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जिल्लेइलाही के घोड़े की चाल के खिलाफ होते दरबारी और वजीर

जिल्लेइलाही की किरकिरी करवाता मगधी घोड़ा 

राजेन्द्र जोशी 

देहरादून : घुड़सवार यदि कुशल और पारंगत हो लेकिन यदि घोड़ा घुड़सवार के इशारों को नहीं समझता है तो घोड़े को ही बदल देना चाहिए, एक ज़माने में काठियावाडी घोड़ों की बड़ी डिमांड हुआ करती थी वे घुड़सवार के इशारे को पलक झपकने से ही समझ लिया करते थे लेकिन अब वे घोड़े रहे कहाँ ? सूबे के जिल्लेइलाही के पास भी एक ऐसा ही घोड़ा है। एक कहावत है ना कि बन्दर को मिली हल्दी उसने अपने ही मल दी। लेकिन यहाँ तो बात घोड़े की है , जिल्लेइलाही का यह घोड़ा बीते 16 सालों से अस्तबल में पड़ा घास और चना बिना काम किये जुगाली कर रहा था,लेकिन जिल्लेइलाही के सत्ता सभालते ही वह एक बार अस्तबल से बाहर निकाला गया वहीँ जिल्लेइलाही के इस घोड़े की भी कुछ इसी तरह की कहानी है। जो सामान्य चने की जगह सोने के चने चबाता है और जो जिल्लेइलाही के इशारों को दरकिनार कर अपनी ही मौज में चल रहा है जिसके चलते जिल्लेइलाही की हर जगह किरकिरी हो रही है। लेकिन जिल्लेइलाही यह मानने को कतई तैयार नहीं हैं कि उनकी चाल को उनका ही चहेता मगध का घोड़ा रोकने पर आमादा है।

चर्चाएँ तो सत्ता के गलियारों में सरे आम हैं कि अब सूबे के कई वजीर सहित सभा के कई सभासद तक जिल्लेइलाही के इस घोड़े के खिलाफ होने शुरू हो गए हैं । अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है जब सूबे के लगभग एक दर्जन मिम्बरों  सहित कुछ वजीर जिल्लेइलाही के इस घोड़े की चाल के खिलाफ एक हुए और घोड़े की चाल पर लगाम लगाने के लिए जिल्लेइलाही के दरबार में अपनी आवाज़ बुलंद करने जाने ही वाले थे कि तभी कुछ दरबारियों ने मामला संभाल दिया तो घोड़े की कहानी खुलने से बच गई, लेकिन आखिर अब तक यह ज्वार थमा रहेगा यह कहा नहीं जा सकता। एक न एक दिन तो जिल्ले इलाही के इस बेकाबू घोड़े की चालों का पर्दाफाश होगा ही यह सोचकर वजीर फिलहाल एक और मौके की इंतज़ार में हैं।

जिल्लेइलाही का घोड़ा काठियाबाड़ी नहीं मगधी  है यही कारण है कि मगधी इस घोड़े के आस -पास भी मगधी घोड़ों का जमावड़ा लगा हुआ रहता है और वह तवज्जो भी उन्ही मगधी घोड़ों को देता है उसके इसी चाल के कारण सूबे के लगभग एक दर्जन सूबेदार और मिम्बरान जिल्लेइलाही के इस घोड़े की मदमस्त चाल के खिलाफ हैं अभी कुछ ही दिन पहले सूबे के एक वजीर ने जिल्लेइलाही के इस घोड़े की जमकर ऐसी खिदमत की कि घोड़े को सुबह-सुबह वजीर के एक दरबारी को बुलाकर अपनी सफाई देनी पड़ीं। हालांकि मामला अभी शांत नहीं हुआ है और वजीर सहित कई मिम्बर अभी भी गुस्से से घोड़े पर तमतमाया हुआ है। खबर तो यहाँ तक है कि जिल्लेइलाही और वजीर के दरमियान संबंधों को ख़राब करने में भी इसी घोड़े की खासी भूमिका है, जबकि न तो जिल्ले इलाही वजीर का कोई काम रोकना चाहते हैं और न ही वजीर जिल्लेइलाही की राह में किसी भी तरह से रोड़े अटकाने में विश्वास ही करते हैं लेकिन जिल्ले इलाही का घोड़ा अपनी चमकाने के चक्कर में दोनों में बीच ग़लतफ़हमी पैदा किये हुए है। जिल्ले इलाही के घोड़े को यह पता है कि यदि जिल्लेइलाही और वजीर एक हो गए तो उसकी दरबार में कुछ भी नहीं चलने वाली।यही कारण है कि घोड़ा अपनी चाल में मस्त है और मौज ले रहा है सबको आपस में भिड़ाकर। जिसका खामियाजा मासूम  जिल्लेइलाही को भुगतना पड़ रहा है। 

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