Uttarakhand

सांस्कृतिक धरोहर ‘रम्माण’ हैं गढ़वाल की रौनक

  • यूनेस्को तक विश्व की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित है “रम्माण”

देवभूमि मीडिया ब्यूरो

जोशीमठ : यूनेस्को तक विश्व की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में धूम मचाने वाले उत्तराखंड के चमोली जनपद के जोशीमठ ब्लॉक के सलूड गांव में “रम्माण” का भव्य मंचन हुआ। जिसमें 500 साल पुरानी मुखौटा शैली व भल्दा परंपरा की अनूठी लोकसंस्कृति जीवित हो उठी। जिसको देखने दूर दूर से लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। रम्माण के मंचन में राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान के पात्रों द्वारा नृत्य शैली में रामकथा की प्रस्तुति दी। इस मंचन के दौरान 18 मुखौटे 18 ताल, 12 ढोल, 12 दमाऊं, आठ भंकोरे प्रयोग में लाये गये। इसके अलावा राम जन्म, वनगमन, स्वर्ण मृग वध, सीता हरण, लंका दहन का मंचन ढोलों की थापों पर किया गया। जबकि कुरू जोगी, बण्यां-बण्यांण तथा माल- मल युद्ध नें लोगों को रोमांचित किया। वहीं जंगली जीवों के आक्रमण का मनमोहक चित्रण म्योर-मुरैण नृत्य नाटिका नें रम्माण के मंचन में चार लगा दिये।

रम्माण को गांव से लेकर यूनेस्को तक ले जाने वाले इसी गांव के डा. कुशल भंडारी कहते हैं कि  गांव के लोग इस आयोजन को गांव की विरासत और अपनी जड़े मानकर पोषित करते हैं और पालते हैं। रम्माण देखने को उमड़े लोग: रम्माण देखने को दूर-दूर से लोगों का हुजूम उमड़ा। खासतौर पर महिलाओं की तादात ज्यादा रही। खुले और साफ मौसम नें रम्माण के मंचन को खुशनुमा बना दिया। 

गांवों में “रम्माण” के बहाने चहल-पहल

सलूड में आयोजित रम्माण के बहाने पैनखंडा के गांवों में इन दिनों भारी चहल पहल देखने को मिली। लोग दूर दूर से इन दिनों अपने अपने गांव पहुंचे। जिससे गांवों की रौनक लौट आई है। गांवों की पगडंडियों से लेकर वीरान मकानों में बरसों से पसरा सन्नाटा भी टूट गया है। गांवो में चारों और लोगों का हुजूम दिखाई दिया।

सामाजिक सरोकारों से जुड़े युवा अतुल शाह और लक्ष्मण नेगी का कहना है कि इस प्रकार के आयोजन पहाड़ की लोकसंस्कृति के साथ साथ पलायन के कारण खाली होते गांवो के लिए शुभ संकेत हैं। नियमित अंतराल पर ऐसे आयोजन ही गांवों की खोई रौनक लौटा सकते हैं।

वहीं सलूड गांव के चारों ओर इन दिनों खेतों में आलू, ओगल, कुट्टु की फसलें उगने लगी है जो यहां की सुंदरता को चार चांद लगा रहे हैं। चारों ओर से बर्फ की ढकी पहाड़ियां लोगों को रोमांचित कर रही हैं। रम्माण के मंचन के साथ साथ लोगों को प्राकृतिक सुंदरता का आनंद उठाने का मौका मिला।

  • नए कलेवर में दिखाई दी रम्माण

मौलिकता को बचाये रखने के साथ-साथ रम्माण के आयोजन में आधुनिक साज सज्जा और वेशभूषा और जागर गायन शैली को और अधिक कर्णप्रिय बनाने की कोशिश भी रंग लाती दिख रही है। नयी पीढ़ी को नई शैली खूभ भा रही है। रम्माण के जागर को कंठ और सुर देने के लिए वाध्य यंत्रों को भी खूब नवीन रूप दिया गया है। ढोल दमाऊं की थाप पर जागर गाने वाले भी आकर्षण का केंद्र रहे। 

  • युवा रम्माण देखकर अभिभूत हुए दर्शक

रम्माण के मंचन को देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचे। ऋषिकेश से आये खेतान भट्ट और पांडवाज क्रिएशन श्रीनगर के कुणाल डोभाल, ईशान डोभाल बंधु, आदित्य शाह, संजय पांडे सहित कई युवा लोकसंस्कृति की इस अनूठी विरासत को देख अभिभूत हुये। 

  •  सामूहिकता और संस्कृति का यह आयोजन किसी यज्ञ से कम नहीं

इस लोकसंस्कृति के आयोजन को पारीवारिक आयोजन का स्वरूप देने के लिए सलूड, डुंग्रा, बरोसी के ग्रामीण जुटे रहे। आयोजन देखने आये मेहमानों को अपने घरों में आतिथ्य सत्कार से लेकर इस आयोजन को भव्य बनाने के लिए कोई सामूहिक भोजन तैयार करने में जुटा था तो कोई आयोजन स्थल की पवित्रता बनाये रखने के लिए सफाई में जुटा था। रम्माण के बहाने ध्याणिया भी सलूड डुंग्रा पहुंचीं तो प्रवासियों ने भी गांव की मिट्टी की खुशबू को महसूस करने के लिए उत्सुकता दिखाई। दिल्ली, चंडीगढ़, मुंबई सहित अन्य शहरों में रह रहे प्रवासी भी गांव पहुंचे थे। 

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