अपने स्वर्गीय माता-पिता की स्मृति में सुन्दर सिंह भण्डारी रख रहे हैं समाज के सशक्तीकरण की मजबूत बुनियाद
रमेश पहाड़ी
रुद्रप्रयाग । अपनी मेहनत से देश के अग्रणी संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर कार्य करते हुए भी अपनी बुनियाद को न केवल याद रखने, बल्कि उसको सींच कर आगे बढ़ाने के कार्य कल्पना से उतार कर धरातल पर पहुँचाने का नमूना देखना हो तो भीरी के समीपवर्ती गाँवों में पहुँचना होगा। यहाँ अंतर्राष्ट्रीय कम्पनी के शीर्षस्थ पदों पर पहुँचे सुन्दर सिंह भण्डारी द्वारा अपने लोगों के लिए सँजोये उपहारों के ढेर देख कर आप या तो हतप्रभ रह जाएंगे, अन्यथा आपका मन द्रवित हो जाएगा। दूसरी तरफ आपका सिर गर्व से उठ भी जाएगा कि हमारे बीच एक ऐसा आदमी भी है, जो घूमता तो देश-विदेश में है लेकिन चिंता उसे अपने काम के साथ-साथ अपने अभावग्रस्त लोगों की भी रहती है, उनके उत्थान और सहायता की भी रहती है।
पहाड़ों की गरीबी और कठिनाई में से रास्ता बना कर आगे बढ़ने वाले सुन्दर सिंह भण्डारी गाँव में आकर उन सबकी कुछ न कुछ मदद करते ही हैं, जिन्हें वे इसके काबिल मानते हैं और विशेषता यह कि उसे अत्यंत विनम्रता व विनीत होकर देते हैं। इसे सम्मान कह कर वृद्धों, विकलांगों, समाजसेवियों, विद्यालयों, छात्रों, समाजसेवी संगठनों को बहुत ही विनम्रता से स्वयं ही देते हैं। ये उपहार भी कई बार घण्टों चलते हैं और जब तक जरूरतमंदों को दे नहीं देते, तब तक बैठते भी नहीं हैं।
एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के प्रमुख सुन्दर सिंह भण्डारी ने सामाजिक सेवा के लिए अपने पिता दीवान सिंह एवं माता बचन देई भण्डारी कल्याण समिति बनाई है, जिसका मुख्यालय अपने गाँव बष्टी (जिला रुद्रप्रयाग) में ही रखा है। इस समिति के माध्यम से वे अपने गाँव ही नहीं, सम्पूर्ण इलाके के लोगों, स्कूलों और समाजसेवी संस्थाओं की सहायता करते हैं। अपनी व्यस्त दिनचर्या से समय निकाल कर वे स्वयं लाखों रुपयों के सामानों के बोझ लेकर गाँव पहुँचते हैं और अपने हाथों से उसे जरूरतमंदों को बाँटने का अथक कार्य करते हैं और इसका कोई श्रेय भी स्वयं नहीं लेते। कोई प्रेसनोट जारी नहीं करते, कोई पत्रकार वार्ता आयोजित नहीं होती। सहायता बाँट कर कब और किस रास्ते निकल जाते हैं, ज्यादातर लोगों को पता भी नहीं चलता।
कई वर्षों से चल रहे इस कार्यक्रम की जानकारी मुझे पिछले वर्ष ही मिली तो मैं भी उसको देखने चला गया। बष्टी गाँव में भारी भीड़ थी और लोगों में भारी उत्साह था। वहाँ बुजुर्गों को बुलाया जा रहा था, उन्हें माला पहनाने के बाद शॉल या उनकी आवश्यकता की वस्तु भेंट की जा रही थी। देने वाले सुन्दर सिंह भण्डारी थे, जो अधिक समय झुके हुए ही दिखाई दिए। मानों, उपहार के साथ विनम्रता भी बाँट रहे हों। मन को अच्छा लगा और इस गाँव में पहुँचने की सार्थकता का भाव मन में आया।
इस बार कुछ कॉलेजों के बाद बांसबाड़ा-भीरी में वृहद कार्यक्रम था। साधु-संतों के बाद वरिष्ठ नागरिकों, उसके बाद जनप्रतिनिधियों- जिनमें नवनिर्वाचित पंचायत प्रतिनिधि मुख्य थे, सामाजिक कार्यकर्ताओं, महिला मंगल दलों, क्रीड़ा संघों, स्वयंसेवी संस्थाओं आदि का सम्मान एवं उनकी आवश्यकताओं का सामान उन्हें दिया गया। 53 महिला मंगल दलों सहित 73 संगठनों को कुर्सियां, 12 खेल क्लबों को खेल के सामान, 6 संस्थाओं को ध्वनि विस्तारक यंत्र, 5 ग्रामों व संगठनों को खाना पकाने के बड़े पतीले, 6 विद्यालयों के छत्रों को गर्म जैकेट, 1 कीर्तन मंडली की सभी सदस्याओं को साड़ी, बुजुर्ग लोगों को माला, शाल और रुद्राक्ष की माला भेंट कर उनके प्रति सम्मान प्रकट किया गया।
लोगों का कहना था कि जो बुजुर्ग या आर्थिक रूप से वंचित लोग हैं, सुन्दर सिंह भण्डारी उनके लिए भगवान स्वरूप हैं।बड़ी संख्या में उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना था कि इस क्षेत्र में सुन्दर सिंह भण्डारी ही हैं, जो अपने मुल्क के लोगों के लिए कुछ सोचते और प्रत्यक्षतः नियमित रूप से कुछ करते भी हैं। अन्यथा अधिकतर समर्थ लोग तो पहाड़ों के लिए रोना-गाना तो बहुत करते हैं लेकिन वास्तविक रूप में करते कुछ नहीं है। सुन्दर सिंह भण्डारी जी से ऐसे लोग सबक लें तो पहाड़ का कायाकल्प हो सकता है।
[mc4wp_form]
By signing up, you agree to our
Terms of Use and acknowledge the data practices in our
Privacy Policy. You may unsubscribe at any time.