VIEWS & REVIEWS

Are we living in an ANIMAL’S WORLD?

Go TALK NOW, PLEASE! It’s my responsibility, it’s your responsibility

Abhyudaya Gupta 

हैदराबाद में हुए दुष्कर्म और हत्या से देहरादून में आक्रोश

हैदराबाद में हुए महिला पशु चिकित्सक संग दुष्कर्म और हत्या के खिलाफ देहरादून के छात्रों में भी उबाल है।

शनिवार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद डीएवी की ईकाई ने इस जघन्य कृत्य और आरोपियों के खिलाफ डीएवी कॉलेज में नारेबाजी की।

इस घटना के विरोध में रैली निकालकर पुतला दहन किया। इस दौरान दोषियों को जल्द से जल्द सजा देने की मांग की गई। कहा कि सरकार को इस घटना के दोषियों के खिलाफ फास्ट ट्रैक कोर्ट में कार्रवाई करनी चाहिए और समाज में उदाहरण पेश करना चाहिए। 

Are we living in an ANIMAL’S WORLD? No, even animals don’t rape. It’s high time that we need a mental revolution towards treatment of women in our society. Merely stringent laws and hanging the rapist would not serve the purpose. The root cause needs to be addressed, which is the mindset of our society, especially men. We need to start with teaching our men NOT TO RAPE, to treat women with dignity and respect.

Every person reading this needs to take this responsibility. Go, talk to all the men who are close to you, be it your brother, your son, your father, your boyfriend, your friend. Teach them the meaning of CONSENT, request them to RESPECT every women, make them understand what impact even a small comment can have on a woman’s mental state. We are all living in a belief that My son, Or My brother can never harm or do wrong to any woman, but we forget that the perpetrators are from amongst us itself. It’s time that we go and talk about respecting women/girls to our 4 year child, it’s time that we nurture our kids in a manner that the future is safer for our women. It’s time that we sensitise every one at an individual level.

Start it with your close ones, and then you can move towards the lesser close ones as well. Social persuasion and awareness at individual level are equally important as much as stringent provisions and a robust criminal justice system are.

Go TALK NOW, PLEASE! It’s my responsibility, it’s your responsibility.
#justiceforpriyankareddy
#justiceforwomen

देश निशब्द और शर्मिंदा है डॉ प्रियंका रेड्डी!
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तेलंगाना में डॉ प्रियंका रेड्डी के साथ सामूहिक दुष्कर्म कर उसे जिंदा जला दिया, उससे पूरा देश सदमे में है। हाल के वर्षों में ऐसी असंख्य लोमहर्षक ख़बरों के साथ जीने को हम अभिशप्त हैं। ऐसा लग रहा है जैसे हम यौन मनोरोगियों के देश में हैं जिसमें रहने वाली समूची स्त्री जाति के अस्तित्व और अस्मिता पर घोर संकट उपस्थित है। आज सवाल हर मां-बाप के मन में है कि इस वहशी समय में वे कैसे बचाएं अपनी बहनों-बेटियों को ?

उन्हें घर में बंद रखना समस्या का समाधान नहीं। अपनी ज़िंदगी जीने का उन्हें पूरा हक़ है। वे सड़कों पर, खेतों में, बसों और ट्रेनों में निकलेंगी ही। हर सड़क पर, हर टोले-मोहल्ले में, हर स्कूल-कालेज में पुलिस की तैनाती संभव नहीं है। आमतौर पर क़ानून और पुलिस का डर ही लोगों को अपराध करने से रोकता है। यह डर तो अब अब रहा नहीं। वैसे भी हमारे देश के क़ानून में जेल, बेल, रिश्वत और अपील का इतना लंबा खेल है कि न्याय के इंतज़ार में एक जीवन खप जाता है। दरिंदों के हाथों बलात्कार की असहनीय शारीरिक, मानसिक पीड़ा और फिर अमानवीय मौत झेलने वाली देश की हमारी बच्चियों और किशोरियों के लिए हमारे भीतर जितना भी दर्द हो, हमारी व्यवस्था के पास उस दर्द का क्या उपचार है ?

संवेदनहीन पुलिस, सियासी हस्तक्षेप, संचिकाओं में वर्षों तक धूल फांकता दर्द, भावनाशून्य न्यायालय, बेल का खेल और तारीख पर तारीख का अंतहीन सिलसिला। कुछ चर्चित मामलों को छोड़ दें तो सालों की मानसिक यातना के बाद निचले कोर्ट का कोई फैसला आया भी तो उसके बाद उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय और दया याचिकाओं का लंबा तमाशा! लोगों का धैर्य जवाब देने लगा है।

देश में बलात्कार के लिए फांसी और उम्रकैद सहित कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान होने के बावज़ूद स्थिति में कोई बदलाव क्यों नहीं आ रहा है ? अगर बलात्कार पर काबू पाना है तो बलात्कारियों के खिलाफ एक तय समय सीमा में अनुसन्धान, ट्रायल और सजा के कठोर प्रावधानों के अलावा बेहद आसानी से ऑनलाइन उपलब्ध अश्लील सामग्री को कठोरता से प्रतिबंधित करने के सिवा कोई रास्ता नहीं है।

कुछ लोगों के लिए अश्लील फ़िल्में देखना उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मसला हो सकता है, लेकिन जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता सामाजिक नैतिकता और जीवन-मूल्यों को तार-तार कर दे, वैसी स्वतंत्रता को निर्ममता से कुचल देना ही हितकर है। इसके सिवा और कोई उपाय नहीं है.

डॉ प्रियंका रेड्डी देश ही नहीं मानवता शर्मशार है!

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