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दिल्ली की दादागिरी का विरोध नहीं कर पा रहे बिना रीढ़ के भाजपा नेता!


- पार्टी के एक दर्जन प्रदेश अध्यक्ष लड़ रहे हैं चुनाव!
- तो केवल उत्तराखंड में क्यों बदला गया अध्यक्ष!
- भाजपा के पास नहीं है इसका कोई जवाब!
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
देहरादून : देशभर में भाजपा के लगभग एक दर्जन प्रदेश अध्यक्ष लोकसभा लड़ रहे हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि केवल उत्तराखंड में ही क्यों भाजपा ने अध्यक्ष बदल दिया। भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड के कार्यकारी अध्यक्ष पद पर नरेश बंसल को बैठाया गया है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री संगठन राम लाल अग्रवाल के चहेते नरेश बंसल को राज्य बनने के बाद से जब से भाजपा में लाया गया तब से निरंतर किसी ना किसी पद पर बैठाया जाता रहा है। बिना रीढ़ के उत्तराखंड भाजपा के नेता कभी भी दिल्ली की दादागिरी का विरोध नहीं कर पाये।
उल्लेखनीय है कि उत्तराखंड कुछ मायनों में बहुत ही विचित्र राज्य है, जहां दिल्ली में बैठा भाजपा संगठन नित नए प्रयोग करते रहता है। चुनाव के समय हर पार्टी वोट के हिसाब से निर्णय लेती है यह उत्तराखंडवासियों को अब समझ में आने लगा है। नरेश बंसल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाने से पार्टी किस वर्ग के और किस क्षेत्र के वोटों को लाभ होगा या वे किस क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं यह रामलाल और नरेश बंसल के अलावा कोई नहीं जानता।
चर्चा है कि अजय भट्ट के चुनाव लड़ते ही रामलाल ने मौका देख कर अपने शिष्य नरेश बंसल की बरसों से दबी हुई इच्छा को पूरा कर डाला । वैसे भी भाजपा के संविधान में ऐसा कोई नियम नहीं है कि अगर प्रदेश अध्यक्ष चुनाव लड़ रहा हो तो उसे इस्तीफा देना पड़ेगा। दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी, बिहार के प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय, उत्तर प्रदेश के महेंद्र नाथ पांडे, झारखंड के लक्ष्मण गुलिया, मध्य प्रदेश के राकेश सिंह , कर्नाटक के बी एस येदुरप्पा, तमिलनाडु से तमिल साईं, महाराष्ट्र के बाला साहेब दानवे और बंगाल के दिलीप घोष प्रदेश अध्यक्ष होते हुए लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में कौन सी आवश्यकता पड़ गई थी कि भाजपा को उत्तराखंड में अध्यक्ष पद पर नरेश बंसल जैसे असरहीन नेता को बैठाना पड़ा है।
पार्टी के भीतर चर्चा है कि नरेश बंसल रामलाल के प्रभाव से उत्तराखंड के नेताओं को आंखें दिखाते रहे हैं। उन्हें हर सरकार में सबसे बढ़िया मलाईदार दायित्व चाहिए और संगठन में प्रभावशाली पद ताकि वे पार्टी के हर कोर बैठक के हिस्सा बन सकें। चर्चा है कि उत्तराखंड के स्वभाव से अनभिज्ञ नरेश बंसल का उत्तराखंड की राजनीति विशेषकर पर्वतीय क्षेत्रों का अध्ययन शून्य के बराबर है । उनके जलील करने वाले स्वभाव के कारण पार्टी का एक वर्ग उन्हें पहाड़ विरोधी भी मानता है।
रामलाल के दम पर नरेश बंसल प्रदेश संगठन में अपने अध्यक्ष को और सरकारों के आने पर दायित्व धारी के रूप में अपने मुख्यमंत्रियों को तवज्जो देना अपना अपमान समझते रहे हैं। उत्तराखंड के नेता भी रामलाल के भय से कभी भी नरेश बंसल का विरोध नहीं कर पाए हैं ।
उत्तराखंड के सोशल मीडिया पर आज खुद भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा इस फैसले का कड़ा विरोध किया गया है। जिसका खामियाजा चुनाव में पार्टी को उठाना पड़ेगा। चर्चा है कि नरेश बंसल न अच्छे वक्ता है, और न मिलनसार ही व्यक्ति हैं, ना उनका सांगठनिक अनुभव है, और ना ही नाराज कार्यकर्ताओं को मनाने की वे क्षमता रखते हैं।
वहीं यह भी चर्चा है कि नरेश बंसल का ऐसा असर भी नहीं कि वे दूसरी पार्टियों में सेंध लगाकर अपनी पार्टी के कुनबे को बढ़ा सकें । दिल्ली से लादे गए ऐसे अध्यक्ष को भाजपा कार्यकर्ता तो ढो लेंगे, किंतु उत्तराखंड के वोटर जब इस अनजान से अध्यक्ष को पर्वतीय क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर से उतरकर भाषण देता हुआ देखेंगे तो उन्हें बताना पड़ेगा कि यह उनके प्रदेश अध्यक्ष हैं क्योंकि न वे इनके कार्यों से विज्ञ है और ना इनके चेहरे से और न ही उनके गुणों से ।
अभी तक जहां भारतीय जनता पार्टी में मनोहर कांत ध्यानी, पूरन चंद शर्मा, भगत सिंह कोश्यारी , बची सिंह रावत, बिशन सिंह चुफाल, तीरथ सिंह रावत और अजय भट्ट जैसे वरिष्ठ तथा लोगों के बीच घुले मिले, जाने पहचाने चेहरे अध्यक्ष के रूप में रहे हैं । जो स्वयं राज्य के मुख्यमंत्री, मंत्री या विधायक रहे हैं, ऐसे में नरेश बंसल किस तरह पार्टी की नैया पार लगाएंगे यह लोकसभा चुनाव के परिणाम बताएंगे।