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दिल्ली में अटके उत्तराखंडियों को सांसदगणों का मिल सकता है सहारा!

धनदा ने माननीयों के सामने रखा मदद का शानदार उदाहरण

साभार : अर्जुन बिष्ट 

कोरोना वाइरस का खौफ पूरी दुनिया में बढता ही जा रहा है। सभी देशों की सरकारें कोरोना से बचने के लिए हर वह कदम उठा रहे हैं, जो भी जरूरी लग रहा है। दुनियाभर के देशों में जहां लाकडाउन जैसे कठोर निर्णय लिये गये हैं वही कई देशों ने कर्फ्यू जैसे और कड़े कदम भी उठाये हैं। भारत में बरती गयी एेहतियात के बीच दो दिन से ऐसी तस्वीरेें सामने आ रही हैं, जो सोशल डिस्टेंसिंग के प्रयासों को हवा में उड़ती दिख रही हैं। सबसे खतरनाक स्थिति दिल्ली में है, वहां भूखे-प्यासे लोग सडक़ों पर इधर से उधर दौड़ रहे हैं, झुंड के झुंड बनाकर चल रहे हैं और कोई वाहन सामने दिख रहा है तो घर पहुंचने की उम्मीद में एक दूसरे के ऊपर लदे जा रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग मजाक बनकर रह गया है। मुझे लगता है कि आज अलग—अलग जगहों से दिल्ली पहुंच गये इन लोगों को उनके राज्यों तक पहुंचाना सभी सरकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। ये जितनी देर तक दिल्ली की सडक़ों पर भटकेंगे, कोरोना इनकी पीठ पर सवार होकर आगे बढता रहेगा।

उत्तराखंड में सरकार ने विधायक निधि से 15—15 लाख रुपये स्वास्थ्य विभाग को देने का निर्णय लिया है, यह रकम स्वास्थ्य विभाग के पास पहुंच गयी है। कई सांसदों ने कोरोनो को लेकर अपेक्षित सक्रियता दिखायी। मसलन अजय टम्टा ने अपनी निधि से ढाई करोड़ व रमेश पोखरियाल निशंक ने 5० लाख दे दिये। और सांसद महोदय भी प्रस्ताव दे चुके होंगे या दे देंगे, लेकिन यहां निधि से दिये जा रहे धन से अधिक महत्व इस बात का है कि हमारे सांसद दिल्ली में फंसे प्रदेश के लोगों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए मदद करें। जो 8५ लोग कल देहरादून व हल्द्वानी पहुंचे, उन्हें लाने में नैनीताल सांसद अजय भट्ट जी ने खुद भी पहल की। भट्ट जी ने ही बताया भी था कि उन्होंने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जी व यूपी के सीएम योगी आदित्य नाथ जी से भी वार्ता की।

पिछले कई दिनों से हम लगातार इस तरह की खबरें भी छाप रहे हैं कि राज्य सरकार ने कोरोना विषाणु से वचाव के लिए क्या—क्या किया। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत जी रोज अफसरों के साथ बैठकें कर रहे हैं, जनप्रतिनिधियों के साथ बैठकें करके कोरोना से निपटने के लिए लगातार निर्णय ले रहे हैं। जिलाधिकारों को दो—दो करोड़ भी दे दिये हैं। और जो भी समझ में आ रहा है कर रहे हैं। सरकार का काम ही यही है कि सब कुछ ठीक-ठाक हो, लाकडाउन के दौरान लोगों को रोजमर्रा की वस्तुआें की किल्लत न हो। इसके लिए राज्य सरकार ने पहले 7 से 1 और उसके बाद 7 से एक बजे तक मेडिकल स्टोर, सब्जी, राशन के साथ ही दूध व अन्य जरूरी वस्तुआें से संबंधित दुकानें खुले रखने का निर्णय लिया। दुकानों का समय बढ़ाये जाने पर सोशल मीडिया पर कई मित्रों ने मुख्यमंत्री जी के फैसलों पर सवाल भी उठाये। यह स्वाभाविक भी था, सवाल उठते रहने चाहिए। इतने गंभीर मामले में सवाल न उठें यह कैसे हो सकता है। लेकिन परिणाम क्या रहा है, इसे देखना भी हमारा ही फर्ज है।

मेरे संस्थान ने मुझे घर से ही काम करने की अनुमति दी है। ऐसे में मेरा भी फर्ज बनता है कि सोशल डिस्टेंसिंग रखते हुए कोरोना जैसे घातक विषाणु से सबसे पहले खुद को, अपने परिवार को, अपने संस्थान को, अपने समाज को, अपने प्रदेश को व अपने देश को बचाने में सहयोग करूं। इसलिए मैं घर से बाहर कम से कम निकलने की कोशिश कर रहा हूं। आज मेरा मन नहीं माना, छह नंबर पुलिया पर सब्जी खरीदने के लिए गया, पत्नी भी साथ में थी। पहले ही कह दिया था कि अगर ज्यादा भीड़ दिखी तो वापस आ जाएंगे और भीड़ कम होगी तभी सब्जी लेंगे। खैर वहां भीड़ नहीं थी, इसलिए सब्जी लेकर ही वापस आये। इसके साथ ही इस बात का भी सुकून रहा कि मुख्यमंत्री जी ने सात से एक बजे तक दुकानें खुलने का जो निर्णय लिया है वह सफल रहा है। शुक्रवार को ही मैने खबर लिखी थी कि सरकार ने 7 से 1 को एक दिन और बढ़ाया है। आज छह नंबर पुलिया पर देखने के बाद कह सकता हूं कि इस व्यवस्था को आगे बढ़ाया जा सकता है।

अब असली बात पर आता हूं। उच्च शिक्षा मंत्री डा. धन सिंह रावत जी ने कहर कोरोना के बीच एक अभिनव पहल की है। उन्होंने अपनी विधानसभा क्षेत्र श्रीनगर में ऐसे लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की है, जिन्हें लाकडाउन की वजह से खाने—पीने की कठिनाई हो गयी है। विशेषकर छात्रों को बहुत परेशानी हो गयी है। रावत ने बताया कि यह अभियान कुछ दिन पहले शुरू हो गया था और शुक्रवार को श्रीनगर में पांच सौ लोगों को खाना खिलाया गया। उन्होंने यह भी बताया कि वे पूरे श्रीनगर विधानसभा क्षेत्र में इस योजना को बढ़ा रहे हैं ताकि कोई भी भूखा न रहे।

उनका यह प्रयास दूसरे लोगों के लिए भी अनुकरणीय है। हर राजनेता ऐसा करने में सक्षम है। कम से कम सांसद, मंत्री और विधायकगण तो एेसा कर ही सकते हैं, क्योंकि उनके साथ बहुत सारे लोग भी होते हैं और आर्थिक रूप से समर्थ होने के साथ ही उनका दायरा भी बड़ा होता है। अगर हमारे सांसद दिल से किसी की मदद करने का संकल्प ले लें तो दिल्ली में फंसे किसी भी प्रदेश का बंदा वहां भूखे नहीं मर सकता है। सांसद चाहें तो वे अपने राज्यों के ऐसे लोगों की मदद करके उन्हें उनके प्रदेश व घर तक पहुंचाने की व्यवस्था कर सकते हैं। व्यवस्था कुछ भी नहीं करनी है साहब, खाना नहीं खिलवा सकते हैं तो छोड़ दीजिए, उन्हें सिर्फ उत्तराखंड आने की अनुमति दिला दें। मेरे कई जानने वाले हैं, जो दिल्ली से टैक्सी बुक कराके ला सकते हैं, लेकिन अनुमति कैसे मिलेगी इसके लिए कोई भी उनकी मदद करने को तैयार नहीं हैं। देहरादून में बैठे लोगों से बेहतर दिल्ली में बैठे हमारे सांसदगण दिल्ली में फंसे लोगों को निकालने का काम बेहतर तरीके से कर सकते हैं। हमारे सांसदगण बहुत ही सहृदय हैं, इसलिए मैं दिल्ली के उनके आवासीय पते और फोन नंबर फेसबुक पर डाल रहा हूं , ताकि जरूरतमंद लोग उन तक अपनी व्यथा पहुंचा सकें।

सोशल मीडिया के मेरे मित्रों, अगर आपको यह लगता है कि दिल्ली में फंसे हमारे लोगों को सकुशल घर वापस लाने के लिए मेरा यह विचार कारगर हो सकता है तो, आप इसे अधिक से अधिक शेयर करें, ताकि सांसदगणों के ये आवासीय पत्ते और फोन नंबर जरूरतमंदों तक पहुंच जाएं। इतना तो तय है कि दिल्ली या दूसरे स्थानों पर फंसे हमारे लोग जितनी जल्दी घर आ जाएंगे वे और हम उतना ही अधिक सुरक्षित रहेंगे। वे जितने ज्यादा दिन सडकों पर भटकते हुए फंसे रहेंगे, कोरोना उनके जरिये आगे बढने के लिए तेजी से आगे बढ जाएगा। सभी सांसदगणों से क्षमा याचना के साथ यह अपेक्षा कि दिल्ली में फंसे लोगों को उनके घरों तक पहुंचवा दें। लोकसभा के सांसद अपने क्षेत्र के लोगों को और राज्यसभा के अपने जिले या मंडलों के लोगों को मदद पहुंचा सकते हैं। जब तक कोरोना भाग नहीं जाता, यूं ही मुकाबला करने की कोशिश में लगा रहूंगा।

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