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कौन है उत्तराखंड और यूपी की इस घटना के पीछे ?

ऐसे में वह कौन सी ताकत है जो पीएम तक के निर्देशों का उड़ा रही है मौखौल 

आदित्य ने योगी के कड़े फैसले उनके प्रशंसकों की संख्या में लगातार कर रहे हैं इजाफा 

निशीथ जोशी जी की वाल से साभार  
उत्तराखंड और यूपी में अभी एक घटना क्रम हुआ है। जिसमें यूपी के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी और उनके परिवार के नाम का उपयोग किया गया है। आदित्य नाथ योगी जी एक ऐसे सन्यासी और राजनेता हैं जिन्होंने कभी भी अपने परिवार के किसी सदस्य को भी इसकी अनुमति नहीं दी है। जब से उन्हें हमने जाना है हमेशा पाया है कि अपने मूल्यों, सिद्धांतों और छवि को लेकर उन्होंने कड़ाई से स्वयं बनाए नियमों का पालन किया है। ऐसे में कोई तीसरा उनके नाम का दुरपयोग करे यह सहज और सरल बात नहीं हो सकती।
जहां तक राजनीति का सवाल है उसमें किसी पर भरोसा भी नहीं किया जा सकता है ना किया जाना चाहिए। आदित्य ने योगी के कड़े फैसले जहां उनके प्रशंसकों की संख्या में लगातार इजाफा कर रहे हैं वहीं उनके विरोधियों को भी घबराहट होने लगी है। इनमें यूपी के वह राजनीतिक दल और नेता भी शामिल हैं जो मान कर चल रहे थे कि सरकार और शासन चलाने एक योगी सन्यासी के वश की बात नहीं। साथ ही सत्तारूढ़ दल के ऐसे लोग भी हैं जिनको लगता था कि भविष्य के उत्तर प्रदेश के मुखिया के लिए उनका राजनीतिक मार्ग प्रशस्त हो सकता है, लेकिन योगी की बढ़ती स्वीकार्यता और लोकप्रियता ने उनके सपनों को ध्वस्त सा कर दिया है।
निश्चित तौर पर जहां राजनीति होगी वहां शासन चलाने वाली नौकरशाही की भूमिका भी बहुत ही महत्वपूर्ण और संवेदनशील हो जाती है।
ऐसे में दो दिन पूर्व उत्तराखंड के कर्ण प्रयाग में जो कुछ हुआ उसे सहज और एक मनबढ़ निर्दलीय विधायक की
नादानी समझ कर छोड़ देना उचित नहीं होगा। क्योंकि जिस मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी ने स्वयं अपने पिता के शरीर त्याग करने पर संयम बरतते हुए सन्यासी धर्म का पालन किया। जिनके परिवार ने भी पूरी सतर्कता बरतते हुए अंतिम संस्कार किया। कहीं भी यूपी के मुख्यमंत्री के नाम का उपयोग नहीं किया। मीडिया में यह सब कुछ विस्तार से प्रचारित प्रसारित हो गया था।
ऐसे में जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं देशव्यापी लॉक डाउन का पूरी पवित्रता से पालन कर रहे हों। सभी केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री और विपक्षी दलों के नेता भी लॉक डाउन को समर्थन देने के साथ उसके नियमों का पालन कर रहे हों। एक निर्दलीय विधायक जिसका नाम पहले भी अपराधिक घटनाओं में बहुचर्चित रहा हो। लॉक डाउन के सभी नियमों को रौंदता हुआ यूपी से उत्तराखंड की राजधानी देहरादून तक अपने काफिले के साथ बिना किसी पास के पहुंच जाए यह सहज नहीं कहा जा सकता। कोई तो ऐसा ताकतवर जरूर सिस्टम में है जो इसकी मदद पर्दे के पीछे से कर रहा था। क्योंकि यह सब उस दौरान हुआ है जब कोरोना वायरस के कारण जांच में बहुत सतर्कता और कड़ाई बरती जा रही थी।
यहां तक भी माना जा सकता है कि चूक हो गई। इसके बाद जो हुआ वह और अधिक चौंकाने और गंभीरता से सोचने पर मजबूर करने वाला है। बिना यूपी सरकार के किसी सिफारिश के, बिना मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी के कार्यालय से संपर्क किए और तहकीकात किए उत्तराखंड सरकार का एक वरिष्ठतम आई ए एस अफसर विधायक और उसके साथियों को यात्रा की अनुमति प्रदान करने के लिए देहरादून के जिलाधिकारी को उत्तराखंड शासन की ओर से पत्र लिख कर सिफारिश करता है। साथ ही रुद्र प्रयाग, चमोली और पौड़ी के जिलाधिकरियों को उसकी प्रतिलिपि भी भेज देता है। जबकि यूपी के मुख्यमंत्री के भाई और परिवार को इसकी भनक तक नहीं लगती है।
विधायक अपने साथियों के साथ कर्ण प्रयाग तक पहुंच जाता है। गोचर में उसे रोकने का प्रयास होता है तो वह बैरियर पर तैनात पुलिस कर्मियों से जोर जबरदस्ती कर आगे चला जाता है। फिर जानकारी दिए जाने पर पुलिस कर्ण प्रयाग में रोकती है तो आप उनसे भी उलझ जाता है। जब यह मामला मीडिया में उछलता है तो उत्तराखण्ड सरकार के प्रवक्ता काबिना मंत्री जांच की बात कह तो देते हैं लेकिन होता कुछ नहीं। राज्य के मुख्यमंत्री, मुख्यसचिव इस मामले पर चुप्पी साध लेते हैं। यह सब करने वाले विधायक के खिलाफ केस दर्ज करने के लिए देर रात तक विचार विमर्श किया जाता है तब पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी मीडिया को सूचित करते हैं। विधायक को वापस लौटाया जाता है तो वह फिर पुलिस से हरिद्वार में उलझ जाता है। जब मामला बहुत गरमाता है तो उत्तराखंड सीमा से यूपी में घुसने पर बिजनौर जिले की पुलिस उसे लॉक डाउन भंग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है। फिर जमानत पाने के बाद विधायक और उसके साथियों को 14 दिन के लिए एकांतवास के लिए रोक लिया जाता है। इस पूरे सीन से वह नौकरशाह साफ बचा लिया जाता है जिसने यूपी के मुख्यमंत्री के पितृ कार्य की बात शासकीय पत्र में लिखी थी। उत्तराखंड, यूपी से लेकर दिल्ली तक एक बड़ी लॉबी इस मामले को ठंडा करने में जुट जाती है। नौकरशाही भी अपनी सारी ताकत लगा देती है।
क्या यह सहज लगता है? राजनीति में साजिश वहीं से रची जाती हैं और रही हैं जहां विश्वास भरोसे में बदल गया हो। एक वाक्य है सावधानी हटी तो दुर्धटना घटी।
कुछ सवाल और। क्या जिस नौकरशाह ने बद्रीनाथ केदारनाथ जाने के लिए सिफारिश की उसे पता नहीं था कि लॉक डाउन चल रहा है। इन धामों के कपाट 15 मई तक बंद हैं। यहां के तीर्थ पुरोहितों और रावल तक को वहां तक पहुंचने के लिए पीएम तक गुहार लगानी पड़ी है। इसके अलावा रावल बाहर से आए हैं इसलिए उनको एकांतवास में रहना पड़ रहा है। ऐसे राज्य के लोगों को भी कोरोना वायरस के रेड ज़ोन, ऑरेंज ज़ोन से उत्तराखंड के ग्रीन जोन में जाने की अनुमति आसानी से नहीं मिल रही। अनुमति मिलेगी भी तो एकांतवास अनिवार्य शर्त है। इन धामों के रावल और तीर्थ पुरोहितों को भी इन्हीं का पालन करना पड़ रहा है।।सारे नियम प्रधान मंत्री के निर्देशन में बनी कमेटी के तय किये हुए हैं। ऐसे में कौन सी ताकत है जो पीएम तक के निर्देशों का मौखौल उड़ा दे । कुछ तो असामान्य है। क्या है यह पर्दे के पीछे रह जाता है या सामने आता है यह भविष्य के गर्भ में है।

(लेखक देश के जाने माने वरिष्ठ पत्रकार और देश के कई नामी-गिरामी समाचार पत्रों के संपादक और सलाहकार रहे हैं)

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