डॉक्टरों की लापवाही से महिला नाली में बच्चा जनने को हुई मज़बूर !

उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था चौपट
- कहीं पुलों पर तो कहीं जीप में बच्चा जनने को मज़बूर महिलाएं
- अस्पतालों में डॉक्टर नहीं,स्वास्थ्य सचिव के पीछे घूमते हैं कई डॉक्टर!
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं हैं कि पटरी पर आने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं । कभी किस महिला को पैदल झूला पुल पर बच्चे को जनने को महबूर होना पड़ता है तो कभी किसी महिला को यात्री जीप के भीतर। हालात यहाँ तक बेकाबू हो चुके हैं कि अब महिलाओं के अस्पताल की नालियों का सहारा लेकर बच्चे को जनना पड़ रहा है । आज़ादी के 70 साल बाद भी उत्तराखंड में स्वास्थ्य व्यवस्था चौपट नज़र आ रही है। पहाड़ के अस्पतालों में महिला डॉक्टरों की कमी है तो मैदान के अस्पतालों में आवश्यकता से अधिक महिला चिकित्सक सिफारिश के आधार पर जमीं हुई हैं।
मामला चम्पावत जिले के जिला चिकित्सालय का है जहाँ सोमवार को संवेदनहीनता दिखाते हुए स्टाफ ने प्रसव पीड़ा से कराह रही गर्भवती को भर्ती करने से इनकार कर दिया। इस अनदेखी से मजबूर गर्भवती जिला अस्पताल की ओपीडी के पास नाली में बच्चे को जनने को मजबूर हुई। हालांकि सुरक्षित प्रसव के बाद अस्पताल प्रशासन ने जच्चा-बच्चा को भर्ती कर लिया।
मिली जानकारी के अनुसार चम्पावत से करीब 25 किमी दूर लफड़ा गांव का दिनेश राम सोमवार को अपनी गर्भवती पत्नी भावना देवी (38) को लेकर सुबह नौ बजे जिला अस्पताल पहुंचे थे। दिनेश के अनुसार महिला डाक्टर ने हाई रिस्क का हवाला देते हुए उनसे कहा कि गर्भस्थ शिशु को दस माह का समय हो गया है। लिहाजा जिला अस्पताल में प्रसव संभव नहीं है। यह कहकर दर्द से करह रही गर्भवती महिला को महिला डॉक्टर ने ही पिथौरागढ़ या चम्पावत के एक निजी अस्पताल में ले जाने की सलाह दी।
इसके कुछ देर बाद ही जिला सप्ताल में ही गर्भवती को तेज प्रसव पीड़ा उठी। दर्द से कराह रही गर्भवती ने ओपीडी के पास अस्पताल के पीछे नाली में बेटे को जन्म दे दिया। नाली में बच्चे के प्रसव की सूचना मिलते ही अस्पताल प्रशासन में हड़कंप मच गया। जिसके बाद आनन फानन में महिला को लेबर रूम में भर्ती कराया गया। जहाँ अब जज्चा बच्चा की हालत खतरे से बाहर है।
लेकिन इस घटना ने उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है वह भी तब जब सूबे के स्वास्थ्य सचिव के आगे-पीछे कई डॉक्टर कई डॉक्टर यूँ ही बिना कामकाज के घूम रहे हैं। चर्चाओं के अनुसार राजधानी में स्वास्थ्य सचिव के साथ उनके मुंह लगे कितने डॉक्टर बिना काम के घूम रहे हैं इसका कोई हिसाब किसी के पास नहीं। वहीं दूसरी तरफ पर्वतीय इलाकों में सूबे के कई अस्पताल ऐसे हैं जहाँ डॉक्टरों के बजाय फार्मासिस्ट या वार्ड बॉय ही डॉक्टर का काम करने को मजबूर हैं।
मामले में चम्पावत के सीएमएस का ऊपर से यह तुर्रा कि गर्भवती महिला की पहले ही पांच डिलीवरी हो चुकी हैं। लेकिन उन्होंने किसी भी तरह से महिला व उसके कोख में पल रहे नवजात के जीवन के बारे में नहीं सोचा हालांकि उनका कहना है कि मामले में हाई रिस्क था, लेकिन उन्होंने इस बात का कतई भी संज्ञान नहीं लिया कि चम्पावत से अन्य अस्पतालों कि दूरी कितनी है और क्या हाई रिस्क वाली गर्भवती महिला को कैसे वहां तक पहुँचाया जा सकता है। उन्होंने स्वीकार किया कि प्रसव के बाद नवजात का शरीर नीला पड़ा था जबकि उन्होंने कहा बाद में जच्चा बच्चा का इलाज किया गया। लेकिन सबसे बड़ा सवाल तो अब यह उठता है कि वे किस लाइफ सपोर्ट के सहारे गर्भवती महिला को कहीं और ले जाने की सलाह दे रहे थे। जबकि उनको पता था मामला हाई रिस्क का है।