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भारतीय संस्कृति के प्रतीक राम मंदिर का शिलान्यास

राम मंदिर  के लिए हिन्दू समाज पिछले करीब पांच सौ वर्षों से करता आ रहा है संघर्ष 

राम जन्मभूमि पर स्थित राम मंदिर को बाबर के सेनापति मीर बाकी ने था तोड़ा 

मस्जिद को हिंदू समाज ने कभी नहीं किया स्वीकार

कमल किशोर डुकलान
आखिरकार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का हिंदू समाज का सपना 5 अगस्त 2020 को शिलान्यास के रूप में पूरा होने जा रहा है। इसके लिए हिन्दू समाज पिछले करीब पांच सौ वर्षों से संघर्ष करता आ रहा है। राम जन्मभूमि पर स्थित राम मंदिर को बाबर के सेनापति मीर बाकी ने तोड़ा था उसके द्वारा बनाई गई मस्जिद को हिंदू समाज ने कभी स्वीकार नहीं किया। हिन्दू समाज मंदिर निर्माण के लिए सतत संघर्ष करता रहा। इस संघर्ष की अनदेखी पहले अंग्रेजी सत्ता और फिर स्वतंत्र भारत की सत्ता और अन्य राजनीतिक दलों ने भी।
जब छह दिसंबर 1992 को अयोध्या स्थित विवादित ढांचा गिराया गया तो मंदिर निर्माण के संघर्ष ने एक नया मोड़ लिया वोटों के ध्रुवीकरण के डर से राजनैतिक दलों द्वारा मंदिर निर्माण का लक्ष्य दूर ही रखा गया, क्योंकि भाजपा को छोड़कर अन्य सभी प्रमुख राजनैतिक दलों ने मंदिर के पक्ष में आवाज उठाने से इन्कार किया। कुछ दलों ने तो राम के अस्तित्व को ही मानने से इन्कार कर दिया। इसकी एक बड़ी वजह मुस्लिम समाज का तुष्टीकरण करने की उनकी राजनीति थी। इसी राजनीति के कारण राम मंदिर निर्माण की अनदेखी की गई।
विवादित ढांचा गिरने के बाद जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंदिर के पक्ष में फैसला दिया तो दोनों ही पक्ष उससे संतुष्ट नहीं हुए और मामला सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा,लेकिन वहां सुनवाई में देरी होती गई। इसका एक कारण था कांग्रेस नेतृत्व में बनी केन्द्र की संप्रग सरकार की इस मसले को न सुलझाने की मनसा थी।
2014 में जब मोदी के नेतृत्व में केन्द्र में सरकार सत्तारूढ़ हुई तो मंदिर निर्माण की आशा हिन्दू समाज में फिर जगी। मोदी सरकार ने इस पर जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मामले की सुनवाई जल्द से जल्द करनी चाहिए जिसके फलस्वरूप 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनया।
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ढहाए गए विवादित ढांचे के नीचे मंदिर था। इसी नतीजे पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय भी पहुंचा था और उसका एक बड़ा आधार पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की वह रिपोर्ट थी जो यह कहती थी कि विवादित ढांचे का निर्माण मंदिर के ऊपर हुआ था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के पहले ही राम मंदिर निर्माण का विरोध करने वाले राजनीतिक दलों की भाषा बदल गई थी, लेकिन फैसला आने के बाद जिस तरह से विपक्षी दलों द्वारा मंदिर निर्माण में अड़ंगे लगाए गये और हिंदू संगठनों को सांप्रदायिक कहकर लांछित करने का काम किया।
अयोध्या में 5 अगस्त को जिस राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास होने जा रहा है वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और भाजपा की ओर से भारतीय संस्कृति और सम्मान के लिए लड़ी गई दो सम्मिलित लड़ाई की जीत है। ये संगठन सक्रिय न होते तो इस लड़ाई को जीतना असम्भव था। इस जीत के बाद भी अभी कुछ और संघर्ष शेष हैं। सबसे प्रमुख है हिंदू समाज को कुरीतियों से मुक्त करना। इस संघर्ष में विजयी होकर ही भारत सांस्कृतिक और आध्यात्मिक स्तर पर विश्व गुरु की भूमिका का निर्वाह कर सकता है।
अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर का शिलान्यास गर्व का क्षण है, लेकिन इन क्षणों में इस पर भी विचार किया जाना चाहिए कि हिंदू समाज को किन कारणों से विदेशी हमलावरों के अत्याचार और उनकी गुलामी का सामना करना पड़ा? विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारत में हमले कर देश को तहस-नहस करने का एक लंबा इतिहास है। शायद ही कोई विदेशी और खासकर मुस्लिम आक्रमणकारी ऐसा रहा हो जिसने मंदिरों को नष्ट करने का काम न किया हो।
जैसे बाबर की सेना ने अयोध्या में राम मंदिर को ध्वस्त किया वैसे ही सोमनाथ मंदिर को महमूद गजनवी द्वारा ध्वस्त किया गया। इसके अलावा मुस्लिम आक्रमणकारियों ने अन्य अनेक प्रमुख मंदिरों को नष्ट-भ्रष्ट किया। इनमें काशी और मथुरा के मंदिर भी सामिल हैं। करीब-करीब हर जगह मंदिरों के स्थान पर मस्जिदों का निर्णाण किया गया। भारत मुगलकाल से विदेशी हमलावरों के अत्याचारों का शिकार इसीलिए होता रहा, क्योंकि हिंदू समाज अनेक कुरीतियों से ग्रस्त होने के कारण एकजुट नहीं था। इसका फायदा विदेशी हमलावरों ने उठाया।
नि:शंदेह उन्होंने तलवार के बल पर इस्लाम को हिंदुुओं पर थोपा जिस कारण उस समय अनेक हिंदू भेदभाव और छुआछूत के कारण मुसलमान बने। यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि भेदभाव और छुआछूत हिंदू समाज को कमजोर करने का एक बड़ा कारण बना जो आज भी है।हिंदू समाज इन कुरीतियों से ग्रस्त दिखता है। दलित, आदिवासी समेत कई हिंदू समूह मुख्यधारा से दूर नजर आते हैं।
अब जब समाज के हर तबके को अपनाने वाले भगवान राम का मंदिर अयोध्या में बनने जा रहा है तब हिन्दू समाज का यह भी दायित्व बनता है कि वे पूरे हिंदू समाज को जोड़ने तथा उनके बीच की कुरीतियां समाप्त हो। यह काम इसलिए किया जाना जरूरी है, क्योंकि गीता, रामायण जैसे श्रेष्ठ ग्रंथ हमें जीवन को आदर्श रूप में जीने की सीख देते हैं।
महर्षि वाल्मिकी रचित रामायण से लेकर तुलसीदास कृत रचित रामचरित मानस में भगवान श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप मे रेखांकित किया गया है। जिन जीवन मूल्यों के कारण उन्हें एक आदर्श पुत्र से लेकर आदर्श योद्धा और राजा के रूप में जाना जाता है उनका महत्व आज भी है और इसी कारण यह कहा जाता है कि रामराज्य की स्थापना करनी है।
राम मंदिर निर्माण के साथ यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अयोध्या एक ऐसा केंद्र बने जो भारतीय समाज को आदर्श रूप में स्थापित करने में सहायक बने और यह मंदिर उपनिषदों, वेदों, गीता, रामायण आदि के सार से सभी को परिचित कराने का काम भी करें ताकि हिंदू धर्म की ख्याति विश्व में भी बढ़े। इस मंदिर के माध्यम से हिंदू समाज की विकृतियों को दूर करने और हिंदू धर्म के मूल महत्ता को स्थापित करने का काम अगला लक्ष्य बनें।

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