सात दिन का था करार, दो दिन में हो गयी सरकार फ़रार

- दो दिन में ही ” भरारी से फरार ” हो गयी सियासत
क्रांति भट्ट
* यूं तो उत्तराखंड विधान सभा का शीतकालीन सत्र गैरसैण भरारी सैण में सात दिन चलने का करार किया गया था । पर “वाह री सियासत ! । दो दिन भी ” भरारी में टिक न सकी और फरार हो गयी । ”
गैरसैण भरारी सैण , पहाड का दर्द . उत्तराखंड के शहीदों के सपनों का उत्तराखंड बनायेंगे . हाय कौन कायल न हो जाय , उत्तराखंड की इस मासूम सियासती अदा पर । कत्ल भी कर दिया और मरहम की तश्तरी से लेकर भी हाजिर ।
किसे ” मुज़रिम ” और किसे ” मुंसिफ ” समझे । उत्तराखंड की सियासत में। गैरसैण भरारी सैण को राजधानी बनाने के मामलें ” क्या इधर वाले , क्या उधर वाले . दोनो बडे दलों की ” सियासती अदा एक सी है ।
18 वें साल में चल रहे उत्तराखंड राज्य का ” इस टीन ऐज ” में फिसल जाने का यदि कोई अकेला दोषी है तो वह ईमानदार नेतृत्व का अकाल ।
पहाड़ के राज्य की राजधानी ” पहाड़ में होनी चाहिए ” । पहाड़ की जवानी और पहाड़ का पानी पहाड़ के काम आये । हमने नेताओं के मुंह से आज तक यही सुना । प्रवृत्ति वश भावुक . सीधे सादे और संवेदनशील पहाड़ के लोगों ने ” राजनीति के उस्तादों ” और उनके दलों के इस ” जोशीले भाषण पर यकीन किया। और अपनी व राज्य की किस्मत इनके हाथों से बनने पर यकीन करते भरोसे को वोट के रुप में इन्हें सोंप दिया । पर हम ” लाटे पहाड़ी ” समझे ही नहीं कि ” हमारे बीच से निकले ” चकडैतों ” और राजनीति के चकडैत मंच ” दलों ने हमारी उम्मीदों के साथ किस कदर खेल अब तक खेला है । और तय है कि यह खेला आगे भी जारी रहेगा ।
गैरसैण भरारीसैण में ” सपनों की राजधानी ” का यह सातवां आयोजन हुआ । जो ” कडवे प्रहसन से कुछ नहीं । शीतकालीन सत्र सात दिनों तक आयोजित करने का करार हुआ था । पर ” दो दिनों में ही जिस तरह भरारी से शातिर सियासत फरार हो गयी ” वह दिल पर प्रहार कर गयी । ” मोटे और मजबूत और बेशर्म कलेजा रखने वाली सियासत की आंखों में पानी नहीं बेहयायी होती है । इसलिये तय है कि अपनी इस अदा पर उसे अफसोस नहीं उपलब्धि नजर आयी हो । पर संवेदनशील लोगों का मन और सपने सियासत की इस चकडैती पर खूब टूटा है ।
गैरसेण भरारी सैण में सियासत का सातवां आयोजन हुआ । पहला गैरसेण में हुई कैबिनेट का था । सोचा ” कुछ ठोस तोहफा राज्य को मिलेगा । फिर गैरसैण में एक भब्य आयोजन हुआ । विधान सभा भवन शिलन्यास का । तमाम नेता आये । उमड उमड कर पहाड़ की जनता भी इस उम्मीद के साथ और आंखों में सपने लेकर आयी कि उत्तराखंड राज्य की राजधानी पहाड़ में ही बनेगी तो दर्द को समझने वाले लोग यहाँ आयेंगे । फिर गैरसैण के मैदान में ” टैंट लगाकर विधान सभा सत्र हुआ । लगा कि कितने भले हैं ये सियासत दां । कि ” टैंट लगाकर ही सही उत्तराखंड की बेहतर किस्मत लिखने के लिए जुटे है । फिर गैरसैण पालिटैक्नीक भवन में विधान सभा सत्र हुआ । उम्मीद थी कि जो टैंट वाले सत्र में न हुआ वो इस पक्की बिल्डिंग मे होगा । एक और विधान सभा सत्र भरारी सैण में बने भब्य विशाल आधे अधूरे भवन में गत वर्ष हुआ । लगा कि भले ही विधान सभा भवन अधूरा है पर यहाँ आयोजित सत्र से उत्तराखंड के सपनो की इबारत कुछ अच्छी लिखी जायेगी ।
इस बार शीतकालीन सत्र ” सात दिनों तक चलने का करार था । उत्तराखंड की जनता ने इन सात दिनों के लिए ” सात रंग के सपने ” देखे थे । पर वाह री सियासत ! दो दिन में ही भरारी से फरार ! भला कौन न मर न जाय तेरी इस कातिल अदा पर । किस तरह कत्ल किया सपनों का । उम्मीदों का । और ज़ुबां से उफ तक न निकली । और मुस्कुराते निकल गयी अपने अय्याशी के महलों के नर्म और गर्म बिस्तर पर । दो दिन भी बर्दाश्त न हुयी भरारी सैण की पहाड़ी की ठंड ।
किसे दोष दें इस ” चकडैती राजनीति के लिए ।
दिखने को भले ही जुदा जुदा दल हों। पर गैरसैण भरारी सैण राजधानी का मसला हो या अन्य वो सवाल जो उत्तराखंड के जमीन से तालुख़ रखते हैं । उसमें चाहे ” इधर वाले हों या उधर वाले , दोनों का “” डी एन ए ” एक जैसा नजर आता है ।” धूल उडाते थे गैरसेण भरारी सैण सियासत दां, और धूल झोंक कर फिर चले गये ।
“” और चेतू . मंगसीरू , फजीतू , सतेसुरी ( उत्तराखंड का आम जन मानस नाम प्रतीक ) ठगा सा रह गया । ” टप टप ” आंसू बहाते हुये । हाथ मलते हुये । भीगी पलकों और चीर चीर होते कलेजे की बीच ये गुनगुनाते हुये कि “” कारवां गुजर गया ….. और हम खडे खडे गुबार देखते रह गये ।
… भरारी सैण जैसी पवित्र और सुंदर जगह से ” सियासत के उत्सव के खत्म हो जाने के बाद सूने पडे धार से मन की ब्यथा कथा के साथ क्रांति भट्ट ।
कभी उत्सव में आये ” साहब लोगों और सियासत दां लोगों की इस्तेमाल की गयी ” शीशियों को देखता हूं और कभी उनके दो दिनों के हट्टास भरे कहकहे मुंह चिढाते कानों में सुनाई दे रहे हैं जो दो दिनों तक यहीं गूंजे थे । पर अब अकेला और सूना रह रह गया भरारी सैण में बना विशाल विधान सभा भवन । उम्मीद है कि कभी तो आयेंगे ” अच्छे दिन ” उसके भी । और ” लाटे उस पहाड़ी मनखी को भी आस लगी है कि शायद फिर न छले जांय । भरारी सैण के एक ढुंगें में बैठकर भोगे हुये दर्द और छलछलाती आंखों के पानी के साथ ।