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मृत्युंजय जैसे विवादित को कौन अफसर है पाल-पोस रहा ?

देहरादून। एक अफसर जुगाड़ से सहायक प्रोफेसर के तौर पर भर्ती होकर उत्तराखंड के पौड़ी महाविद्यालय में आता है। तिकड़म और जुगाड़ से न जाने कितने पदों से नवाजा जाता है। जहां जाता है, वहीं विवाद खड़ा करता है, खुद गलत होकर भी सही को गलत साबित कर देता है। कुल सचिव रहते हुए कुलपति से मिसविहेब करता है, और तो और विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद पर रहते हुए कुलाधिपति अर्थात राज्यपाल तक को ठेंगा दिखा देता है। एक तरफ आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलसचिव पद से हटाया जाता है, दूसरी तरफ सचिवालय में नए बने विश्वकर्मा भवन के पांचवें तल में आलीशान कमरा उसका इंतजार कर रहा होता है। उत्तराखंड में ऐसा कारनामा एकमेव मृत्युंजय मिश्रा ही कर सकता है।

ढेर सारे विवादों की कड़ी में मृत्युंजय मिश्रा के साथ एक नया विवाद जुड़ गया है, वह है सचिवालय संघ द्वारा गैर सचिवालय अधिकारी मृत्युंजय मिश्रा के सचिवालय में बैठने का विरोध शुरू हो गया है। विश्वकर्मा भवन के पांचवें माले में मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश के आलीशान कक्ष के ठीक सामने मृत्युंजय मिश्रा को एक कक्ष आवंटित हुआ है। यह कक्ष अपर स्थानित आयुक्त के तौर पर दिल्ली में तैनाती के एजज में देहरादून में उसके कैंप कार्यालय के तौर पर आवंटित किया गया है।

मृत्युंजय मिश्रा जब कुलसचिव रहते हुए कुलपति से भिड़ जाता है, यहां तक कि कुलाधिपति अर्थात राजभवन से आए दस-दस पत्रों को कूड़े के ढेर में डाल देता है, इसके अतिरिक्त बहुत सारे निजी विवादों में उलझता है, तो इन सबसे लड़ने में उसके पीछे कोई न कोई हाथ जरूर होता है। पहले इन हाथों को लेकर कयास ही लगाए जा रहे थे। अब साफ हो गया है कि मुख्यमंत्री के अपर मुख्य सचिव ओम प्रकाश वह हाथ है, जो एक विवादित अफसर को अराजकता की हद तक जाने के लिए उसका साथ दे रहे हैं।

सचिवालय में बैठने वाले विवाद से पहले चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड के परीक्षा नियंत्रक के तौर अनाधिकार कब्जा जमाने का विवाद मृत्युंजय मिश्रा के साथ जुड़ा है। एक प्रावधान के अनुसार आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय के कुलसचिव तथा परीक्षा नियंत्रक होने के नाते मिश्रा को चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड का परीक्षा नियंत्रक बनाया गया था। यह प्रावधान भी इन्हीं एसीएस महोदय का कारनामा है, जो विशेष तौर पर मृत्युंजय मिश्रा के लिए ही करवाया गया है। अब जब वह आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय से हटा दिया गया है, तब चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड का परीक्षा नियंत्रक भी नहीं होना चाहिए। लेकिन मुख्यमंत्री के एसीएस के प्रभाव में मिश्रा चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड का परीक्षा नियंत्रक बन बैठा है। इतना ही नहीं वहां 303 डेंटल चिकित्सकों के पदों पर होने जा रही भर्ती में मिश्रा कोई गुल खिलाने जा रहा है। मतलब यह कि घोटाले भी अब उत्तराखंड में चुनौती देकर किए जा रहे हैं। कोई एसीएस ऐसे अफसर के पीछे खड़ा है, दम है तो विरोध करके दिखाओ?

devbhoomimedia

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