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सॉरी बाबू …..

मुंबई की शान बॉलीवुड और उसकी स्कॉटलैंडयार्ड सरीखी पुलिस दोनों की छवि हो चुकी है तार-तार 

अनिल सती
उद्धव जी की सरकार खतरे मे है, आदित्य ठाकरे की नींद उड़ी हुई है, सूरज पंचोली की सांसें उखड़ी हुई है, महेश भट्ट की पोल खुल रही है, पूरी बॉलीवुड मुसीबत में है, मुंबई पुलिस पर शक के बादल मंडरा रहे हैं उसकी विश्वसनीयता खतरे में है, सबसे तेज चैनल की टीआरपी 60 परसेंट तक घट गई है। एक गुमनाम सी स्ट्रगलर रिया चक्रवर्ती के कारण मुंबई की शान बॉलीवुड और उसकी स्कॉटलैंडयार्ड सरीखी पुलिस दोनों की छवि तार-तार हो चुकी है।
क्या लगता है कि यह सिर्फ सुशांत सिंह की हत्या के कारण हो रहा है? नहीं बाबू यह तो एक बहाना लगता है, एक मौका है शायद जिसकी प्रतीक्षा बहुत दिनों से देश का बहुसंख्यक सभ्य समाज कर रहा था।……… संभवतः लोगों यह आक्रोश है, पिछले दो पीढ़ियों के नैतिक और सामाजिक पतन की जिम्मेवार उस बॉलीवुड के विरुद्ध, जिसने नंगाई और उच्श्रृंखलता के ऐसे प्रतिमान गढ़े कि कमाठीपुरा की नगरवधुएं भी शर्मा जाएं।…….. कमीनगी को धर्म और बेहूदगी को आधुनिकता बनाओगे तो ये दिन तो देखने ही पड़ेंगे।
तुम्हारे छीछालेदारी से हम बहुत खुश हो रहे हैं और खुश भी क्यों ना हों । हॉलीवुड ने जो दोहरी मानसिकता दिखाई है उसका पाप तो तुम्हें भोगना ही थाl क्या भजन हटाने के लिए गुलशन कुमार को ही नहीं हटा दिया गया होगा? और हर गाने का साम्प्रदायिकीकरण किया गया होगा….. उसे संगीत के नाम पर थोपा गया? बॉलीवुड में इनके कब्ज़े और इनकी मोनोपोली( एकाधिकार )के सामने तो गूगल, फेसबुक और अमेज़न की बाजार की मोनोपोली भी पानी भरती है…. बताइये ज़ब गली बॉय ऑस्कर के लिए भेज दी गयी…आखिर बॉलीवुड के बारें में क्या ये धारणाएं मिथ्या हैं कि बॉलीवुड में सब कुछ तथाकथित सेकुलर है पर इनसे गाने नहीं बने सेकुलर…. प्राचीन अतुलनीय भारतीय रागों की भव्यता को साम्प्रदायिक गानों को प्रोपगॅंडा करने में प्रयोग किया गया…. हमारी ही संगीत की विरासत हमारे ही विरुद्ध प्रयुक्त… साथ ही लोगों की धारणा क्यों न बने कि लव जिहाद के लिए स्टफ तैयार करने के लिए सात्विक और सहज प्रेम के बदले मुहब्बत का जूनून परोसा जाता है l ….. संजू.. कबीर सिंह… ड्रग्स….नारकोटिक्स,… रेव पार्टीज …. .. माफिया …. मर्डर…आतंकवाद….. उफ्फ अंडरवर्ल्डपरस्त बॉलीवुड ये फेहरिस्त तो खत्म होने का नाम ही नही ले रही।
क्या यह नहीं हो रहा कि पहले टेलेंट को दबोचो ड्रग्स या लव ट्रेंगल में फंसाओं…. फिर गैंग की उँगलियों पर नचाओ… जो न माने ठिकाने लगाओ .. रेड, मिशन मंगल और सुपर 30 तक जैसी कई अच्छी विषयों की फिल्मों में जबरदस्ती नशा दिखाना अवॉयड नहीं किया जा सकता था।  क्यों न माना जाय कि बॉलीवुड ने न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को हवाला और सफ़ेद ब्लैक के जरिये टारगेट कर रखा है बल्कि मनोरंजन के नाम पर सारी पीढ़ियां बर्बाद कर दी हैं.. भारतीय सिनेमा को कितना दिशाहीन करके रख दिया…. कैसे- कैसे क्रेज़ और पैरामीटर डेवलप किये l नेगेटिव हीरो बनाये तुमने… खिलजी की तरह…. रईस की तरह….अब शायद टीपू आने वाला है… लोग मानते हैं बॉलीवुड वाले NCERT के पाठ्यक्रम को लिखने वाले, बाबर, अकबर औरंगजेब और टीपू सुल्तान को महान बनाने वालें, छद्म सेकुलरों से भी बहुत आगे निकल गए हैं …. सिनेमा, टीवी सीरियल और बेव सीरीज के जरिये…. ये समझना जरुरी है कि इनके द्वारा दुबई प्रायोजित, परोसी गयी, फ़िल्मी मनोरंजन सामग्री प्रभाव के नशे में भी बहुत बड़ी आबादी है…. गृहणियों की रूचि “सास बहू और वो” तक सीमित कर दी… कला, संस्कृति और मनोरंजन का आकाश प्रदूषित करके रख दिया गया है… एक स्वस्थ कला और संस्कृति कर्मी और दर्शकों को इतने घुटन में रहना पड़ रहा था …… बाहुबली ने दिखाया कि एक विशुद्ध परम्परागत थीम पर भी कितनी भव्य और स्वस्थ फ़िल्म बन सकती है* *लेकिन ऐसा लगता है कि अच्छी फ़िल्म बनाएंगे तो शायद नशे खेप बंद हो जाएगी।
दिल्ली, मुम्बई जैसे अन्य महानगरों में कॉलेज के होस्टल्स या कामकाजी युवाओं पर बॉलीवुड द्वारा स्थापित मान्यताओं के नशे का असर जाने में एक दशक से कम समय नहीं लगेगा….. ये भी ड्रग्स से कम खतरनाक डोज़ नहीं……जिस पीढ़ी ने अपना बचपन और यौवन इन फिल्मों को देखकर बिताया किया उनके मनोरंजन का स्वाद अब क्या ही ठीक होगा….कुछ लोग इस मुद्दे को डायल्यूट करने के लिए आजकल अर्थशास्त्री बन रहे हैं क्या उन्हें विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या रूपी संसाधन के नैतिक, शारीरिक और आर्थिक अवमूल्यन की कोई चिंता नहीं…ये सब फ़िल्मी तमाशा कुछ दशकों से लोग देख रहे थे… अब सुब्रह्मण्यम स्वामी जी का कहना है उन्होंने मा. नरेन्द्र मोदी, अजित डोभाल और अमित शाह की मदद से इस वृत्तासुर के दुर्ग को तोड़ने का बीड़ा उठाया है l ऐसे अनैतिक धनलिप्सुओं को आज एक्सपोज़ होते देख अच्छा लगा. जो बोओगे वही तो काटोगे  ……. सॉरी बाबू*……

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