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स्वावलम्बी भारत निर्माण में गांधी दर्शन

युवा गाँधी दर्शन को अपनाकर अपने व्यक्तित्व एवं राष्ट्र के विकास में पूर्ण ऊर्जा एवं उत्साह से हों समर्पित 

कमल किशोर डुकलान
सरलता और सादगी की पराकाष्ठा का व्यक्तित्व निर्माण एवं वर्तमान जीवन में सामाजिक, राजनीतिक एवं अंतरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य में आज उतना ही प्रासंगिक है,जितना 100 साल पहले था। हम जीवन में विकास के पथ पर कितने भी आगे क्यों न बढ़ जाएं किंतु गांधी जी की सरलता,सादगी के सिद्धांतों एवं उनके दर्शन को आज नकारना असंभव है। जब भी भारतीय समाज की बात होती है तो गांधी दर्शन के बिना वह अधूरी ही रहेगी।
वर्तमान संदर्भों में जब गांधीजी के सिद्धांतों की प्रासंगिकता की बात होती है तो आज चाहे भारत का फैशनेबल युवा हो या किताबी ज्ञान के महारथी आई टी प्रोफेशनल या फिर ग्रामीण बेरोजगार युवा क्यों न हों, सभी गांधी जी प्रिय पात्र हैं। ये सभी गांधी जी को अपने से जोड़े बगैर नहीं रह सकते हैं।
महात्मा गांधी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक एवं अनुकरणीय हैं जितने सौ वर्ष पहले थे। गांधीजी का बचपन सामाजिक एवं राजनीतिक विचार, सर्वोदय, सत्याग्रह, खादी, ग्रामोद्योग, महिला शिक्षा, अस्पृश्यता, स्वावलंबन एवं अन्य सामाजिक चेतना के विषय आज के युवाओं के लिए शोध एवं शिक्षण के प्रमुख क्षेत्र हैं।
भारतीय युवा हमेशा से गांधीजी के चिंतन का केंद्रबिंदु रहा है। वर्तमान युवा पाश्चात्य प्रभावों के कारण जहां अपने ऊपर किसी का भी हस्तक्षेप नहीं चाहता है। ऐसी परिस्थितियों में वर्तमान युवाओं को गांधीजी के विचारों की सर्वाधिक जरूरत आज के युवाओं को है। गांधीजी हमेशा युवाओं से रचनात्मक सहयोग की अपेक्षा रखते थे।
गांधीजी ने स्वतंत्रता आन्दोलन में उस समय की युवा पीढ़ी को भयरहित होकर अंग्रेजों के दमन का सामना करने का अद्भुत साहस दिया था। वे हमेशा युवा ऊर्जा को सही दिशा देने की बात करते थे। आंदोलन के समय वे युवाओं को हमेशा सतर्क करते रहते थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय उन्होंने कहा था हमारा आंदोलन हिंसा का अग्रदूत न बन जाए इसके लिए मैं हर दंड सहने के लिए तैयार हूं, यहां तक कि मैं मृत्यु का वरण करने को भी तैयार हूं। उस समय के युवाओं से उनकी अपेक्षा थी कि वे अपनी ऊर्जा और उत्साह को स्वतंत्रता प्राप्ति में सार्थक योगदान की दिशा में मोड़ें।
गांधीजी ने हमेशा से ही युवाओं को वंचित समूहों के उत्थान के लिए प्रेरित किया करते थे। वे व्यक्तिगत घृणा के हमेशा विरोधी रहें। उनका कथन था- ‘शैतान से प्यार करते हुए शैतानी से घृणा करनी होगी।’ उन्होंने हमेशा युवाओं को आत्मप्रशंसा से बचने को कहा है। उनका कथन है कि जनता की विचारहीन प्रशंसा हमें अहंकार की बीमारी से ग्रसित करती है।
वर्तमान आईटी प्रोफेशनल के लिए गांधीजी मैनेजमेंट गुरु हैं। वे हमेशा आर्थिक मजबूती के पक्षधर रहे हैं। गांधीजी ने हमेशा पूंजीवादी व समाजवादी विचारधारा का विरोध किया। उनका मानना था कि देश की अर्थव्यवस्था कुछ पूंजीपतियों के पास गिरवी नहीं होनी चाहिए। उनकी अर्थव्यवस्था के केंद्रबिंदु गांव थे। उनके अनुसार अगर गांव के युवाओं को गांव में ही रोजगार नहीं मिलता तो उनमें असंतोष एवं विक्षोभ बना रहेगा। पिछले कुछ दशकों से ग्रामीण बेरोजगारों का रोजगार के लिए शहर की ओर पलायन आज भारत की ज्वलंत समस्या बनी है,जिसका निराकरण स्वरोजगार, कुटीर उद्योग लगाकर ही किया जा सकता है।
भारतीय साहित्य की युवा पीढ़ी हमेशा से गांधी दर्शन से प्रभावित रही है। उस समय के साहित्य पर गांधी दर्शन का स्पष्ट प्रभाव था। मैथिलीशरण गुप्त की भारत भारती, प्रेमचंद की रंगभूमि, माखनलाल चतुर्वेदी की पुष्प की अभिलाषा, रामधारी सिंह दिनकर की मेरे नगपति मेरे विशाल, सुभद्रा कुमारी चौहान की झांसी की रानी आदि साहित्यिक रचनाएं गांधी दर्शन से ही प्रेरित रही हैं।
मनुष्य प्रजाति की उत्पति से लेकर आज तक की सारी मानवता व्यक्तिगत, सामाजिक, जातीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति के लिए प्रयासरत रही है। गांधीजी का मानना था कि समाज में शांति की स्थापना तभी संभव है, जब व्यक्ति भावनात्मक समानता एवं आत्मसंतोष को प्राप्त कर लेगा। गांधीजी के अनुसार शांति की प्राप्ति प्रत्येक युवा का भावनात्मक एवं क्रियात्मक लक्ष्य होना चाहिए तभी उसकी ऊर्जा, गतिशीलता एवं उत्साह राष्ट्रीय हित में समर्पित होगी।
गांधीजी युवाओं को सामाजिक परिवर्तन का सबसे बड़ा औजार मानते थे। वे हमेशा चाहते थे कि सामाजिक परिवर्तनों, सामाजिक कुरीतियों, सती प्रथा, बाल विवाह, अस्पृश्यता, जाति व्यवस्था के उन्मूलन के विरुद्ध युवा अपनी आवाज उठाएं। उनका मानना था कि शोषणमुक्त, स्वावलंबी एवं परस्परपोषक समाज के निर्माण में युवाओं की अहम भूमिका है एवं भविष्य में भी रहेगी। वर्तमान युवा प्रजातांत्रिक मूल्यों एवं तथ्यपरक सिद्धांतों को मानता है।
अपने शिक्षण के दौरान मैं कक्षा में अपने विद्यार्थियों से चर्चा के दौरान प्रश्न करता हूं कि गांधीजी के स्वतंत्रता प्राप्ति के योगदान से इतर आपको उनका कौन सा गुण प्रभावित करता है? सभी का एक ही जवाब रहता है, गांधी जी की अहिंसा और सत्यनिष्ठा।
गांधीजी हमेशा आत्मनिरीक्षण के पक्षधर रहें,उनके सिद्धांत लोकतंत्र एवं सत्य की कसौटी पर कसे-खरे सिद्धांत रहें हैं। गांधीजी की असहमति, उनका बोला गया सत्य आज के युवा को बेचैन कर देता है। उन्होंने हर विश्वास को बड़ी जांच-परखकर एक व्रत की तरह धारण किया था। वे युवाओं के लिए स्वराज को सबसे बड़ा आत्मानुशासन, सत्याग्रह को सबसे बड़ा व्रत, अहिंसा को सबसे बड़ा अस्त्र एवं शिक्षा को सबसे बड़ी नैतिकता मानता थे।
मैंने अपने पुत्र जो कि आईटी प्रोफेशनल क्षेत्र में पढ़ कर रहा है, उससे आजकल आनलाक-2अवकाशों में बातचीत के दौरान प्रश्न करता हूं कि आपके दैनिक जीवन में गांधीजी के दर्शन की क्या प्रासंगिकता है?उनका कहना है, कि आज प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्षेत्रों में मानसिक दबाव बहुत है। जब भी मेरे ऊपर काम या पढ़ाई का बोझ रहता है,तो वो मुझे मानसिक या शारीरिक रूप से शिथिल करता है तब मैं गांधीजी की जीवनी ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ पढ़ता हूं, जिससे मेरे अंदर आत्मबल एवं ऊर्जा का संचार होता है।
आज भारत में युवाओं के सामने ऐसे आदर्श व्यक्तित्वों की कमी है जिसे वो अपना रोल मॉडल बना सकें। गांधीजी हर पीढ़ी के युवाओं के रोल मॉडल रहे हैं,होने भी चाहिए। आज हमारा समाज सांस्कृतिक एवं राजनीतिक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा है। इन सामाजिक परिवर्तनों को सही दिशा देने में गांधीजी के सिद्धांत एवं उनका दर्शन हमारे युवाओं के लिए मार्गदर्शक के रुप में होना चाहिए।
वर्तमान समय में युवाओं के लिए एक मौका है कि वे गांधीजी को अपना आदर्श बनाकर सामाजिक परिवर्तन एवं राष्ट्र निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दें। हमारे युवा उनके दर्शन को अपनाकर अपने व्यक्तित्व एवं राष्ट्र के विकास में पूर्ण ऊर्जा एवं उत्साह से समर्पित हों।

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