बे-लगाम वजीर और बे-परवाह शहंशाह

- सरकार की कमान हाथ में आते ही सत्ता के मद में चूर है आला अफसर
- आखिरकार हुजूर को ही तो भुगतना होगा वज़ीर के कृत्यों का खामियाजा
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून। इतिहास गवाह है कि बे-लगाम वजीरों की वजह से कई शहंशाहों को खामियाजा भुगतने को मजबूर होना पड़ा है। कुछ समय पहले की नजीर से भी मौजूदा शहंशाह ने लगता है कि कोई सबक नहीं लिया है। नतीजा यह है कि वजीर के बहाने से ही शहंशाह को निशाने पर लिया जा रहा है और शहंशाह हैं कि वजीर का मोह त्याग ही नहीं पा रहे हैं।
विधानसभा चुनाव में सूबे के अवाम ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया। भाजपा ने तमाम दावों को दरकिनार करके अपने एक नेता को शहंशाह की कुर्सी पर बैठा दिया। जाहिर है कि राजकाज चलाने के लिए वजीरों की भी जरूरत होती है। ऐसे में शहंशाह ने भी वजीरों की फौज खड़ी कर ली। हां, एक वजीर को सबसे ज्यादा ताकत दे दी। आज ये वजीर पूरी सरकार को अपने अंदाज में ही चला रहा है। न तो विधायकों की परवाह है और न ही अफसरशाही का। जिसे जहां चाहते हैं पदासीन कर देता है। तमाम फैसले वैसे ही हो रहे हैं, जैसे ही पिछली सरकार के समय में। अहम बात यह भी है कि उस वक्त विपक्ष की भूमिका निभा रही भाजपा ऐसे ही फैसलों को लेकर तत्कालीन सरकार की घेरा बंदी करती रही है।
महज पांच माह के कार्यकाल में ही वजीर के तमाम फैसले खासी चर्चा में हैं। अब सियासत के इस खेल में शहंशाह को घेरने के लिए वजीर की घेराबंदी शुरू हो रही है। ऐसा नहीं है कि शहंशाह को इसकी भनक नहीं है। लेकिन शहंशाह वजीर के मोह में इस कदर डूबे हैं कि उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है। वजीर के हर फैसले पर आंख बंद करके मुहर लगाई जा रही है। अब देखने वाली बात यह होगी कि वजीर की घेराबंदी का क्या सियासी नतीजा सामने आता है।