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उत्तराखंड पर सामूहिक नरसंहार की कालिख का जिम्मेदार कौन? 

  • जहरीली शराब कांड हो जाना नि:संदेह सरकार के लिए बेचैनीभरा

जितेन्द्र अंथवाल 
अपने जन्म के 19वें साल में उत्तराखंड के मुंह पर भी कालिख पुत गई। वह भी, अभूतपूर्व बहुमत वाली टीएसआर सरकार के दौर में। आमतौर पर कड़क और जमीन से जुड़े माने जाने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्रित्वकाल में उत्तराखंड का पहला और भीषणतम जहरीली शराब कांड हो जाना नि:संदेह सरकार के लिए बेचैनीभरा होना चाहिए। तब और भी, जब यह दाग ऐसे समय लगा हो जब शराब महकमे की जिम्मेदारी अपेक्षाकृत संवेदनशील, बुद्धिजीवी और साफ-सुथरे माने जाने वाले मंत्री प्रकाश पंत के पास है। हालांकि, 1990 के दशक में ऋषिकेश में जरूर टिंचरी कांड हुआ था, जिसमें दो दर्जन जानें गई थीं। लेकिन, तब उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में नहीं था और यह क्षेत्र अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा ही था।

बहरहाल, अब तक कुंभ और धर्म-योग-आयुर्वेद के लिए विख्यात रहा हरिद्वार जिला अब जहरीली शराब से हुई हत्याओं (ये मौत नहीं हत्या ही हैं) के लिए भी ‘कुख्यात’ हो गया है। अब तक जहरीली शराब कांड और उससे होने वाली मौतों के के दाग उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ हिस्सों के साथ ही कुछेक अन्य राज्यों के दामन तक ही सिमित थे। अब यह हिमालयी राज्य भी इस कालिक में पुता स्याह चेहरा लिए देश-दुनिया के सामने है। वह राज्य, जिसे कोई मुखिया भारत का स्वर्णिम भाल कहते नहीं अघाते थे, तो कोई देवभूमि। 

यहां कई सवाल आमजन को मथ रहे हैं। सवाल यह कि जिस उत्तराखंड में 1980 के दशक में ‘नशा नहीं-रोजगार दो’ जैसा बड़ा आंदोलन नशे के खिलाफ चला हो, जहां टिंचरी (अवैध शराब) के खिलाफ महिलाओं तक ने ऐसा डायरेक्ट एक्शन लिया है कि एक साध्वी ही ‘टिंचरी माई’ के नाम से आमजन के बीच लोकप्रिय और शराब माफिया के लिए खौफ बन गई हों, जहां 1990 के दशक के प्रचंड उत्तराखंड आंदोलन के दौर में की गई परिकल्पना में शराब मुक्त-माफिया मुक्त-नशा मुक्त राज्य शामिल था, दुर्भाग्य से उस राज्य के बनने के बाद से ही यहां की पूरी राजनीति वैध-अवैध शराब माफिया की गिरफ्त में आ गई।

पिछले करीब एक दशक में तो ‘शराब’ ही यहां पक्ष-विपक्ष की राजनीति का सबसे बड़ा मुद्दा रही है, आखिर क्यों? इस सबका दोषी कौन…? नि:संदेह, यहां की सरकारों में बैठे लोग और यहां विपक्ष का जिम्मा निभा रहे लोग। अब अगर हरिद्वार में जहरीली शराब से हुई सामूहिक हत्याओं के पीछे के पूरे तामझाम को समझा जाए, तो एक बात तो पूरी तरह स्पष्ट है कि शराब माफिया इतने बड़े पैमाने पर अवैध और जहरीली शराब का साम्राज्य बगैर राजनीतिक संरक्षण और अफसरों की कृपा दृष्टि के कायम कर ही नहीं सकता। इसके एवज में चढ़ाई जाने वाली भेंट इधर और ऊधर नीचे से किस ऊंचाई तक पहुंचती होगी, किसी को भी यह समझने के लिए किसी ‘अतिरिक्त’ बुद्धि की आवश्यकता नहीं है। 

यहां सवाल यह भी उठता है कि क्या इतने बड़े कांड के लिए उस जिले का डीएम जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए। मगर, शर्मनाक स्थिति देखिए। डीएम पर कार्रवाई तो दूर, यहां जिले के आबकारी अधिकारी को तक कार्रवाई से बचा लिया गया। बगल के उत्तर प्रदेश से भी सबक नहीं लिया गया, जिसकी इस पूरे मामले में नकल की जा रही है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने दोनों जिलों के जिला आबकारी अधिकारियों को भी अन्यों के साथ पल भर में सस्पेंड कर डाला। आखिर जहरीली शराब के सौदागरों का पूरा साम्राज्य चल रहा हो और जिले के जिम्मेदारों को भनक तक न हो, इतने ‘भोले’ तो आज के अधिकारी हो ही नहीं सकते और यदि हैं, तो वे जिलों में बिठाए जाने के लायक ही नहीं हैं।

एक बात और…। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा कहते हैं कि जो पिछले 70 साल में नहीं हुआ, वह अब हो रहा है। यहां यह भी संभवत: पिछले 70 साल में कभी-कहीं नहीं हुआ कि जहरीली शराब से होने वाली सामूहि हत्याओं के लिए जिम्मेदार हत्यारों को मृत्युदंड मिला हो। यदि, मोदी राज में देश में ऐसे सामूहिक नरसंहार के जिम्मेदारों को फांसी की सजा या कम से कम आजीवन कारावास मिल सके, तो इस तरह देश-समाज और सत्ता के मुंह पर पुतने वाली कालिख कुछ कम हो सकेगी।

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