UTTARAKHAND

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और गुरु पूर्णिमा

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भगवा ध्वज को त्याग और समर्पण का मानता है प्रतीक 

भगवा ध्वज सृष्टि के आरंभ से ही है तपोमय, ज्ञाननिष्ठ व भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक सशक्त व पुरातन प्रतीक

कमल किशोर डुकलान
प्राचीन काल से ही भारतीय इतिहास गुरु-शिष्य परम्परा की अनगिनत गाथाओं से भरा पड़ा है। शिक्षा देने वाले गुरुओं के साथ एक गुरु ऐसा भी है जो शाश्वत सत्य,त्याग और बलिदान के सदा विजयी भाव के प्रतीक के एक गुरु ऐसे भी हैं जो मातृभूमि प्रेमियों के हृदय में विराजमान है। वो गुरु कोई देहधारी व्यक्ति नहीं बल्कि परम पवित्र भगवा ध्वज है।
अपने राष्ट्र और समाज जीवन में गुरुपूर्णिमा-आषाढ़ पूर्णिमा अत्यंत महत्वपूर्ण उत्सव है. महर्षि व्यासआदिगुरु हुए. उन्होंने मानव जीवन के गुणों को निर्धारित करते हुए मानव के महान आदर्शों को व्यवस्थित रूप में समाज के सामने रखा.महर्षि वेद व्यास ने विचार तथा आचार का समन्वय करते हुए, भारतवर्ष के साथ सम्पूर्ण मानव जाति का मार्गदर्शन किया. इसलिए भगवान वेदव्यास जगत् गुरु हैं. इसीलिए गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा गया है।
“अखंड मंडलाकारं
व्याप्तं येन् चराचरं,
तत्पदं दर्शितंयेनं
तस्मै श्री गुरुवे नम:”
यह सृष्टि अखंड मंडलाकार है. बिन्दु से लेकर सारी सृष्टि को चलाने वाली अनंत शक्ति का,जो परम तत्व है, वहां तक सहज सम्बंध है. यानी मनुष्य से लेकर समाज, प्रकृति और परमेश्वर शक्ति के बीच में जो सम्बंध है.उस सम्बंध को जिनके चरणों में बैठकर समझने की अनुभूति पाने का प्रयास करते हैं, वही गुरु है. संपूर्ण सृष्टि चैतन्ययुक्त है. चर, अचर में एक ही परम तत्व है. इनको समझकर,सृष्टि के सन्तुलन की रक्षा करते हुए, सृष्टि के साथ समन्वय करते हुए जीना ही मानव का कर्तव्य है. सृष्टि को जीतने की भावना विकृति है और सहजीवन संस्कृति है. सृष्टि का परम सत्य-सारी सृष्टि परस्पर पूरक है. सम्पूर्ण सृष्टि का आधार है। त्याग ही भारतीय संस्कृति है, जबकि त्याग, समर्पण, समन्वय हिन्दू संस्कृति है, मानव जीवन का सृष्टि में शांतियुक्त, सुखमय, आनन्दमय जीवन का आधार है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने गुरु के स्थान पर परम पवित्र भगवा ध्वज को स्थापित किया है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भगवा ध्वज को त्याग और समर्पण का प्रतीक मानता है। इसके पीछे की वजह सूर्य के प्रकाश से जोड़कर देखा गया है,जो स्वयं जलकर भी पूरी दुनिया को प्रकाश बांटने का काम करता है. इसी वजह से दूसरों के प्रति अपना जीवन समर्पित करने वाले धर्मसत्ता के अनुयायी साधु,संत भगवा वस्त्र ही पहनते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भगवा या केसरिया को त्याग,समर्पण, बलिदान का प्रतीक मानता है। संघ का मानना है,कि व्यक्ति गलतियों का पुतला है,जिस कारण व्यक्ति में खराबी या दुर्गुण आ सकते हैं। इसलिए संघ ने व्यक्ति की अपेक्षा भगवा ध्वज को गुरु के स्थान पर स्थापित किया है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने स्थापना के समय से भगवा ध्वज को गुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया। विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन गुरु के रूप में हर वर्ष आज के दिन गुरु पूर्णिमा पर भगवे ध्वज को प्रणाम करता है। भगवा ध्वज सृष्टि के आरंभ से ही तपोमय, ज्ञाननिष्ठ व भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक सशक्त व पुरातन प्रतीक है।
भारत में हजारों वर्षों से श्रेष्ठ गुरु बनाने की परंपरा चली आ रही है।करोड़ों लोगों ने व्यक्तिगत रीति से अपने गुरुओं को चुना है। इसलिए आज के इस विशेष दिन को हम श्रद्धा से गुरु की वंदना करते हैं।अनेक अच्छे संस्कारों को प्राप्त करते हैं। यही कारण है कि अनेक भारत अनेक आक्रमणों के बावजूद एक सफल राष्ट्र के रूप में अपना अस्तित्व बचाए रखा है।

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