हंगामा है क्यों बरपा : जो सीएम दिल्ली अपने स्वास्थ्य की जांच जो करवाने चले गए
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र के दिल्ली रेफर होने पर आखिर कोहराम क्यों ?
विघ्नसंतोषियों की जमात तो अपने सारे काम छोड़कर फेसबुक, व्हॉट्स ऐप और ट्विटर में जुट गए
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
चिकित्सकों की नियुक्ति के मामले में त्रिवेंद्र सरकार ने खींची लंबी लकीर
विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हमेशा से चुनौती रहा है लेकिन राज्य में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई वाली सरकार ने पहली बार इस धारणा को बदलने का काम किया है। कोविड काल में आई चुनौतियों के बीच राज्य सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं की ओवरहाॅलिंग कर इसे अंजाम तक पहुंचाने का काम किया। इसी का नतीजा है कि राज्य में आज चिकित्सकों की संख्या दो हजार के आंकड़े को पार कर गई है।
उत्तराखंड के स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सकों के कुल 2735 पद सृजित हैं लेकिन राज्य में कभी भी शत-प्रतिशत चिकित्सकों की तैनाती तो दूर आधे चिकित्सकों तक की नियुक्तियां करने में सरकारें विफल रही हैं। वहीं, मौजूदा त्रिवेंद्र सरकार ने इस धारणा को बदलने का काम किया है। आंकड़े खुद वर्तमान सूरतेहाल को बयां कर रहे हैं कि किस तरह त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में चिकित्सकों की तैनाती ने रिकार्ड स्तर को छुआ है। स्वीकृत पदों के सापेक्ष जहां कुल 1635 नियमित चिकित्सकों की नियुक्ति हो चुकी है तो 562 पदों को संविदा व बांड के जरिए भरने का काम त्रिवेंद्र सरकार ने किया है। जबकि खाली पड़े 763 पदों पर भर्ती के लिए राज्य चयन आयोग को अध्याचन भेजा गया है।
चिकित्सकों ने कोरोना से ग्रसित मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को उपचार के लिए दिल्ली के हायर सेंटर में रेफर क्या किया कि विरोधियों ने तूफान खड़ा कर दिया। इस बहाने एक मिशन बनाकर नकारात्मक विचारों से सोशल मीडिया को पाट दिया गया। राज्य की स्वास्थ्य सेवा का पोस्टमार्टम शुरू हो गया। यहां तक कि कोरोना काल में राज्य के भीतर हुए चिकित्सा व्यवस्था में सुधार को भी सिरे से खारिज कर दिया गया। विघ्नसंतोषियों की जमात सारे काम छोड़कर फेसबुक, व्हॉट्स ऐप और ट्विटर में जुट गए। ऐसा मौहौल बनाने के प्रयास शुरू हो गए कि जैसे इतिहास में पहली बार किसी राज्य के मुख्यमंत्री को उपचार के लिए दिल्ली के हॉयर सेंटर में रेफर किया गया हो।
विश्वभर में कहर मचाने वाले जानलेवा वायरस कोविड-19 ने बीते 18 दिसम्बर को मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत और उनके परिजनों को अपनी चपेट में ले लिया। शुरुआत में उनमें इसका कोई लक्षण दिखाई नहीं दिया। होम आईसोलेशन के दौरान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र वर्चुअल माध्यम से विधानसभा के शीतकालीन सत्र समेत महत्वपूर्ण बैठकों में प्रतिभाग भी करते रहे और सरकारी काम भी निबटाते रहे।
इसी बीच अचानक खांसी और हल्का बुखार आने पर उन्हें दून अस्पताल में भर्ती करवाया गया। शरीर की जांचें होने पर चिकित्सकों की टीम को लगा कि एहतियात के तौर पर मुख्यमंत्री को ऐम्स दिल्ली रेफर कर दिया जाना चाहिए। वह दिल्ली रेफर क्या हुए कि विरोधियों में कोहराम मच गया। आभासी मंच पर सवाल उछाले गए कि क्या उत्तराखण्ड की स्वास्थ्य सेवाएं इतनी लचर हैं कि मुख्यमंत्री को उपचार के लिए दिल्ली जाना पड़ रहा है ? सवाल उछालने वाले इन लोगों को विघ्नसंतोषी न कहा जाए तो और क्या कहा जाए। क्या वे लोग नहीं जानते कि कोरोना ने देश और दुनिया में किस तरह का कहर मचा रखा है। स्वास्थ्य सेवा में अग्रणी देश इटली में तक लाखों लोग कोरोना की वजह से अपनी जान गंवा चुके हैं।
कोरोना काल में त्रिवेंद्र सरकार ने स्वास्थ्य सुविधाओं में किया अभूतपूर्व इजाफा
यह है दृढ़ इच्छाशक्ति : कोविड संक्रमण से निपटने के लिए राज्य सरकार ने 11 कोविड अस्पताल, 27 कोविड हेल्थ सेंटर व 422 कोविड केयर सेंटरों का किया निर्माण
- मार्च 2020 से नवंबर 2020 तक तुलनात्मक विवरण
- मार्च 2020 दिसंबर 2020
- -आईसोलेशन बेड 1200 31,505
- -आक्सीजन सपोर्ट बेड 673 3535
- -आईसीयू 216 836
- -वेंटिलेटर 116 710
- -सैंपल टेस्टिंग सरकारी लैब 1 13
- -सैंपल टेस्टिंग प्राइवेट लैब 0 15
- -ऑक्सिजन सिलिंडर 1193 9917
- -एम्बुलेंस 214 364
- -ट्रू नेट 10 61
आठ महीने बीत गए पर कोरोना की मारक और घातक क्षमता का अभी सटीक अंदाजा नहीं लगाया जा सका है। ”मैन टू मैन” कोरोना का प्रभाव भी वैरी कर रहा है। किसी को कोरोना छू कर निकल जाता है तो किसी को उसके छूने मात्र से जान गंवानी पड़ जाती है। संशय की इस स्थिति में दून अस्पताल के चिकित्सकों ने मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र को दिल्ली हॉयर सेंटर रेफर कर दिया तो इसमें गलत क्या हुआ है। उनसे पहले कई राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली रेफर हुए हैं।
याद करिए कि नेता प्रतिपक्ष डा. इंदिरा हृदयेश भी एम्स दिल्ली से ही स्वास्थ्य होकर लौटी हैं। यह भी तो सच है कि लोकतंत्र में मुख्यमंत्री प्रदेश का मुखिया होता है। स्वास्थ्य महकमे का धर्म है कि वो मुख्यमंत्री का ख्याल रखे। जरा सोचिए! यदि दून अस्पताल में भर्ती रहते मुख्यमंत्री की स्थिति बिगड़ जाती तो डॉक्टर्स की टीम को किसी तरह कोसा जाता। ऐसे कई उदाहरण हैं कि कोरोना संक्रमित अच्छे-खासे व्यक्ति का तीन से चार घण्टे में ही मल्टी ऑर्गन फेलियर होते देखा गया है।
सवाल उछालने वाले व्यक्तियों को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कोरोना को सामान्य बीमारी की तरह नहीं लिया जा सकता। इसे लेकर समूची दुनिया में अलर्ट घोषित है। फिर ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री को दिल्ली हॉयर सेंटर रेफर करने पर कोहराम मचाने की जरूरत क्या है। सच तो यह भी है कि दिल्ली समेत दुनियाभर के हॉयर सेंटर्स में तक कोरोना को पुख्ता इलाज नहीं है। होता तो वहां कोरोना के मरीजों का मृत्यु दर जीरो होता।
प्रजातंत्र का ये मतलब नहीं होता कि सिर्फ विरोध के लिए विरोध किया जाए। विषय और देशकाल-परिस्थितियों की समझ तो होनी ही चाहिए। हालांकि जनता समझ रही है कि मुख्यमंत्री को इस बात पर आलोचना का शिकार बनाना कितना उचित है। जनता नहीं समझ रही होती तो मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र के अच्छे स्वास्थ्य के लिए राज्य के कोने-कोने में यज्ञ, पूजा-पाठ और दुआएं नहीं हो रही होतीं। ये भी तो जरा देखिए !
कोरोना काल में उत्तराखण्ड सरकार ने जनता के स्वास्थ्य को प्राथमिकता पर रखा। प्रदेश के आठ जनपदों और दून मेडिकल कॉलेज में 836 आईसीयू बेड, आईसोलेशन बैड 31505, वेंटिलेटर 710 और 28 कोरोना सैम्पल टेस्टिंग लैब का इंतजाम किया। क्या इन दावों को भी खारिज किया जाएगा। त्रिवेन्द्र सरकार के पौने चार वर्ष के कार्यकाल में 1116 डाक्टर्स की रिकार्ड तैनाती हुई जबकि इससे पूर्व वर्षो में कुल 1081 डाक्टर ही नियुक्त हो पाए थे।