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प्रकृति में सदभावना के लिए आवश्यक है पर्यावरण संरक्षण

प्रसिद्ध वैज्ञानिक विलियम रूकेल्सहॉस के कथनानुसार प्रकृति दोपहर का भोजन तभी मुफ्त करती है जब हम अपनी भूख को नियंत्रित कर लें।’ विश्व पर्यावरण दिवस 2022 का नारा ‘केवल एक पृथ्वी’ ‘प्रकृति के साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार’ पर केंद्रित है ।

कमल किशोर की कलम से 

हमारे जीवन के लिए पर्यावरण का विशेष महत्व है। हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम अपने पर्यावरण को संरक्षित रखने एवं उसके प्रति खिलवाड़ रोकने के लिए जन जागरूकता के कार्यक्रम चलाए,पर्यावरण का संवर्धन करें।लेकिन इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि पिछले कुछ दशकों में मानव ने अपनी सुख-सुविधाओं के लिए पर्यावरण को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। पेड़ों की कटाई से लेकर घने जंगलों को सपाट बनाने तक के अनेकों विकासात्मक कार्य मानव ने ही किए हैं। हर वर्ष काफी बड़ी संख्या में पेड़ों का काटा जाना भविष्य के पर्यावरण के लिए खतरा है। पेड़-पौधे लगाने,पेड़ों को संरक्षित रखने,पेड़ों को न काटने,नदियों को साफ़ रखने एवं प्रकृति से खिलवाड़ न करने जैसी अनेक बातों के लिए जन जागरुकता के रूप में प्रतिवर्ष 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति आम जन को जागरूक एवं सचेत करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रत्येक वर्ष एक थीम निश्चित की जाती है,जिसके आधार पर इस दिन को मनाया जाता है। विश्व पर्यावरण दिवस 2022 का नारा “केवल एक पृथ्वी” प्रकृति के साथ सद्भावनापूर्ण व्यवहार’ पर केंद्रित है। इस नारे के माध्यम से वैश्विक स्तर पर खगोलीय पिंडों को संरक्षित कर आम जन को पर्यावरण संरक्षण के प्रति सचेत करने तथा सामूहिक परिवर्तनकारी कार्रवाई का आह्वान करना है।
पिछली वैश्विक महामारी के दौर में इस बात से कतही इंकार नहीं किया जा सकता कि संपूर्ण मानवता का अस्तित्व आज प्रकृति पर ही निर्भर है। कोविड में संक्रमितों को बचाने के लिए स्वास्थ्य कर्मियों को प्राकृतिक आक्सीजन के अभाव में कृत्रिम प्राण वायु देनी पड़ी।जगह-जगह सरकारों द्वारा कृत्रिम आक्सीजन के प्लांट लगाए गए। इसलिए हमें समय रहते एक स्वस्थ एवं सुरक्षित पर्यावरण की कल्पना करनी चाहिए। प्रकृति को बचाने के लिए सिर्फ एक अकेला व्यक्ति काफी नहीं है,ऐसे में हम सब को मिलकर प्रकृति में सदभावना के साथ कुछ संकल्प लेने होंगे जिनसे हम अपने पर्यावरण को फिर से हरा-भरा, खुशनुमा बना सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों से हर वर्ष सरकारी,गैर सरकारी,स्कूली छात्रों,सामाजिक संस्थाओं,एन.जी.ओ द्वारा पर्यावरण के संरक्षण हेतु बड़ी भारी मात्रा में वृक्षारोपण तो हो रहा है किन्तु इसके अलावा उनकी देखभाल एवं संरक्षण,नदी-तालाबों और पोखर को प्रदूषित न करने,स्वच्छ पर्यावरण की दृष्टि से कूड़े-कचरे को कूड़ेदान में डालने आदि बातों का पर्यावरण के संवर्धन के लिए प्रत्येक भारतीय को संकल्प लेने की आवश्यकता है।किसी भी राष्ट्र,समाज अथवा संस्कृति की सम्पन्नता वहां के निवासियों के भौतिक समृद्धि की बजाय जैव विविधता पर काफी हद तक निर्भर करती है। हमारी भारतीय वन सम्पदा,हमारी संस्कृति, हमारे रीति-रिवाज,धर्म,तीज-त्योहार सब प्रकृति द्वारा ही पोषित हैं।
पर्यावरण का असल संकट विकास के आधुनिक मॉडल पर आधारित है जिसने प्रकृति से सब कुछ उजाड़ दिया है। घने जंगल जलवायु परिवर्तन के कुप्रभावों को कम करने की क्षमता रखते हैं,आज हम घने जंगलों के बिना आये दिन बादल फटना,भूस्खलन होना,हिम खण्डों का टूटना आदि घटनाएं देखते आ रहे हैं। इसके लिए अधिक मात्रा में वृक्षारोपण के साथ उनकी देखभाल करना भी जरुरी है। इसी से जलवायु में सुधार संभव है। पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन-डाई आक्साइड को कम कर ऑक्सीजन देने में महति भूमिका में रहते हैं। जहां यह प्रक्रिया प्रकृति में संतुलन बनाए रखती है वहीं जंगल हमें स्वच्छ जल और स्वस्थ मृदा के साथ-साथ स्वच्छ पर्यावरण का आधार प्रदान करते हैं आइए विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर हम संकल्प लें कि अधिक मात्रा में वृक्षारोपण एवं वृक्षों की देखभाल कर इस धरती को रहने योग्य बनाकर पर्यावरण का संवर्धन करें। अन्तर्राष्ट्रीय विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर कविता की इन चंद पंक्तियों के साथ बधाई एवं शुभकामनाएं हैं।
बदले हम तस्वीर जहां की,
सुन्दर सा एक दृश्य बनाए!
संदेश यह सब तक फैलाएं,
आओ पर्यावरण बचाएं!

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