अपनी संस्कृति अपनी पहचान : जौनसार बावर में माघ मरोज त्यौहार की धूम
पांचाली की प्रतिज्ञा पूर्ण करने का पर्व भी है मरोज
त्योहार के पीछे की एक यह भी है कहानी
यह त्योहार मनाने के पीछे किरमिर राक्षस के आंतक से जुड़ी कहानी बताई जाती है। क्षेत्र के बड़े-बुजुर्गों की माने तो सैकड़ों वर्ष पहले जौनसार-बावर और हिमाचल सीमा के बीच बहने वाली टोंस नदी को पहले कर्मनाशा नदी कहते थे। जिसका नाम बाद में टौंस पड़ा। कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले कर्मनाशा नदी में किरमिर नामक राक्षक का वास हुआ करता था। समूचे इलाके में इस राक्षस का जबरदस्त आंतक था।नरभक्षी कहे जाने वाले किरमिर राक्षस को हर दिन एक मानव बलि अनिवार्य रूप से चाहिए होती थी। मानव कल्याण के लिए मैंद्रथ निवासी हुणाभाट नामक व्यक्ति ने कुल्लू-कश्मीर के सरोवर ताल के पास कठोर तपस्या कर चार भाई (बाशिक, बोठा, पवासी व चालदा ) महासू देवता को हनोल-मैंद्रथ थान में लाए।
मान्यता है 26 तारीख को पौष मास की रात महासू देवता के सबसे पराक्रमी वीर यानि सेनापति कयलू महाराज ने किरमिर राक्षस का वध किया था। राक्षस का खात्मा होने की सूचना से समूचे इलाके में खुशी की लहर दौड़ पड़ी और लोगों ने घर-घर बकरे काटकर जश्न मनाया। कहते हैं तभी से क्षेत्रवासी हर साल पौष मास में माघ-मरोज का जश्न पूरे एक माह तक परपंरागत अंदाज में नाच-गाने के साथ मनाते हैं।
देहरादून : जौनसार-बावर की यमुना घाटी में मकर संक्रांति का पर्व महीने के मरोज त्योहार के रूप में मनाया जाता है, जो पूरे माघ चलता है। इस मौके पर सभी लोग अपने परिवार की कुशलता हेतु बकरे की बलि देते हैं। लेकिन एक और ख़ास बात यह है इस बकरे के दिल पर मामा का हक होता है।
जौनसार इलाके में मेहमाननवाजी में मामा का स्थान सबसे ऊपर है। परिवार के लोग ससुराल में ब्याही बेटी का हिस्सा लेकर उसके घर भी जाते हैं। जिससे बेटी का जुड़ाव मायके से हमेशा बना रहे। बेटी का हिस्सा ससुराल में नहीं पहुंचाने से रिश्तेदारी टूट जाती है।
जौनसार बावर इलाके में मकर संक्रांति से एक माह तक मनाए जाने वाले मरोज पर्व की शुरुआत हनोल के कैलू मंदिर में चुरांच का बकरा कटने के साथ होता है। जौनसार बावर की ग्यारह खतों में किसराट मनाए जाने के बाद यहां की 28 खतों में माघ मरोज पर्व शुरू हो गया है। इसके आबाद अब जौनसार बावर इलाके में एक माह तक पंचायती आंगन और बड़े सयानों के आँगन जौनसार की समृद्ध लोक संस्कृति से गुंजायमान रहेंगे।
गौरतलब हो कि जौनसार-बावर अपनी अनूठी संस्कृति के लिए विख्यात है। यहां स्थानीय स्तर पर कई त्योहार मनाए जाते रहे हैं। इनमें से एक माह तक मनाया जाने वाला माघ मरोज पर्व प्रमुख है। पर्व की शुरुआत हनोल कैलू मंदिर में चुरांच का बकरा कटने से होती है। एक माह तक पंचायती आंगनों में हारुल, तांदी नृत्यों का लगातार दौर चलता है। बावर, देवघार, बाणाधार, मशक सहित चकराता से ऊपर के बावर क्षेत्र में सबसे पहले पर्व की शुरुआत होती है। जबकि जौनसार में माघ का बकरा कटने के साथ एक माह के पर्व का आगाज होता है। बावर में सिराच मनाए जाने के बाद मसांद, पाऊणाई, बोईदाणा मनाया जाता है। मेहमाननवाजी के लिए विख्यात मरोज पर्व की शुरुआत के आठ दिन बाद मेहमानों का रिश्तेदारी में आगमन शुरु हो जाता है।
जौनसार बावर के अणू, मुंधोल, सैंज, ठारठा, लोकंडी, लौहारी, कोटी, खरोड़ा, कुनैन, झबराड, अमराड़, डुंगरी, बांणाधार, चिल्हाड, निमगा, कथियान, निनूस, पुटाड, बागी, चातरा, हनोल, मेंद्रथ, शेडिया, जाड़ी आदि क्षेत्रों में त्योहार को लेकर लोगों में खूब उत्साह देखने को मिलता है।
खुशहाली और सामाजिक समरसता के प्रतीक माघ-मरोज त्योहार मनाने के पीछे कहीं पांचाली के प्रण के पूर्ण होने से इस त्यौहार को जोड़ते हैं तो कहीं किरमिर राक्षस के आंतक से जुड़ी घटना बताई जाती है। राक्षस का खात्मा होने की खुशी में इलाके के लोग हर साल सुडौल बकरे काटकर एक माह तक लोक-नृत्य के जश्न डूबे रहते हैं।
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