यासीन मलिक अथवा ऐसे ही और भी अनेक दहशतगर्द, इन सबको जब तक उचित दंड नहीं मिलता तब तक कश्मीरी पंडितों के न्याय का चक्र पूरा नहीं होगा।
बहरहाल फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की पटकथा और पात्रों के अभिनय के सार से यहीं ज्ञात होता है कि विवेक अग्निहोत्री ने इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के मुद्दे में एक नई जान दी है। आज इंटरनेट मीडिया पर ‘द कश्मीर फाइल्स’ के बहाने हर तरफ कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार और विस्थापन का मुद्दा छाया हुआ है। फिल्म के प्रति लोगों का रुझान ऐसा है कि सिनेमा हाल के टिकट एडवांस बुक हो रहे हैं।

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