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डिस्टलरी और बाटलिंग प्लांट में अंतर तो समझिए जनाब !

  • आखिर कितना जायज है महज विरोध के लिए विरोध करना !

  • देवप्रयाग के डडूवा गांव में बॉटलिंग प्लांट ”हिल टाप” का सच!

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

देहरादून। इन दिनों सोशल मीडिया में देवप्रयाग में शराब बनाने का विरोध छाया हुआ है। कहा जा रहा है कि इससे पहाड़ का माहौल खराब होगा। अहम बात यह भी है कि विरोध करने वालों को इस बात की जानकारी ही नहीं है कि देवप्रयाग में  शराब बनेगी नहीं, बल्कि केवल बोतलों में भरी जाएगी। लोग यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि इससे राज्य को कितना राजस्व मिलेगा और कितने लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा।

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बेवजह इस विरोध की जड़ में वही लोग अपना खेल कर रहे हैं, जिनके निशाने पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत हैं। बताया जा रहा है कि इन लोगों की मदद कुछ ऐसे भाजपा नेता भी अंदरखाने कर रह रहें हैं, जिनकी अति महत्वाकांक्षा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने की है।

एक तरफ पहाड़ में रोजगार के अवसर पैदा न करने का रोना रोया जा रहा है तो दूसरी तरफ अगर कोई उद्यमी पहाड़ का रुख करता है तो विरोध के स्वर मुखर करवा दिए जाते हैं। देवप्रयाग में हिल टाप नाम से शराब बनाने का ताजा मामला है। सरकार ने उद्यमी को बाटलिंग प्लांट का लाइसेंस दिया है। इसका सीधा सा मतलब है कि इस प्लांट में शराब और बीयर बोतलों में भरी जाएगी। शराब और बीयर का एसेंस बाहर से लाया जाएगा और पानी मिलाकर उसे बोतलों में भरकर बाहर भेज दिया जाएगा। जाहिर है कि शराब देवप्रयाग के डडूवा गांव के प्लांट में बनेगी ही नहीं।

हां, अगर सरकार ने यह लाइसेंस डिस्टलरी का दिया होता तो विरोध जायज माना जा सकता था। डिस्टलरी से निकलने वाले हानिकारक रसायन निश्चित रूप से पहाड़ की आवोहवा और पवित्र नदियों के पानी को प्रदूषित करते। लेकिन बाटलिंग प्लांट से तो किसी तरह की गंदगी होगी ही नहीं। फिर पहाड़ का नदियां और आवोहवा किस तरह से प्रदूषित होगी, इसका जवाब किसी भी विरोध करने वाले के पास नहीं है।

दरअसल, विरोध करने वालों को बाटलिंग प्लांट और डिस्टलरी में फर्क समझने की जरूरत है। इन लोगों को यह भी समझना चाहिए कि इस प्लांट से उत्तराखंड को कितना राजस्व मिलेगा और कितने लोगों को पहाड़ पर ही रोजगार के अवसर मुहैय्या होंगे।

  

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