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राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की कहानी पर आधारित फिल्म 72 ऑवर्स ट्रेलर रिलीज

  • 72 घंटे लगातार एक पोस्ट की न सिर्फ रक्षा की 
  • अकेले ही चीन के 300  चीनी सैनिकों को मार डाला था
  • फिल्मों व शूटिंग को प्रोत्साहित करने हेतु राज्य सरकार मिशन मोड पर : सीएम 

देवभूमि मीडिया ब्यूरो 

देहरादून : भारत चीन के बीच 1962 के युद्ध में भारतीय सेना के तमाम जवान शहीद हुए। इन कहानियों पर कई फ़िल्में बनीं है। लेकिन इन कहानियों में अगर नहीं सामने आ पाई तो वह थी राइफलमैन जसवंत सिंह रावत की शहादत की कहानी, जिसने 72 घंटे लगातार एक पोस्ट की न सिर्फ रक्षा की बल्कि अकेले अपने बूते चीन के 300  चीनी सैनिकों को मार डाला था ।

राइफलमैन जसवंत सिंह रावत को जहाँ उच्च वीरता सम्मान से दुश्मन देश चीन ने नवाज़ा था वहीँ भारतीय सेना ने उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया। अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे युद्ध क्षेत्र में गढ़वाल राइफल्स के इस जवान ने जो जांबाजी दिखाई, उसी पर बनी है एक चौंकाने वाली फिल्म 72 ऑवर्स।

फिल्म का ट्रेलर  सोमवार को जारी हुआ और इसकी पहली झलक फिल्म में दम होने की बात बताती है। फिल्म में कोई बड़ा सितारा नहीं है। किसी बड़े प्रोडक्शन हाउस का सपोर्ट भी फिल्म को अब तक नहीं मिला है। लेकिन पौड़ी गढ़वाल जिले के बरयूं गांव के इस लाल की कहानी को इसकी कहानी और इसकी मेकिंग का साथ मिलता दिखता है।

अविनाश ध्यानी ने ये फिल्म बनाई है। वह फिल्म के लीड रोल में भी हैं। साथ में मुकेश तिवारी, शिशिर शर्मा और वीरेंद्र सक्सेना भी हैं। टीजर का बैकग्राउंड म्यूजिक दमदार है और इसे देखकर ये भी समझ आता है कि फिल्म की शूटिंग पर काफी मेहनत की गई है। टीजर का ये संवाद भी बहुत कुछ कहता है ”हम लोग लौटें न लौटें, ये बक्से लौटें न लौटें, लेकिन हमारी कहानियां लौटती रहेंगी।

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने सोमवार को गढ़ी कैन्ट स्थित एकस्थानीय होटल में शहीद जसवन्त सिंह रावत पर बनी फिल्म ‘‘72 आवर्स‘’ के ट्रेलर लाॅन्च में प्रतिभाग किया । मुख्यमंत्री  त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि महावीर चक्र विजेता जसवन्त सिंह रावत ने 1962 में चीन के साथ युद्ध के दौरान अदम्य साहस व वीरता का परिचय दिया व अकेले ही 300 चीनी सैनिकों को मार गिराया। जसवन्त सिंह जी जैसे वीरों के कारण उत्तराखण्ड को वीरभूमि कहा जाता है। वीर सैनिक सदैव अमर होते है।
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र ने कहा कि राज्य सरकार उत्तराखण्ड में फिल्मों के निर्माण व शूटिंग को प्रोत्साहित करने हेतु मिशन मोड पर कार्य कर रही है। महेश भटट, राजकुमार सन्तोषी, राजा मौली, जैसे बड़े निर्माता निर्देशक अपनी फिल्मों को शूंटिग उत्तराखण्ड में करने की योजना बना रहे है। इस अवसर पर सांसद श्रीमती माला राज्यलक्ष्मी शाह, फिल्म ‘‘72 आवर्स‘’ के यूनिट व अन्य गणमान्य उपस्थित थे। 
  • देश का एक ऐसा सैनिक, जिसे वीरगति के बाद भी मिल रहे हैं प्रमोशन
  • जसवंत सिंह की याद में मंदिर बनाया गया है

उनको सुबह तड़के साढ़े चार बजे बेड टी दी जाती है। उन्हें नौ बजे नाश्ता और शाम सात बजे रात का खाना भी मिलता है। चौबीस घंटे उनकी सेवा में भारतीय सेना के पाँच जवान लगे रहते हैं। उनका बिस्तर लगाया जाता है, उनके जूतों की बाक़ायदा पॉलिश होती है और यूनिफ़ॉर्म भी प्रेस की जाती है। इतनी आरामतलब ज़िंदगी है बाबा जसवंत सिंह रावत की, लेकिन आपको ये जानकर अजीब लगेगा कि वे इस दुनिया में नहीं हैं।

अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में स्थित है नूरानांग की पहाड़ियां जो तेजपुर (असम ) से तवांग रोड पर लगभग 425 किलोमीटर दूरी पर है तवांग के उत्तर में चीन (तिब्बत) है और पश्चिम में भूटान. यह सन 1962 की बात है, जब चीन ने विस्तारवादी सोच के तहत पंचशील समझौते को धता बताते हुए भारत पर आक्रमण कर दिया था लगभग 14,000 फीट ऊँचाई पर स्थित सीमान्त क्षेत्र की नूरानांग पहाड़ी व आसपास के इलाके का सुरक्षा का दायित्व तब गढ़वाल रेजिमेंट की चौथी बटालियन पर था यहाँ तक पहुँचने के लिए टवांग चू नदी को पार करना होता है हाड़ कंपा देने वाली इस ठण्ड में भी चीनी सेना 17 नवम्बर 1962 को सुबह छ बजे से ही छ से अधिक बार हमला कर चुकी थी

उनके परिवार वाले जब जरूरत होती है, उनकी तरफ से छुट्टी की दर्खास्त देते हैं। जब छुट्टी मंज़ूर हो जाती है तो सेना के जवान उनके चित्र को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके उत्तराखंड के पुश्तैनी गाँव ले जाते हैं और जब उनकी छुट्टी समाप्त हो जाती है तो उस चित्र को ससम्मान वापस उसके असली स्थान पर ले जाया जाता है।

जसवंत सिंह और उनके साथी लांसनायक त्रिलोक सिंह नेगी और गोपाल सिंह गोसांई ने एक बंकर से क़हर बरपा रही चीनी मीडियम मशीन गन को शांत करने का फ़ैसला किया। बंकर के पास पहुँच कर उन्होंने उसके अंदर ग्रेनेड फेंका और बाहर निकल रहे चीनी सैनिकों पर संगीनों से हमला बोल दिया। चीनी मीडियम मशीन को खींचते हुए वह भारतीय चौकी पर ले आए और फिर उन्होंने उसका मुँह चीनियों का तरफ़ मोड़ कर उन्होंनें उनको तहस-नहस कर दिया।

मैदान छोड़ने के बाद चीनियों ने उनकी चौकी पर दोबारा हमला किया। 72 घंटों तक लगभग अकेले मुक़ाबला करते हुए जसवंत सिंह मारे गए। कहा जाता है जब उनको लगा कि चीनी उन्हें बंदी बना लेंगे तो उन्होंने अंतिम बची गोली से अपने आप को निशाना बना लिया।

उनके बारे में एक और कहानी प्रचलित है। पीछे हटने के आदेश के बावजूद वह 10000 फीट की ऊंचाई पर मोर्चा संभाले रहे। वहाँ उनकी मदद दो स्थानीय बालाओं सेला और नूरा ने की। लेकिन उनको राशन पहुँचाने वाले एक व्यक्ति ने चीनियों से मुख़बरी कर दी कि चौकी पर वह अकेले भारतीय सैनिक बचे हैं। यह सुनते ही चीनियों ने वहाँ हमला बोला।

चीनी कमांडर इतना नाराज़ था कि उसने जसवंत सिंह का सिर धड़ से अलग कर दिया और उनके सिर को चीन ले गया। लेकिन वह उनकी बहादुरी से इतना प्रभावित हुआ कि लड़ाई ख़त्म हो जाने के बाद उसने जसवंत सिंह की प्रतिमा बनवाकर भारतीय सैनिकों को भेंट की जो आज भी उनके स्मारक में लगी हुई है।

जिस स्थान पर उन्होंने मोर्चा संभाला था वहाँ पर उनकी याद में एक मंदिर बनाया गया है जहाँ पर उनके इस्तेमाल की जाने वाली अधिकतर चीज़ें रखी गई हैं। इस रास्ते से गुज़रने वाला चाहे जनरल हो या जवान, उन्हें श्रद्धांजलि दिए बिना आगे नहीं बढ़ता। जसवंत सिंह के मारे जाने के बाद भी उनके नाम के आगे स्वर्गीय नहीं लगाया जाता।

वह भारतीय सेना के अकेले सैनिक हैं जिन्हें मौत के बाद प्रमोशन मिलना शुरू हुए। पहले नायक फिर कैप्टन और अब वह मेजर जनरल के पद पर पहुँच चुके हैं। उनके परिवार वाले जब ज़रूरत होती है, उनकी तरफ़ से छुट्टी की दर्खास्त देते हैं। जब छुट्टी मंज़ूर हो जाती है तो सेना के जवान उनके चित्र को पूरे सैनिक सम्मान के साथ उनके उत्तराखंड के पुश्तैनी गाँव ले जाते हैं और जब उनकी छुट्टी समाप्त हो जाती है तो उस चित्र को ससम्मान वापस उसके असली स्थान पर ले जाया जाता है।

लेज. बी. एम0 कौल ने अपनी पुस्तक ‘अनटोल्ड स्टोरी’ में लिखा है कि ” ” जिस वीरता व साहस से गढ़वाली बटालियन ने चीनियों का मुंहतोड़ जवाब दिया यदि उसी प्रकार भारतीय सेना की अन्य बटालियनें भी, जो वहां पर तैनात थी, प्रयास करती तो नेफा की तस्वीर आज कुछ और ही होती”    वीर जसवंत सिंह रावत के शौर्य से प्रभावित होकर आर्मी हेडक्वार्टर ने 17 नवम्बर को ‘नूरानांग दिवस’ तथा नूरानांग पहाड़ी को ‘जसवंत गढ़’ नाम दिया इसी जसवंतगढ़ में उस वीर सैनिक को आज भी पूरे सम्मान के साथ याद किया जाता है

नूरानांग की पहाड़ियों पर जो लड़ाई हुयी उसमे कुल 162 जवान वीरगति को प्राप्त हुए, 264 कैद कर लिए गए और 256 जवान मौसम की मार से या अन्य कारणों से तितर बितर हो गए. वीरता पुरस्कार से जो सम्मानित हुए वे इस प्रकार हैं  महावीर चक्र – ले0 क0 भट्टाचार्य जी एवं रा0 मै0 जसवंत सिंह रावत (मरणोपरांत), वीर चक्र – से0 ले0 विनोद कुमार गोस्वामी (मरणोपरांत), , सूबेदार उदय सिंह रावत, सूबेदार रतन सिंह गुसाईं, रा0 मै0 मदन सिंह रावत, लैं0 ना0 त्रिलोक सिंह नेगी (मरणोपरांत), लैं0 ना0 गोपाल सिंह गुसाईं (मरणोपरांत), सेना मेडल – नायक रणजीत सिंह गुसाईं आदि..

पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड के वीरोंखाल के ग्राम बाडियूं, पट्टी खाटली में गुमान सिंह रावत व लीला देवी के घर ज्येष्ठ पुत्र के रूप में जुलाई 1941 को इस वीर नायक जसवंत का जन्म हुआ. हाईस्कूल करने के बाद वे अगस्त 1960 को फ़ौज में भर्ती हो गए. जसवंत के पूर्वज गढ़वाल की ऐतिहासिक वीरांगना तीलू रौतेली के वंशज माने जाते हैं। जो रावतों में विशेष जाति ‘गोर्ला रावत’ कहलाते हैं।

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