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महाराष्ट्र के पालघर जिले के कासना इलाके में साधुओं की हत्या मानो दर्द के सीने में भी खंजर

एक भीड़ ने दो साधुओं ओर उनकी गाड़ी के ड्राईवर की लाठियों से पीट पीट कर कर दी थी हत्या 

 

राजेन्द्र सिंह जादौन

ऐसे दौर में जब समूची दुनिया कोरोना के दर्द से कराह रही है तब महाराष्ट्र के पालघर जिले के कासना इलाके में पिछले 17अप्रैल की रात एक भीड़ ने दो साधुओं ओर उनकी गाड़ी के ड्राईवर की लाठियों से पीट पीट कर हत्या कर दी। इस घटना का ब्योरा तो ऐसा अहसास दे रहा है मानो दर्द के सीने मै भी खंजर भोंक दिया गया है। दर्द का इतना गहरा अहसास क्यों हुआ है उसका कारण घटना का ब्योरा है।

पहली बात तो यह है कि दो साधुओं ने से एक तो वृद्ध थे। उनकी उम्र साठ साल से अधिक थी। दोनों साधु अपनी गाड़ी से सूरत जा रहे थे जहा उन्हें अपने गुरु के अंतिम संस्कार में शामिल होना था। सीधे रास्ते पर पुलिस द्वारा रोके जाने पर वे जंगल के रास्ते से जा रहे थे। कासना इलाके में अचानक भीड़ ने इन्हे घेर लिया। बचाव के लिए पुलिस को सूचना दी गई ओर पुलिस पहुंची भी लेकिन भीड़ के आगे हथियार डाल कर भाग खड़ी हुई। भीड़ ने दो साधुओं ओर उनके ड्राईवर को मौत की नीद सुला दिया। पुलिस ने बाद ने कार्रवाई की है ओर 110 लोगो को गिरफ्तार किया है। कितनी दर्दनाक घटना है। भीड़ के हाथो वे निर्दोष लोग मारे गए जिनके हृदय में कभी कोई अपराध रहा ही नहीं। अपराध रोकने के लिए तेयार की गई पुलिस हथियार डाल कर भाग खड़ी हुई। हत्यारों के साथ पुलिस भी इस कायराना व्यवहार के लिए दोषी है। पुलिस को जब बताया गया था कि वहा भीड़ हमला कर रही है तो पुलिस हथियार ओर बल के साथ क्यों नहीं गई।

दिवंगत साधु अपने गेरूए वस्त्रों में ही थे।भीड़ ने तब भी ठहरने के बजाय निर्दोष की हत्या जैसे जघन्य अपराध को पूरा किया। इस अपराध की गम्भीरता कम नहीं है लेकिन हैरत इस बात की है कि देशभर में कानून ओर संविधान की रक्षक ताकतों की प्रतिक्रिया सामने नहीं आ रही। ये ताकते बताए कि उन्हें बोलने से कोन से कारण रोक रहे है। क्या साधुओं को संविधान ओर कानून के तहत जीवन रक्षा के अधिकार से बाहर किया हुआ था। क्या वे अपराधी थे।अगर नहीं तो वे मोंन क्यों है। महाराष्ट्र में कांग्रेस ओर राष्ट्रवादी कांग्रेस के समर्थन से शिवसेना के नेतृत्व वाली सरकार है तो क्या कांग्रेस इतनी निकम्मी सरकार को समर्थन देने की जिम्मेदारी का अहसास करेगी ओर समर्थन वापिस लेने का फैसला करेगी। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार अपने प्रयासों से बनाई गई उद्धव ठाकरे सरकार की इस नाकामी का जिम्मा लेंगे। यदि नहीं तो इसका क्या मतलब होगा की राजनीति हमेशा ही गेर जिम्मेदार ओर दोहरे  मापदंडों पर चलने वाला एक ढर्रा ही साबित होगा। राजनीति का यह बदसूरत चेहरा आखिर कब तक दिखाई देता रहेगा।सोनिया गांधी,राहुल गांधी एवम् प्रियंका गांधी वाड्रा की तिकड़ी आखिर देश को इस घटना पर क्या सिर्फ संयम का पाठ पढ़ा कर अपना चेहरा छिपा लेगी।

लिंचिंग की घटनाओं को समाप्त करने के लिए क्या इस तरह से चेहरा छिपा लेना सही होगा या फिर आगे बढ़कर नसीहती कदम उठाना जरूरी होगा। साधुओं की हत्या की घटना मै पुलिस भी दोषी है। ऐसे पुलिस कर्मियों को भी तुरन्त सेवा मुक्त किया जाना जरूरी है। वरना पुलिस का कायराना ओर लापरवाही का रवैया ओर आगे बढ़ेगा। देश के राजनीतिक वातावरण पर भी अफसोस होता है। इतनी वीभत्स घटना पर भी किसी को लोकतंत्र ओर संविधान साथ ही मौलिक अधिकार पर कोई संकट नजर नहीं आ रहा। तरह तरह की उपाधियों से विभूषित नेतागणों के चुप रहने पर आश्चर्य हो रहा है। वे सब संविधान ओर लोकतंत्र की रक्षा के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे।

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