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गायब बाघिन के मिलने के दावे के एक सप्ताह गुजर जाने के बाद उसका पुख्ता प्रमाण नहीं दे पाया वन्यजीव महकमा !

ऐसे कैसे पुख्ता होगी वन्य जीव प्रतिपालक के हवा हवाई प्रमाण 

वन्य जीव महकमे के पास न तो गायब बाघिन के शरीर के स्ट्रिप फोटो ही हैऔर न कोई और पुराना फोटो !

राजेंद्र जोशी 
मुख्यमंत्री अथवा वन मंत्री को वह सीक्रेट बताया ?
वन्य जीव प्रतिपालक बाघिन के मिलने और उसकी लोकेशन को बताने से आखिर क्यों कतरा रहे हैं वह भी तब जब उनके पास कथितरूप से बाघिन के मिलने का प्रमाण है। वन्यजीव प्रतिपालक का एक सप्ताह पहले यह भी कहना था कि यह सीक्रेट है कि बाघिन कहाँ पर है ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि क्या वन्यजीव प्रतिपालक ने सूबे के मुख्यमंत्री अथवा वन मंत्री को वह सीक्रेट बताया ? यदि नहीं तो उन्हें ख़तरा किस बात का है ?
देहरादून : पिछले ढाई महीने से लापता बाघिन को लेकर सूबे का वन्यजीव विभाग प्रदेश सरकार सहित वन्यजीव प्रेमियों को गुमराह करता चला आ रहा है लेकिन वन्यजीव विभाग आज तक उस बाघिन (टी-1) की सही जानकारी न तो प्रदेश सरकार को ही उपलब्ध करा सका है और न ही वह वन्यजीव प्रेमियों को ही इस बात का पुख्ता प्रमाण ही दे पाया है कि जिस बाघिन को कभी वह बड़कोट रेंज में बता रहा था और कभी कांसरों के जंगल में मिलने की बात कह रहा था वह जीवित है और अगर जीवित है तो कहां है और उनके बारे में वैज्ञानिक तथ्य जुटा लिए गए हैं कि कैंसरों के जंगल में मिली बाघिन वही बाघिन है जो राजाजी टाइगर रिज़र्व के वेस्टर्न साइड से गायब हुई थी। 
सूबे के वन्य जीव विभाग के अधिकारियों की जुबानी वन्यजीव प्रेमियों के गले नहीं उत्तर पा रही है कि जो बाघिन ढाई माह पहले गायब हुई थी और जिसे अब वन्यजीव प्रतिपालक कांसरो में मिलने की बात कह कर पिछले एक सप्ताह से मौन साधे बैठ अपने कार्यालय में सिगरेट के छल्ले उड़ा रहे हैं, वह बाघिन वही है। ऊपर से वन्य जीव विभाग कॉर्बेट से पांच अन्य बाघों को राजाजी पार्क में लाने की ऐसी स्थिति में लाने की तैयारी कर रहा है जब वह रेडियो कॉलर लगे हाथी को नहीं बचा पाया है। तो ऐसे में वन्य जीव प्रेमियों की यह बात और पुख्ता हो जाती है जब वन्य जीव विभाग के सुस्त अधिकारी पहले से पाने यहां मौजूद बाघों अथवा हाथियों को नहीं बचा पाया है तो कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व  से क्या मारने अथवा मरने को भगवान भरोसे बाघों को लाया जा रहा है ? जहां तक गायब बाघिन के मिलने की पुष्टि होने की बात है इसका प्रमाण तो वन्यजीव संस्थान ही दे सकता है क्यूँकि उनके पास बाघों की गिनती के दौरान का डेटा होता है जिसमें बाघों के फोटो उनकी बॉडी के स्ट्रिप्स के फोटो सहित पगमार्क आदि की पूरी जानकारी होती है।  वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिक ही इस जानकारी को देने में सक्षम हैं कि गायब बाघिन मिल चुकी है और वह वर्तमान में किस जगह पर मौजूद है। 
बाघों  की पसंदीदा  है राजाजी का  ईस्टर्न  एरिया 
राजाजी टाइगर रिज़र्व के  ईस्टर्न साइड केवल 35 फीसदी एरिया में आज भी 34 टाइगर रहते हैं ये वेस्टर्न साइड में इसलिए आ-जा नहीं सकते क्योंकि यहां हरिद्वार-ऋषिकेश हाईवे सहित रेल मार्ग और गंगा नदी का बहाव क्षेत्र है। वन्यजीव प्रेमियों के अनुसार आज से 15 साल पहले तक जब हाईवे पर यातायात बहुत कम हुआ करता था उस दौरान वर्तमान के राजाजी टाइगर रिज़र्व में बाघों का आना जाना लगा रहता था।  
गौरतलब हो कि बीते 10 -12 सालों से राजाजी टाइगर रिज़र्व का वेस्टर्न साइड जिसमें रिज़र्व का लगभग 65 फीसदी भूभाग आता है, में टी-1 और टी-2 नाम की दो बाघिनें ही रह रही हैं ऐसा नहीं कि यहां बाघ नहीं रहे होंगे लेकिन वन्य जीव विभाग के निठल्ले अधिकारियों के कारण या तो वे कालकलवित हो गए या उनका शिकार कर दिया गया होगा। अब बचीं शेष दो बाघिनों में से भी एक बाघिन का पिछले ढाई  महीने से कोई आता पता नहीं हैं। हालांकि वन्यजीव प्रतिपालक सहित वन्य जीव महकमे के अधिकारी अपने आकाओं सुर में सुर मिलाते हुए यह कहते हुए नहीं अघाते हैं कि गायब हुई बाघिन मिल गयी है लेकिन वे एक सप्ताब आज तक इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं दे पाएं हैं। क्योकि वन्य जीव महकमे के पास न तो गायब बाघिन के कोई स्पष्ट फोटो ही हैं और न उसकी बॉडी के स्ट्रिप फोटो ही जिससे गायब बाघ के शरीर का मिलान किया जा सके।  जहाँ तक वन्य जीव महकमे के अधिकारियों द्वारा यह दावा किया जा रहा है की उसके पग मार्क मिले हैं उसका भी उनके पास कोई पुख्ता प्रमाण नहीं है। तो ऐसे में वन्यजीव विभाग के अक्षम अधिकारियों की बातों में न तो सूबे की सरकार ही भरोसा कर सकती है और न सूबे के वन्यजीव प्रेमी ही विश्वास कर पा रहे हैं। 

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