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तो अब ….. भाजपा के संगठन मंत्री की विदाई तय !

शिवप्रकाश का चेला, विवादों का मेला

राजेन्द्र जोशी

कोरिया के तानाशाह किमजोंग की तरह अपनी सनक, हनक, तुनक मिज़ाजी और मनमर्जी चलाने वाले संगठन मंत्री संजय कुमार की विदाई तय है। इस बार सीधे संघ मुख्यालय नागपुर में जिम्मेदार और प्रभावशाली व्यक्ति ने संजय कुमार का तथ्यों के साथ कच्चा चिट्ठा रखा है, विस्तार से की गयी शिकायत में उसके आका और मददगारों से उत्तराखण्ड को बचाने की अपील की गई है। शिकायतकर्ता से संघ मुख्यालय संतुष्ट है और शिकायतकर्ता भी आश्वस्त। बस समय की प्रतीक्षा है। 

भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड में शीघ्र नए बदलाव देखने को मिलने वाले हैं । ताजी जानकारी के अनुसार संगठन पर पिछले पांच  – छह वर्षों के इतिहास में अभी तक सर्वाधिक विवादित महामंत्री संगठन रहे संजय कुमार की विदाई को लेकर पार्टी कार्यकर्ता, संगठन पदाधिकारी, विधायक और मंत्रियों में खुशी का वातावरण है । अपने आका शिव प्रकाश के कारण संजय कुमार ने 5-6 वर्ष संगठन मंत्री की शैली में भले काम न किया हो मगर उत्तराखंड भाजपा को अर्श से फर्श पर लाने में कोई कमी नहीं रखी। उसके आका की भी इसी कारण खूब जमकर किरकिरी हुई और हो चुकी है । हाल ही में संजय और उसके गुरु का कच्चा चिट्टा  जिम्मेदार तरीके से  जिम्मेदार व्यक्ति द्वारा तथ्यों के साथ नागपुर पहुंच चुका है और उस पर गंभीरता से विचार भी किया गया है । संघ मुख्यालय भी इन सूचनाओं से अवाक और हतप्रभ है।

उत्तराखंड भाजपा के अब तक के इतिहास में संजय कुमार इकलौते संगठन मंत्री होंगे जिनके कार्यकाल में उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों के कार्यकर्ताओं और पहाड़ी नेताओं की घोर उपेक्षा हुई। मैदान के संपन्न सक्षम ‘सुविधाजनक’ कार्यकर्ता संजय कुमार की पहली पसंद रहे हैं। संजय को जो भा गया वह पार्टी का सिरमौर बन गया। अनेक लोग जो भाजपा के प्राथमिक सदस्य भी नहीं थी और थे उन्हैं संजय ने पार्टी के प्रदेश स्तर के पद पर बैठा दिया। किस्सा भी चर्चाओं में सरेआम है कि ‘’संजय को जो भा गया, वह संगठन में सब कुछ पा गया’’। उत्तराखण्ड के जमीनी कार्यकर्ता भले ही प्रदेश कार्यसमिति के समय न बन पाये मगर सहारनपुरवासी विनय रोहिला को प्रदेश उपाध्यक्ष बना दिया गया।

मुरादाबाद संभल के रहने वाले संजय कुमार गुप्ता अब अपने को रुद्रपुर का बताते रहे हैं ताकि राज्य में बीजेपी के  कमजोर ढांचे का लाभ उठाकर भविष्य में चुनाव भी लड़ा जा सके। उसके आका शिवप्रकाश भी ठाकुरद्वारा मुरादाबाद के निवासी हैं, पिछले चुनाव में उनकी सीएम बनने की इच्छा ने जो हिलोरें और जोर मारा कि वे भी अपने को जसपुर काशीपुर का बताने लगे, लेकिन तब भी बात नहीं बनी।

भाजपा सूत्रों का कहना है कि संजय कुमार अब किसी बड़े प्रदेश के संगठन मंत्री बनने के लिए अपने पूरे घोड़े खोल चुके हैं,  संजय कुमार को लग चुका है कि उत्तराखंड भाजपा के कार्यकर्ता और पदाधिकारी उनके खिलाफ हैं  और उनका गुस्सा कभी भी उनपर खुलकर फूट सकता है। उनके घमंड हठधर्मिता दुर्व्यवहार के कारण संजय का अब उत्तराखंड में टिकना मुश्किल है । अनेक बार कार्यकर्ताओं के गुस्से का शिकार भी संजय कुमार होते-होते बचे हैं पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रकाश सुमन ध्यानी के द्वारा नगर निगम का टिकट गलत व्यक्ति को देने पर ध्यानी द्वारा संजय को प्रदेश कार्यालय में सार्वजनिक रूप से डांटना अभी भी कार्यकर्ताओं को याद है। भले उसके बाद प्रकाश सुमन ध्यानी जैसे भाजपा के पुराने कार्यकर्ता को संगठन में कहीं भी संजय कुमार ने  आने नहीं दिया । या यूँ कहें संजय कुमार ने प्रकाश सुमन ध्यानी से अपने उस अपमान का जमकर बदला इस तरह लिया कि उन्हें पार्टी की मुख्यधारा से ही बाहर कर दिखाया।

वहीँ यह भी चर्चा है कि पार्टी के जो कार्यकर्ता संजय कुमार की  आंखों में आंखे डाल बात कर सकते थे संजय कुमार ने उन्हें संगठन के छोटे से दायित्व में भी नहीं आने देते हैं । संजय कुमार के कार्यकाल में तीरथ सिंह रावत और अजय भट्ट दोनों उनके चरणों में साष्टांग शरणागत रहे हैं, तीरथ सिंह रावत अपनी शिथिलता और कमजोर क्षमताओं के कारण संजय कुमार पर हावी नहीं हो पाए जब तीरथ हावी होने का प्रयास करते तो संजय अपने आका शिव प्रकाश द्वारा तीरथ को धमका देते थे।
इसी तरह वर्तमान अध्यक्ष अजय भट्ट मुख्यमंत्री बनने की लोलुपता में उनके सामने चूं नहीं  करते ताकि कहीं आरएसएस नाराज ना हो जाय । इस कारण भट्ट ने भी कभी भी संजय कुमार से किसी तरह का टकराव मोल नहीं लिया भले ही कार्यकर्ताओं के बीच में अजय भट्ट अपनी लाचारी भी बता देते थे। उत्तराखंड भाजपा के लोगों ने संजय कुमार के संगठन मंत्री के कार्यकाल को एक खांटी संघ के सरल कार्यकर्ता के बजाय उन्हें किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी के एक सीईओ तरह देखा, जो अपने केबिन में बैठकर सीसीटीवी से हर आने जाने वाले कार्यकर्ता व कार्यकर्तियों पर नज़र रखता रहा है। लेकिन कार्यकर्ताओं के बीच सामान्य रूप से न घुलता – मिलता रहा है।

उल्लेखनीय है कि संघ पृष्ठभूमि के किसी भी व्यक्ति की दिनचर्या, आचार-व्यवहार, खानपान, जनसम्पर्क आदि शालीन और आदर्श होता है किंतु संजय कुमार के महंगे डिजाइनर कपड़े देखते ही बनते हैं। शहर के नामी पार्लर में शेविंग कटिंग फेशियल तथा ब्रांडेड कंपनी के जूते घड़ी और फोन के शौकीन संजय कुमार पर कभी उनके आकाओं की भी नजर नहीं गई जो खुद बहुत संघर्षशील प्रचारक जीवन से राजनीति कर के आये। 

गौरतलब हो कि संघ पृष्ठभूमि के संगठनमंत्री बीजेपी में इसलिए भेजे जाते हैं जो सादा जीवन उच्च विचार से अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं को प्रभावित करें। रोज निरन्तर दुर्गम के बूथों तक प्रवास करें मगर संजय कुमार ने बीते छह सालों में उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों का तक दौरा तक नहीं किया ना ही वे उन वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को जानते हैं जिन्होंने उत्तराखंड में भाजपा की जड़ों को रोपने में अपना जीवन खपा दिया वहीँ पुराने वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से उनका कभी संवाद ही नहीं रहा। वे अपने मतलब और पसन्द के आदमी से मिलते हैं। उनके दरवाजे पर लिखी सूचना  एक अखबार की सुर्खी भी बनी थी कि “अगर दरवाजा बंद हो तो खटखटायें नहीं”।

संजय कुमार के चर्चे और विवाद उत्तराखंडी से बाहर अन्य प्रांतों तक चर्चित हैं। देशभर के संगठन मंत्री उन्हैं उनकी रंगीन मिजाजी और महंगे रहन-सहन के लिए जानते हैं संजय कुमार के संगठन मंत्री रहते भाजपा कार्यालय में अनेक बार टूट फूट हुयी। कभी शेड बनाना कभी कमरे बनाना कभी फर्नीचर खरीदना, वायरिंग बदलना , पेंट पुताई होना वास्तु के लिए बनाए गए पानी के टैंक को बंद कर देना और मनपसंद ठेकेदार को ठेका देना यह संजय कुमार की निजी  इच्छा पर चलता है। खुद संजय कुमार ने पार्टी ऑफिस की पहली मंजिल में अपना निजी कमरा लाखों रुपये खर्च कर किसी पंच सितारे होटल के कमरे से कम नहीं जिसे शहर के नामी आर्किटेक्ट से बनवाया गया।

कोई अध्यक्ष महामंत्री या पार्टी के बड़े लोग संजय कुमार को कभी कुछ कहने का साहस नहीं कर सके। केवल कोश्यारी इसके अपवाद हैं। उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी खंडूरी, निशंक और कोश्यारी में बंटी  हुई है । इन तीनों नेताओं के अलावा अब त्रिवेंद्र सिंह रावत , अजय भट्ट, प्रकाश पन्त और धन सिंह जैसे छोटे गुट भी बन गए हैं और सब के सब संजय कुमार के विरोधी होने के बावजूद संजय कुमार का विरोध नहीं कर पा रहे हैं । इनकी कमजोरियों के कारण संजय की तुगलकी बादशाहत कायम रही और चल रही है ।

संजय कुमार को देख कर नहीं लगता कि उनका आरएसएस के प्रचारक के तौर पर उनकी जीवन में  कभी आरएसएस  का प्रभाव रहा हो । संजय कुमार केवल देहरादून, हरिद्वार , उधम सिंह नगर और हल्द्वानी तक के संपन्न कार्यकर्ताओं और नेताओं के पास प्रवास करते हैं उन्हीं से मन की बात करते हैं,  उन्हीं के कहने पर संगठन के कार्य का संचालन होता है । पार्टी जेब में रहे इसके लिए उन्होंने काशीपुर के कार्यकर्ता आशीष गुप्ता को लगातार दो बार कोषाध्यक्ष बनाया और गुप्ता को आज तक पता नहीं कितना धन किस मद में खर्च होता है। चर्चाओं के अनुसार चेकबुक संजय के कब्जे में है। पार्टी के बड़े-बड़े कार्यक्रम रैलियां चुनावों  का सारा संचालन संजय कुमार और उनकी निजी टीम के द्वारा किया जाता है । 

मितव्ययता से चलने वाली पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पार्टी के संगठन मंत्री संजय कुमार की सेवा में दो ड्राइवर ,दो कुक और दो-दो   पीआरओ हैं। जो कि उनके विश्वस्त बताये जाते हैं। एक पीआरओ सतीश कविदयाल केंद्रीय राज्यमंत्री अजय टम्टा के स्टाफ का लाख रुपये महीने का कर्मचारी है किन्तु वह हर समय संजय कुमार के साथ साये की तरह रहता है भले प्रधानमंत्री मोदी सांसदों मंत्रियों से अपने परिजनों को प्रतिनिधि तक बनाने के लिए तक मना करते हैं वहां उसी सरकार में केंद्रीय मंत्री का स्टॉफ जिसे भारत सरकार में योगदान देना था वह संजय कुमार की सेवा में है । दूसरा पीआरओ लोकेश पंत है जिसे संजय ने विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चंद्र अग्रवाल के विशेष कार्य अधिकारी के तौर पर भेजा मगर अग्रवाल ने उसे पीआरओ बनाने की बात कि इससे नाराज संजय ने उसे वापस बुला लिया। 

हैरत की बात है कि राज्य के अनेक नेता जो खुद को उत्तराखंड के बाहुबली , तेज तर्रार, मुख्यमंत्रीपद का सपना देखने वाले, गलत बर्दाश्त न करने वाले की छवि वाले,बड़बोले बयानबाज भी संजय के मुद्दे पर  चुप्पी साध जाते हैं। क्योकि संजय कुमार के खिलाफ आवाज उठाने से उसके आका शिव प्रकाश नाराज हो जाएंगे क्योंकि जिला प्रचारक से लेकर क्षेत्र प्रचारक तक शिव प्रकाश दो दशकों तक उत्तराखंड में संघ का काम कर चुके हैं। किसी भी बीजेपी नेता द्वारा संगठन मंत्री संजय कुमार का विरोध करना  समझो शिव प्रकाश का विरोध करना है इतिहास गवाह है कि अतीत में जिन-जिन की भी शिव प्रकाश से बिगड़ी वह घर बैठा। पार्टी के अनेक वरिष्ठ नेता जिन्हें आज विधायक, मंत्री होना था या पार्टी संगठन में अध्यक्ष महामंत्री होना था वे शिव प्रकाश की नापसंद के कारण आज कार्यसमिति के सदस्य तक नहीं बन पाए हैं। 

ऐसा नहीं कि केंद्र के संज्ञान में सारी बातें नहीं हैं शिव प्रकाश-संजय की सल्तनत के साथ-साथ अजय भट्ट की अक्षमता और नकारापन इन सारे हालातों को हवा दे रहा है। अजय भट्ट जो कि त्रिवेंद्र सरकार में केबिनेट दर्जे के दायित्व धारी भी बनना चाहते हैं , राज्यसभा में भी जाना चाहते हैं और नैनीताल लोकसभा से भी उनकी दावेदारी है ऐसे हालात में अजय भट्ट को संजय और शिव प्रकाश की बहुत जरुरत है। इन्हीं चन्द स्वार्थों के कारण पूरी पार्टी दो लोगों के पास गिरवी है।

संजय कुमार के कारनामों से प्रदेश के सुदूर तक का कार्यकर्ता भी अवगत है। संगठन मंत्री के तौर पर जो मान-सम्मान अभी तक के पूर्ववर्ती संगठन मंत्रियों ने कमाया उसे संजय कुमार ने मिट्टी में मिला दिया क्योंकि संजय कुमार ने इस प्रतिष्ठित पद को व्यवसायिक पद  बना डाला ।

भारतीय जनता पार्टी के उत्तराखंड में 22 सांगठनिक जिले हैं अब देवप्रयाग तेइसवां जिला बना है। सभी जगह जिला कार्यालय खोले जाने हैं ,  अनेक जगह खुल भी गये। सभी कार्यालयों के लिये  भूमि की खरीद लगभग हो चुकी है और आश्चर्य का विषय है सुदूर क्षेत्रों में जहां जमीन कौड़ियों के भाव है  उनके  लिये लाखों करोड़ों का भुगतान किसी के गले नहीं उतरता है । संजय और उसकी विश्वस्त टीम द्वारा पूरे खेल को अंजाम दिया । उत्तरकाशी में भाजपा कार्यालय खरीद सर्वाधिक चर्चाओं में है । एक भीड़ भाड़ वाली गली में छोटे से घर का भारी भुगतान किया जाना अनेक सवाल खड़े करता है।

जिन त्रिवेंद्र सिंह रावत को संजय ने अपने कार्यकाल में कहीं महत्व नहीं दिया। उनके चुनाव क्षेत्र में स्टार प्रचारकों के कार्यक्रम लगाने में कंजूसी की, चुनाव सामग्री भेजने में कंजूसी की वे आज मुख्यमंत्री हैं। ये पासा संजय पर उल्टा पड़ा। धनसिंह रावत के निकटस्थ जिस कार्यालय मंत्री ऊर्बा दत्त को एड़ी चोटी एक कर संजय ने बाहर किया उसे सरकार ने ओएसडी बना रोज कार्यालय बैठने के आदेश दिये हैं।

उत्तराखंड के लगभग सभी विभाग प्रचारकों जिला प्रचारकों ने उच्च स्तर तक पर संजय की शिकायत की है क्योंकि संजय की गतिविधियों से उनकी स्वयं की प्रतिष्ठा व तप भी प्रभावित हो रहा है । संघ के सर संघचालक से लेकर कृष्णगोपाल और  भैयाजी जोशी तक तमाम साक्ष्यों के साथ समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के कतरनों के साथ शिकायत की जा चुकी है । शिकायत इतनी प्रभावी है कि अब गुरु को भी चेले को बचाने और उस की पैरवी करने में दिक्कत होगी क्योकि सुबूत सब जगह जा चुके हैं । अनेक बार भाजपा कार्यालय में महिलाओं का हंगामा और सीवर लाइन के चोक होने की खबर को लेकर भी चर्चा हुई कांग्रेस के प्रवक्ता सुरेंद्र कुमार ने अनेक बार इस सम्बंध में सनसनीखेज आरोप लगाए । पत्र पत्रिकाओं की सुर्खियों के बाद भी संजय की तानाशाही चलती रही, किन्तु नये हालातों में भाजपा के इस बाहुबली की रुखसती तय हो चुकी है। इन प्रतिकूल परिस्थितियों में संजय सहमा सहमा हालातों पर नजर रखे है क्योंकि नागपुर अब मुखर है।

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