महल की चार दीवारी से देश की सांसद तक का सफर…..

- टिहरी के राजा नरेंद्र शाह की छोटी पत्नी थीं कमलेंदुमति शाह
- उत्तराखंड की पहली महिला सासंद के रूप में इतिहास में है दर्ज
मनमीत
टिहरी रियासत के राजा नरेंद्र शाह की छोटी पत्नी कमलेंदुमति शाह उत्तराखंड की पहली महिला सासंद के रूप में इतिहास में दर्ज है। हालांकि उनका सांसद में चुनकर जाना उत्तराखंड के अस्थित्व में आने से लगभग पांच दशक पूर्व की घटना है। टिहरी रियासत को सदी की सामंतवादी गुलामी के बाद 1949 में आजादी मिली थी और उसके बाद भारत में विलय हुआ था।
टिहरी भले ही आजाद हो गया था, लेकिन कलांतर में राजशाही के प्रति कई गांव अभी भी समर्पित रहे। इसी दौरान राजा नरेंद्र शाह की भी मृत्यु हो गई। जिससे एक जनलहर राज परिवार के समर्थन में उठ खड़ी हुई। राजा नरेंद्र शाह ने हिमाचल के क्यूंजल रियासत की दो राजकुमारी इंदुमती शाह और कमलेंदुमति शाह से विवाह किया था। विवाह के दौरान कमलेंदुमति शाह की उम्र महज 13 साल थी और वो इंदुमती शाह से उम्र में छोटी थी। नरेंद्र शाह की मृत्यु के बाद टिहरी राजघराने के सलाहकारों ने राजा नरेंद्र शाह और इंदुमती शाह के बेटे मानवेंद्र शाह को संसदीय चुनाव में उतरने दी, जिसे राजा मानवेंद्र शाह ने मान लिया। लेकिन, किसी कारण उनका चुनावी पर्चा दाखिल होने के बाद खारिज हो गया। जिसके बाद रानी कमलेंदुमति शाह को निर्दलीय चुनाव मैदान में उतारा गया। उन्होंने कांग्रेस प्रत्यासी को बड़े अंतर से हरा दिया।
रानी कमलेंदुमति शाह सांसद में पहुंचने से पहले घर में ही पर्दे में रहती थी। चुनाव के दौरान वो पहली बार टिहरी रियासत की सड़कों पर निकली थी। जब वो सांसद में जीत कर पहुंची तो ब्रिटिश अखबार ने शीर्षक के साथ खबर लगाई थी कि ‘पर्दे से सांसद तक का सफर’। जो रानी कभी पर्दे में रहा करती थी, उसने अपने मुखर अंदाज में ‘वीमन एंड चिल्ड्रन इंस्टीट्यूशन बिल – 1954’ सांसद में पास कराया। उन्होंने टिहरी रियासत में लड़कियों के लिये राजमाता स्कूल की स्थापना की। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के क्षेत्र में कई अन्य उल्लेखनीय कार्य भी किये, जिसके लिये उन्हें 1958 में पदम भूषण सम्मान दिया गया। वो पहली उत्तराखंड की महिला हैं, जिन्हें ये सम्मान दिया गया है।
1957 के चुनाव में रानी कमलेंदुमति शाह दुबारा चुनाव में नहीं उठी। उनके सलाहकरों ने उन्हें उनके बेटे शार्दुल शाह को राजनीति की कमान संभालने की सलाह दी। लेकिन उन्होंने अपनी बहन के बेटे मानवेंद्र शाह को ही आगे बढ़ाया। 1957 में राजा मानवेंद्र शाह कांग्रेस के टिकट पर सांसदीय चुनाव जीते।
महारानी कमलेंदुमति शाह बहुत शर्मिली और कम बोलने वाली थी। वो महल से बाहर भी कम ही निकला करती थी। जहां अन्य रानियां महंगी कार और टहलने का शौक रखती थी, वहीं महारानी कमलेंदुमति शाह इन सब शान शौकत से दूर ही रही। लेकिन जैसे ही वो सांसद पहुंची। उन्होंने एक कुशल राजनेता का रूप अख्तियार कर लिया। वो सांसद में कई बार बोली और जब बोलती थी तो सभी सदस्य सुनते थे। इस पूरे मामले में वरिष्ठ पत्रकार महिपाल नेगी का शोध है। उन्होंने शोध करते करते टिहरी रियासत के कई गायब महत्पवूर्ण दस्तावेज, शासनादेश, कलाकृत्रि और चित्र उनके पास मौजूद है। जिसको लेकर वो एक महत्वपूर्ण किताब प्रकाशित करने जा रहे हैं।