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खतरे पड़ती सूबे के सरकारी मेडिकल कॉलेजों की मान्यता!

  • दो -दो मेडिकल कॉलेजों का एक प्रिंसिपल  
  • लालफीता शाही की चपेट में सूबे की मेडिकल शिक्षा 

देहरादून। श्रीनगर और हल्द्वानी राजकीय मेडिकल कॉलेजों की मान्यता खतरे में पड़ती नज़र आ रही है। लगातार पांचवी बार मेडिकल कौंसिल ऑफ़  इंडिया के इंस्पेक्शन में फेल होने की बाद भी ये दोनों कॉलेज न तो सरकार और न लालफीता शाही के लपेटे और न ही आईएएस के चुंगुल से बाहर ही निकल पा रहे हैं , वजह इन मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने वाले प्रोफेसर ही नही है जो है वो भी जाने को तैयार बैठे हैं।

उत्तराखंड में भविष्य में होने वाले डॉक्टर्स को पढ़ाने वाले प्रोफेसर साहब को कितनी तनख्वाह है? सुन कर हैरानी होती है, उत्तराखंड के आर्युवेदिक कॉलेज,डिग्री कॉलेज के प्रोफेसर को तो सरकार देती है दस हजार का ग्रेड पे और डॉक्टर प्रोफेसर को देती है 8700 रु का वेतनमान,ये वेतन में डिग्री कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर के वेतन मान 9000 रुपये  से भी कम है, ऐसे में कौन डॉक्टर यहां शिक्षा देने के लिए रुकेगा, जिन्हें रखा जा रहा है उन्हें कॉन्टेक्ट बेस पर और वो जहां पैसा ज्यादा मिला वहां खिसकते रहे हैं। 

श्रीनगर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को सरकार ने दो जगह का चार्ज दिया हुआ था,जिसपर मेडिकल कौंसिल टीम ने सख्त एतराज दिखाया, यहां करीब 30 टीचर्स डॉक्टर्स कम मिले, हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में 28 टीचर प्रोफेसर्स कम मिले कई विभागों में तो न तो प्रोफेसर न उनके जूनियर प्रोफसर है, और अब खतरा इस बात का है कि कही छात्रों एमबीबीएस की डिग्री जो मिलेगी वो कहीं डी रेकग्नाइज न हो जाये, हर साल करीब साढ़े तीन सौ डॉक्टर्स सरकार को तैयार करने हैं वहां भी व्यवस्था को जंग लग गया है, कॉलेज प्रशासन के अधिकारी देहरादून आते है ,चिकित्सा विभाग के आला अफसर उन्हें लताड़ के वापिस भेज देते हैं , बीच मे सरकार ने सोचा कि श्रीनगर और अल्मोड़ा के मेडिकल कॉलेज सेना को दे दिए जाएं ये अच्छा भी होता पर लाल फीता शाही ने यहां भी अड़ंगे लगा दिए,जबकि इस कदम से पहाड़ों  में चिकित्सा शिक्षा के हालात सुधरते।

हालात ये है कि 7 साल पहले चिकित्सा शिक्षा विभाग की डीपीसी हुई उसके पात्रों को अभी तक प्रोन्नति नहीं दी गयी, अब दोबारा से डीपीसी की तैयारी हो रही है,जबकि अन्य राज्यो में मेडिकल कॉलेजों में प्रमोशन रेगुलर बेस पर होते रहते हैं , जब हर तरफ से चिकित्सा शिक्षा विभाग में राजनीति हो रही हो तो कौन प्रोफेसर यहां रुकना पसंद करेगा।

devbhoomimedia

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