POLITICS

क्या हुआ जब उत्तराखंड की कहानी हिमाचल में दोहरायी गयी!

  • जो खंडूड़ी के साथ उत्तराखंड में हुआ वही अब हिमाचल में धूमल के साथ भी हो गया !
  • कहीं नड्डा समर्थकों ने तो नहीं किया धूमल के साथ विश्वासघात और भीतरघात ! 
  • जब जनता ने किया था  भाजपा के ”खंडूरी हैं जरुरी” के नारे को दरकिनार !

देहरादून : हिमाचल में हुए विधानसभा चुनाव में  उत्तराखंड का चुनावी इतिहास एक बार फिर लौट कर आया है यहाँ वर्ष 2007  के विधान सभा चुनाव में खंडूरी को जरुरी  बताया जा रहा था उस वक़्त कोटद्वार की जनता ने खंडूरी को हरा डाला था और वे इस कारण मुख्यमंत्री की कुर्सी के करीब नहीं पहुँच पाए ठीक इसी तरह अब हिमाचल में हुआ है वहां  की सुजानपुर सीट पर भाजपा के सीएम पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल कांग्रेस के उम्मीदवार राजिन्दर सिंह से हार गए हैं। वे हिमाचल के मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। 

हालाँकि इस बात का किसी को अंदाजा नहीं रहा होगा कि हिमाचल में ऐसे चौंकाने वाले परिणाम सामने आएंगे। हिमाचल की जनता ने एक ओर भाजपा को पूर्ण बहुमत देकर सत्ता की कुर्सी सौंपी है, वहीं दूसरी ओर जिस नेता को भाजपा ने इस कुर्सी पर बैठाना था वह खुद ही चुनाव हार गए हैं। जी हां, जीत के जश्न में भाजपा को सबसे बड़ा झटका सीएम उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल की चुनाव हार से लगा है।

हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा को साफ बढ़त मिली है। हिमाचल प्रदेश में बीजेपी ने स्पष्ट बहुमत को हासिल किया है, लेकिन भाजपा के सीएम पद के उम्मीदवार पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के हाथ से सीएम की कुर्सी निकल गयी है। सुजानपुर सीट पर भाजपा के सीएम पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल कांग्रेस के उम्मीदवार राजिन्दर सिंह से हार गए हैं। हार के बाद धूमल ने कहा कि उनकी व्यक्त‍िगत हार मायने नहीं रखती है, पार्टी की जीत ज्यादा महत्वपूर्ण है।

हिमाचल प्रदेश के पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के सुजानपुर सीट खोने के बाद भाजपा को सीएम पद के लिए कोई दूसरा नाम लाना होगा। इसमें सबसे ऊपर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा हैं। नड्डा को हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद के तौर पर भी देखा जा रहा था, लेकिन ऐनवक्त पर प्रेम कुमार धूमल को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया। हालांकि नड्डा समर्थक अपने नेता को सीएम पद का स्वाभाविक उम्मीदवार मान रहे थे। भाजपा के लिए सीएम पद प्रत्याशी की हार का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले उत्तराखंड में 2012 के विधानसभा चुनाव में पूर्व सीएम भुवन चंद्र खंडूड़ी को हार का सामना करना पड़ा था। भाजपा ने तब खंडूड़ी के नाम पर चुनाव लड़ा था, लेकिन कोटद्वार सीट से खंडूड़ी खुद चुनाव हार गए।

खंडूड़ी को कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी ने हराया था, जो बाद में स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए। इस चुनाव में कोई भी पार्टी पूर्ण बहुमत नहीं बना पाई थी और बाद में कांग्रेस ने जोड़-तोड़ कर सरकार बनाई। अगर खंडूड़ी ये सीट जीत लेते तो भाजपा का पलड़ा भारी हो सकता था, लेकिन उनकी हार ने पार्टी के जोड़-तोड़ कर सरकार बनाने के संतुलन को भी बिगाड़ दिया था। तब आरोप लगे थे कोटद्वार में बड़े पैमाने पर भितरघात हुआ है। हालांकि खंडूड़ी ने भितरघात के सवाल पर कहा था कि मुझे जो भी कहना है वो पार्टी के फोरम में कहूंगा। तब कांग्रेस ने खंडूड़ी की हार को भाजपा की नैतिक हार करार दिया था। इसके अलावा उत्तराखंड में हाल के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत भी चुनाव हार गए थे। वह भी सीएम उम्मीदवार थे। हालांकि इस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत नहीं मिला और भाजपा ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत हासिल कर सरकार बनाई।

devbhoomimedia

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : देवभूमि मीडिया.कॉम हर पक्ष के विचारों और नज़रिए को अपने यहां समाहित करने के लिए प्रतिबद्ध है। यह जरूरी नहीं है कि हम यहां प्रकाशित सभी विचारों से सहमत हों। लेकिन हम सबकी अभिव्यक्ति की आज़ादी के अधिकार का समर्थन करते हैं। ऐसे स्वतंत्र लेखक,ब्लॉगर और स्तंभकार जो देवभूमि मीडिया.कॉम के कर्मचारी नहीं हैं, उनके लेख, सूचनाएं या उनके द्वारा व्यक्त किया गया विचार उनका निजी है, यह देवभूमि मीडिया.कॉम का नज़रिया नहीं है और नहीं कहा जा सकता है। ऐसी किसी चीज की जवाबदेही या उत्तरदायित्व देवभूमि मीडिया.कॉम का नहीं होगा। धन्यवाद !

Related Articles

Back to top button
Translate »