अब बाबाओं के चंगुल से देश को मुक्त कराने का समय
इन्द्रेश मैखुरी
यह सच्चा सौदा नहीं,सच का सौदा है,मनुष्यता का सौदा है,आस्था का सौदा है, ठगने-छलने का सौदा है। डेरे,मठ,आश्रम का नाम कुछ भी हो,सौदा सबका यही है।दुनियावी संकटों के मारे स्त्री-पुरुष यहाँ पहुँचते हैं।सोचते हैं कि ग्लैमरस बाबाओं के ग्लैमर की चकाचौंध शायद उसके जीवन के अँधेरे को दूर करेगी। लेकिन बाबाओं के ग्लैमर की चौंधियाती रौशनी तो उसके जीवन से लेकर दिमाग तक में अँधेरे के सिवा कुछ नहीं भरती। बलात्कार के आरोप में जेल भेजे गए बाबा पर एक आरोप यह भी कि उसने पुरुषों को नपुंसक बनाया। शारीरिक रूप से ही नहीं बल्कि दिमागी रूप से भी नपुंसक बनाने का कारखाना ही तो चला रहे हैं,ये बाबा लोग।दिमाग का बधियाकरण न करें तो बलात्कार जैसे संगीन आरोपों में जेल जाने वालों के लिए मरने-मारने पर उतारू ऐसी मतान्ध भीड़ कैसे खड़ी होगी?
सन्यासियों का महिमागान किया जाता है कि वे तो इन्द्रियों को वश में करके केवल मोक्ष चाहते हैं।निरंतर बलात्कार के आरोप में जेल जाते बाबाओं की सीरीज स्वतः सिद्ध कर रही है कि इन्द्रियों पर उनका कितना नियंत्रण है ! यह सिर्फ हिन्दू धर्म की ही बात नहीं है। मठों से लेकर चर्च तक इन्द्रियों पर नियंत्रण के किस्से गाहे-बगाहे प्रकट होते रहते हैं। जिस तरह के यौन लिप्सा से बीमारी की हद तक,ये धर्मध्वजाधारी ग्रसित नजर आते हैं ,उससे तो लगता है कि यह धार्मिक चोला,इन्होने अपनी यौन कुंठाओं की स्वच्छन्द पूर्ति के लिए ही ओढा हुआ है। बाबा जगत और भौतिक सुख सुविधाओं के मिथ्या होने का प्रवचन रात-दिन देते नहीं थकते।लेकिन सभी दुनियावी सुख-सुविधाओं और विलासिता के सबसे बड़े अड्डे यदि कोई हैं तो ये बाबाओं के आश्रम ही हैं।भक्त आ रहा है कि बाबा मोक्ष दिलवा दो।बाबा कह रहा कि बच्चा अपनी सब धन संपदा,मेरे चरणों में रख जा फिर मुक्ति ही मुक्ति है।भक्त मोक्ष चाह रहा है और बाबा का कारोबार बढ़ता ही जा रहा है !
एक जमाने में कहा गया कि “संतन को कहाँ सीकरी सो काम।” यानि संतों को सत्ता से क्या वास्ता।लेकिन आज तो संतों का सत्ता से ही लेना-देना है। संत लोग सत्ता को अपनी मुट्ठी में चाहते हैं। कुछ सीधे सत्ता-सिंहासन पर बैठ कर और कुछ सत्ता पर बैठने वालों को अपने कब्जे में लेकर,यह काम कर रहे हैं। अभी तो संतों को भी सत्ता से काम है और सत्ता चाहने वालों को भी संतों से काम है। सत्ता चाहने वालों को संतों की अंधभक्त भीड़ के एकमुश्त वोट चाहिए।सत्ता को चाहिए कि अंधभक्तों की संख्या बढ़ती रहे ताकि तार्किकता के लिए समाज में कम से कम जगह रहे। जितने अधिक बाबा,उतने अधिक अंधभक्त,जितने अधिक अंधभक्त,सत्ता की चुनौती उतनी कम-यह सीधा गणित है, और संतों को तो सत्ता का संरक्षण चाहिए ही चाहिए ताकि भोग-विलास,बलात्कार,हत्या से लेकर जमीन कब्जाने का चमत्कार वे बेखटके कर सकें।
संतों और सीकरी का गठजोड़ यानि बाबाओं और सत्ता का गठजोड़,हमारे दौर का खतरनाक गठजोड़ है।इस गठजोड़ की मार आज देश झेल रहा है।इस गठजोड़ के उत्पात का सामना करने में बीस लोग जान गँवा चुके,प्रशासन-पुलिस बेबस नजर आ रही है और देश के अंदर हालात पर काबू पाने के लिए फ़ौज बुलाने की नौबत आन पड़ी है। बलात्कार के दोषी बाबा के उन्मादी भक्त ऐलान कर रहे हैं कि वे देश को दुनिया के नक़्शे से मिटा देंगे और देशभक्ति के स्वयम्भू ठेकेदारों को काठ मार गया है ! देश कोई पेंसिल से बना नक्शा नहीं है कि बलात्कारी बाबा के भक्त उसे मिटा देंगे, पर इन बाबाओं के चंगुल से यदि देश को मुक्त न कराया गया तो तार्किकता से लेकर मनुष्यता तक, सब कुछ ये नष्ट कर देंगे।