मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र ने विवादों से परे,सबको साथ लेकर आगे बढ़ने की बनायी छवि
- मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र लोकसभा चुनाव के दौरान कहीं भी विवादों में नहीं पड़े
राजेन्द्र जोशी
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा के भीतर चल रहे तमाम विवादों के बाद भी पार्टी को साथ लेकर सफलता से चलते दिखाई दिए। उन्होंने इस दौरान विपक्ष के गढ़ों में जाकर भाजपा की रिकॉर्ड जन सभाएं की जहां पार्टी का अस्तित्व ना के बराबर रहा है।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक उन्होंने हॉट स्पॉट और ब्लैक स्पॉट इलाकों में 55 से ज्यादा जनसभाएं करते हुए कभी भी यह नहीं देखा कि उनकी सभा में कितने लोग उनकी बात समझने या सुनने को आये हुए हैं। बल्कि इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा जनहित में किये गए कार्यों की फेहरिस्त जहां जनता के समक्ष रखी वहीं अपनी सरकार द्वारा किये गये कार्यों से भी जनता को रूबरू कराया।
जानकारों का कहना है कि विपक्ष सहित पार्टी के कुछ लोग भले ही उन्हें अक्खड़ मिजाज़ के नेता के रूप में उनको परिभाषित करते रहे हैं लेकिन लोकसभा चुनाव के दौरान वे कहीं भी इस तरह के नज़र नहीं आये वे जहां भी जनसभा करने जाते बेहद ही शांत मुद्रा में सबकी बात सुनते हुए और सबको साथ लेते हुए चलते दिखाई दिए।
मामला चाहे पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चन्द्र खण्डूरी के पुत्र मनीष खण्डूरी का अचानक कांग्रेस में शामिल होने का रहा हो या पौड़ी लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरने का और उसके बाद पूर्व विधायक केदार सिंह फोनिया का भाजपा में वापसी के बाद पूर्व मुख्यमंत्री खण्डूरी पर निशाना साधने का मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र कहीं भी विवादों में नहीं पड़े। जबकि उस दौरान फोनिया को पार्टी में लेने के बाद भाजपा का एक धड़े में खासी नाराजगी नजर आई थी। उन्होंने फोनिया के बयान को समाज के एक वर्ग को चुनौती देने वाला बताया था।
वहीं लोकसभा चुनाव के दौरान खानपुर विधायक कुंवर प्रणव सिंह और झबरेडा विधायक देशराज कर्णवाल के बीच चल रहे वाक् युद्ध का वे इस मामले में कहीं भी पड़ते नज़र नहीं आये । इतना ही नहीं रूडकी और हरिद्वार कि जनसभाओं में पार्टी के पोस्टर बैनर पर उनके चित्र के ना होने को भी वे नज़रंदाज़ करते हुए अपनी जनसभाओं में व्यस्त रहे और न ही उन्होंने इसकी कहीं शिकायत ही की कि पोस्टर -बैनरों से मुख्यमंत्री का चित्र क्यों गायब था।
इतना ही नहीं कुमायूं के प्रमुख केंद्र अल्मोड़ा में जहाँ से मंत्री रेखा आर्य और विधायक चन्दन राम दास लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी के रूप में दावेदार थे और चर्चाओं के अनुसार दोनों ही इस बार चुनाव के दौरान कहीं -कहीं ही नज़र आये ऐसे में मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत द्वारा वहां कई जनसभाओं का किया जाना अपने आप में उनके राजनीतिक कद को प्रदर्शित करता है।
इतना ही नहीं राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह सहित देश के 12 राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष लोक सभा चुनाव मैदान में थे लेकिन पार्टी ने केवल उत्तराखंड में ही पार्टी के महामंत्री को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया इस मामले में भले ही भाजपा के कुछ नेताओं ने दबी जुबान से इस परम्परा के शुरू किये जाने का विरोध किया लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र इस मामले में भी शांत नज़र आये ।
इतना ही नहीं देश में भाजपा शासित राज्यों में मुख्यमंत्री को ही चुनाव संचालन समिति का अध्यक्ष बनाया जाता रहा है लेकिन यहां भाजपा ने एक नया प्रयोग और कर डाला और राज्य मंत्री धनसिंह रावत को इस समिति का अध्यक्ष बना दिया,राजनीतिक नज़रिये से यदि देखा जाय तो यह मुख्यमंत्री के साथ अन्याय ही था, लेकिन मुख्यमंत्री चुपचाप अपना काम करते रहे।
नैनीताल लोकसभा क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत एवं भगत सिंह कोश्यारी जहां चटपटे वाक् युद्ध में उलझे रहे वहीं मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इससे भी अपने को दूर रखा । इतना ही नहीं उन्होंने प्रदेश संगठन को भी खुली छूट दी और अपने निकटस्थों को संगठन पर थोपने की भी कोई विशेष कोशिश नहीं की। इस प्रकार संगठन और सरकार में हुए सहज सामंजस्य बनाते हुए वे चलते नज़र आये ।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने इस लोकसभा चुनाव में अपने भाजपा संगठनमंत्री के कार्यकाल के अनुभवों का लाभ लेते हुए अपना प्रभुत्व जमाने और अपनी छवि निखरने के बजाय सबको साथ लेकर किसी भी तरह जीत के लिए प्रयास करते नज़र आये।