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भाजपा लौटा पायेगी उत्तराखण्ड का खोया ”स्पेशल स्टेटस” ?

सबसे बड़ा सवाल : मोदी जी आखिर कैसे संवारेंगे?

योगेश भट्ट 

‘अटल ने बनाया, मोदी जी संवारेंगे’ और ‘भाजपा के संग, आओ बदलें उत्तराखंड’ जैसे नारों के बीच उत्तराखंड की सत्ता पर भाजपा की प्रचंड बहुमत के साथ ताजपोशी हुई। प्रदेश की जनता ने भाजपा नेताओं के इस दावे पर यकीन किया कि प्रदेश के विकास के लिए डबल इंजन की सरकार चाहिए।

लेकिन बिडंबना देखिए कि सरकार ने उत्तराखंड को पुरस्कृत करने के बजाय उसका ‘विशेष राज्य’ का दर्जा ही खत्म कर दिया। यह फैसला सरकार ने 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करते हुए लिया। आश्चर्यजनक तो यह है कि उत्तराखंड से लोकसभा में पांच सांसद हैं और पांचों भाजपा के है, लेकिन सब के सब इस पर चुप्पी साधे हैं। उनकी पार्टी लाइन प्रदेश के हितों पर भारी पड़ रही है।

किसी भी भाजपाई सासंद ने संसद में इस मुद्दे को नहीं उठाया कि प्रदेश को अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए विशेष सहायता की बेहद जरूरत है। दरअसल उत्तराखंड अपने गठन से ही उन 11 राज्यों में शामिल है, जिन्हें केंद्र से विशेष श्रेणी का दर्जा मिला हुआ है। विशेष श्रेणी का दर्जा किसी भी राज्य को तब मिलता है, यदि वह मुश्किल हालात वाला पहाड़ी राज्य हो अथवा कम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य हो या आर्थिक एवं बुनियादी संरचनाओं में पिछड़ा हुआ हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगा हो। दिलचस्प यह है कि उत्तराखंड पर ये सारी स्थितियां लागू होती हैं।

बावजूद इसके उत्तराखंड से विशेष राज्य का दर्जा खत्म कर दिया गया है। उत्तराखंड की मौजूदा स्थिति की बात करें तो प्रदेश 45 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्जदार हो चुका है। औद्योगिक विकास की चाल दिनों दिन धीमी होती जा रही है। ऐसे में विशेष राज्य का दर्जा खत्म होना राज्य के लिए बड़ा नुकसान है। इससे अभी तक राज्य को तमाम क्षेत्रों में फायदा मिल रहा था। प्रदेश को इससे सबसे ज्यादा फायदा एक्साइज एवं कस्टम ड्यूटी में छूट का हो रहा था, जिससे निवेश को आकर्षित करने में मदद मिल रही थी।

दूसरा अहम बिंदु यह है कि विशेष केंद्रीय सहायताएं और राष्ट्रीय केंद्रीय सहायताओं के तहत विभिन्न योजनाओं में राज्य को जो रकम मिलती रही है, उसमें या तो शत प्रतिशत अनुदान होता है या फिर अनुदान और लौटाए जाने वाले ऋण के बीच 90:10 का अनुपात होता है। जबकि सामान्य तौर पर बाह्य सहायतित योजनाओं में दिया जाने वाला अनुदान 30:70 के अनुपात में होता है। इस क्रम में एक लाभ यह भी है कि जो खर्च न किए जाने वाली केंद्रीय सहायता की धनराशि अमूमन लैप्स हो जाती है, विशेष श्रेणी के दर्जे वाले राज्य में वह रकम लैप्स नहीं होती।

बहरहाल, 14वें वित्त आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद उत्तराखंड को मिलने वाला यह दर्जा खत्म हो गया है। इसका सीधा बड़ा नुकसान यह होने जा रहा है कि अब केंद्र से मिलने वाली विभिन्न योजनाओं की रकम या धनराशि का बहुत बड़ा हिस्सा राज्य को वापस लौटाना होगा। इसके अलावा ड्यूटी में मिलने वाली छूट भी समाप्त हो जाएगी, जिसका सीधा असर औद्योगिक विकास पर पड़ेगा। और जब औद्योगिक विकास रूकेगा तो जाहिर तौर पर बेरोजगारी की समस्या भी राज्य के सामने खड़ी होगी।

आश्चर्यजनक यह है कि अभी तक प्रदेश सरकार ने केंद्र से विशेष राज्य का दर्जा बनाए रखने की मांग नहीं की है। जबकि इस बीच वह लगातार प्रदेश की माली हालत का रोना रोए जा रही है। आय के संसाधन कम होने की बात कह रही है। ऐसे में विशेष राज्य का दर्जा बरकरार रहना प्रदेश के लिए आक्सीजन की तरह होता। लेकिन अभी राज्य सरकार मानो यह हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही है। जबकि ये मामला राष्ट्रीय विकास परिषद के अधिकार क्षेत्र में है और यदि केंद्र चाहे तो उत्तराखंड को राहत दी जा सकती है।

बहरहाल सियासी जुमलों की भाषा में कहें तो डबल इंजन का हेलीकाप्टर फिलवक्त उड़ान नहीं भर पा रहा है। भाजपा के नारे ‘अटल जी ने बनाया है, मोदी जी संवारेंगे’ के आधार पर ही कहें, तो मोदी जी आखिर कैसे संवारेंगे? यह अपने आप में यक्ष प्रश्न बना हुआ है।

devbhoomimedia

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