वाह रे जयराज आपकी जय-जय कार हो…..!
- आईएफएस बनाम स्टेट ऑफिसर्स की नई तनातनी !
दिनेश मानसेरा
शासन में पीसीएस, आईएएस बनते है,पीपीएस, आईपीएस बनते है पर फॉरेस्ट में डायरेक्ट लोक सेवा आयोग से चयनित रेंजर को आईएफएस क्यों नही बनने दिया जा रहा है और तो और वर्तमान पीसीसीएफ जयराज शाह ने 2010 में वेतनमान में प्रमोशन पाए रेंजरों से भी आठ साल बाद दिए गए वेतन को वापिस लेने के लिए रिकवरी निकाल दी गयी है।कमाल कर दिया जय राज शाह आपने तो आपकी तो जय जय कार होनी चाहिए,पहले सरकार वेतन दे और आठ दस साल बाद कहे कि तुम्हे क्यों ज्यादा तनख्वाह मिलनी चाहिए तुम आईएफएस थोड़े ही न हो तुम कंजरवेटर के बराबर तनख्वाह थोड़े ही ले सकते हो चलो पन्द्रह पन्द्रह लाख रु तनख्वाह के वापिस करो..!
पीसीसीएफ बने जयराज शाह जब से कुर्सी पर बैठे है विवादों से नाता जोड़ बैठे है,कभी बंदर कभी तेंदुआ कभी बाघ तो कभी हाथी इनके पीछे पड़े है अब इन्होंने पता नही किस खुन्नस में अपने ही विभाग के सत्तर से ज्यादा एसडीओ को छेड़ दिया है,
उत्तराखण्ड में आईएफएस लॉबी कितनी स्ट्रांग है इसका सबसे बड़ा उदारहण ये है कि इन्होंने राज्य बनने के 17 साल बाद किसी भी डायरेक्ट लोकसेवा आयोग से चुने अधिकारी को आईएफएस के बराबर या रैंक का दर्जा नहीं दिया, जबकि पुलिस,प्रशासन में आपने तहसील दार को कमिश्नर और सीओ को आई जी तक बनते देखा होगा।
वन विभाग में जिन रेंजरों ने 1983 में जॉइन किया उनके प्रमोशन सब डिविजनल ऑफिसर तक हो कर रुक गए,3 मार्च को 2010 शासन द्वारा इन्हें पद प्रमोशन न देकर वेतन में कंजरवेटर के बराबर का वेतन 37400 से बढ़ाकर 67000 रु और ग्रेड वेतन 8700 रु कर दिया गया।इन्हें एसीएफ का पद कहा जाने लगा,उत्तराखण्ड चयनित अधिकारियों ने इस पर भी संतोष व्यक्त किया कि चलो पद नहीं मिला वेतन तो मिला, अचानक 4 मई 2018 को जयराज शाह की सिफारिश पर वित्त सचिव अमित नेगी के आदेश होते है कि इन्हें ये वेतन मान नही दिया जा सकता लिहाजा इन्हें पुराना वेतन जोकि घटाकर 15600 रु से 39700 रु और ग्रेड 7600 रु ही दिया जाएगा साथ ही पिछले आठ सालों में जो रकम इस वेतन की दी जा चुकी है उसे 30 मई तक वापिस सरकार के खाते में जमा करवाई जाए..अब ये तुगलकी फरमान नही तो क्या?वेतन वृद्धि कैबिनेट पास करती है या उसका भी कोई सिस्टम होता है,पर यहां तो फरमान है जिसकी गाज उन 70 से ज्यादा फारेस्ट अधिकारियों पर जा गिरी है जोकि अब करीब करीब रिटायर होनेके कगार पर है कुछ तो रिटायर भी हो चुके है एक एक अधिकारी पर करीब 15 लाख रु की रिकवरी निकाल दी गयी है।
उत्तराखंड वन विभाग में इस फरमान को लेकर एसडीओ स्तर के अधिकारीयो में खासा गुस्सा है एक तो यहां पद प्रमोशन नहीं किया वेतन बढ़ा भी तो एक चिट्ठी जारी करके उसे न सिर्फ रोक दिया बल्कि उनसे बकायेदार की तरह रिकवरी भी निकाल दी गयी,इस फरमान के बाद ये अधिकारी फिलहाल न्यायलय की शरण मे है,दिलचस्प बात ये है कि इस मामले पर पीसीसीएफ ने न तो अपने वन मंत्री हरक सिंह रावत से सलाह ली और न ही वित्त सचिव ने अपने वित्त मंत्री प्रकाश पन्त को कोई जानकारी दी,मालूम हो कि उत्तराखंड में नदियों से निकलने वाली खनिज संपदा और इमारती लकड़ी,लीसा बिरोजा,पेड़ लगवाने,पहाड़ो के जंगल को आग से बचाने के काम रेंजर,सब डिवीजनल अधिकारी ही करते रहे है जोकि इनदिनों अपनी रिकवरी बचाने में उलझे हुए है!
वन विभाग में ऊंचे पदों पर बैठे अधिकारी आपस मे लड़ रहे है ये बात किसी से छुपी नहीं है ताज़ा घटनाक्रम से आईएफएस बनाम स्टेट ऑफिसर्स की नई तनातनी अब शुरू हो गयी है!
(साभार -पत्रकार ndtv इंडिया की फेस बुक वाल से)