उत्तर प्रदेश तक पहुंचा उत्तराखंड की ‘उम्मीदों’ का दायरा..
उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच विवाद सुलझने की उम्मीद
योगेश भट्ट
योगी आदित्यनाथ के उत्तरप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तराखंड की उम्मीदों का दायरा बढ़ गया है। ये दायरा बढ़ कर उत्तर प्रदेश तक पहुंच गया है। इसकी सीधी सपाट वजह यह है कि फायर ब्रांड, आदित्यनाथ योगी भले ही पूर्वांचल के नेता हों, लेकिन मूल रूप से वे उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पंचूर गांव के हैं।
उनके माता-पिता तथा अन्य परिजन आज भी इसी गांव में रहते हैं। दूसरी अहम बात यह है कि योगी उत्तर प्रदेश में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। ऐसे में प्रदेश की जनता उम्मीद कर रही है कि ‘बड़े भाई’ उत्तर प्रदेश के साथ अब तमाम अनसुलझे मु्द्दे सुलझ जाएंगे। दोनों राज्यों के बीच जो सवाल खड़े हैं उन्हें हल मिल जाएगा। राज्य गठन के सोलह साल बीतने के बाद भी दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों के बंटवारे समेत तमाम मु्द्दे अनसुलझे पड़े हैं। जमीन से लेकर नहरों, झीलों, सरकारी एवं रिहायशी भवनों तथा कई विभागों की हजारों करोड़ रुपये मूल्य की परिसंपत्तियां हैं, जो उत्तराखंड में होने के बावजूद उत्तर प्रदेश के नियंत्रण में हैं।
अकेले सिंचाई विभाग की ही बात करें तो लगभग 13000 हैक्टेयर जमीन को लेकर दोनों प्रदेश आमने-सामने हैं। इसके अलावा 3 बड़े बैराज, 40 के करीब नहरें, 14 हजार के करीब भवन तथा परिवहन विभाग से जुड़ी करोड़ों रुपये मूल्य की परिसंपत्तियों को लेकर भी दोनों के बीच विवाद है। और तो और कार्मिकों के बंटवारे और पेंशन का मसला भी अभी तक अनसुलझा ही है। इतने सालों तक भी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड इन मसलों का हल नहीं तलाश पाए हैं, तो इसके पीछे राजनीतिक इच्छाशक्ति न होना सबसे बड़ा कारण रहा है। दरअसल इन वर्षों में एक बार भी ऐसी परिस्थिति नहीं बनी कि दोनों राज्यों में एक ही दल की सरकार रही हो।
लेकिन राज्यगठन के बाद यह पहला मौका है जब दोनों राज्यों में न केवल एक ही दल की सरकार है बल्कि दोनों के मुख्यमंत्री, योगी और त्रिवेंद्र एक ही राज्य में पैदा हुए और पले-बढ़े हैं। इससे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार केंद्र में भी भाजपा की ही सरकार है। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने प्रदेश की जनता को अपने पक्ष में वोट देने के लिए जो नारा, ‘अटल जी ने बनाया, मोदी संवारेंगे’ दिया था, उसे फलीभूत करने के लिए भी इससे मुफीद स्थिति कोई और नहीं हो सकती है। परिसंपत्तियों के बंटवारे संबंधी कई विवाद केंद्र सरकार तक पहुंचे हुए भी हैं, ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र इन्हें सुलझाने में सक्रियता दिखाएगा।
हालांकि परिसंपत्तियों के बंटवारे से लेकर कुछ दूसरे मसलों पर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के बीच विवाद जरूर हैं, लेकिन इसके बाद भी दोनों के बीच बड़े और छोटे भाई का रिश्ता है। राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को बहुत से मामलों में एक साथ जोड़ कर ही देखा जाता है। सियासी तौर पर भी दोनों के मिजाज में कई समानताएं हैं, मसलन दोनों प्रदेशों में चुनाव साथ-साथ ही होते हैं। बहरहाल दोनों राज्यों में भाजपा की सरकार बन जाने के बाद सभी को यह उम्मीद है कि ‘त्रिवेंद्र राज’ और ‘योगी युग’ में सभी मसलों का समाधान निकल जाएगा।