ENTERTAINMENT

दूसरे राज्यों की तर्ज पर सिनेमा को यहाँ भी प्रोत्साहित करने की जरूरत : सुभाष घई

  • उत्तराखंड में सिनेमा इंडस्ट्री नहीं है, जिस कारण स्थानीय कलाकारों को मंच नहीं
  • युवा फिल्म स्टार को ही अपना आइडल मानते हैं, मगर निर्देशक का ख्याल किसी को नहीं

देहरादून : उत्तराखंड के प्राकृतिक नज़रों के प्रति फिल्म बनाने वालों का रुख सकारात्मक है लेकिन राज्य सरकार को दूसरे राज्यों की तर्ज पर सिनेमा को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। यह कहना है बॉलीवुड और देश के जाने माने फिल्म निर्देशक सुभाष घई का। फिल्म निर्देशकों की पीड़ा को बयां करते हुए उन्होंने कहा उन्होंने कहा कि आज युवा, फिल्म स्टार को ही अपना आइडल मानते हैं, मगर निर्देशक का ख्याल किसी को नहीं आता। जबकि किसी भी फिल्म का दारोमदार निर्देशक पर ही होता है। प्रसिद्ध निर्देशक सुभाष घई का कहना है कि अभिनेता-अभिनेत्री तो कोई भी बन सकता है। लेकिन निर्देशक बनने के लिए तपस्या करनी पड़ती है। इसके साथ ही उन्होंने उत्तराखंड को लेकर कहा कि भविष्य में बॉलीवुड की नजरें यहां रहने वाली हैं।

निर्देशक सुभाष घई का हरिद्वार बाईपास रोड स्थित एक होटल में पत्रकारों से बातचीत यह भी कहना था कि उत्तराखंड की युवा प्रतिभाएं गायकी और अभिनय के क्षेत्र में बॉलीवुड को काफी प्रभावित कर रही हैं। उत्तराखंड में सिनेमा इंडस्ट्री नहीं है, जिस कारण स्थानीय कलाकारों को मंच नहीं मिल पाता है। उन्होंने अन्य राज्यों का उदाहरण देते हुए कहा कि कर्नाटक में प्रदेश सरकार सात करोड़, महाराष्ट्र में पांच करोड़, केरल में चार करोड़ रूपये की आर्थिक सहायता देती है। लेकिन उत्तराखंड में ऐसी कोई मदद नहीं दी जाती। उन्होंने यह भी बताया कि वह मानव संसाधन विकास मंत्री से भी सिनेमा को स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग कर चुके हैं।

वहीँ उन्होंने कहा निर्देशक सुभाष घई ने कहा कि किसी भी फिल्म की सफलता के पीछे निर्देशक की अहम भूमिका होती है। निर्देशक ही समाज निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से योगदान देता है। इन सबके बावजूद उसे ही नजरंदाज किया जाता है। उन्होंने कहा कि उनसे अक्सर यह सवाल पूछे जाते हैं कि उनकी अगली मूवी में लीड रोल में कौन होगा। लेकिन निर्देशक की मेहनत के बारे में नहीं पूछा जाता। उन्होंने कहा कि अभिनेता-अभिनेत्री बनने की अपेक्षा निर्देशक बनना बहुत कठिन होता है। बताया कि वह बॉलीवुड के लिए अच्छे निर्देशक तैयार करेंगे, ताकि फिल्मों की स्क्रिप्टें लव-रोमांस तक सीमित न रहे, बल्कि समाज को प्रेरणा दे सकें।

 

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