वाह सरकार ..सत्ता में आते ही बदल गए सुर!
योगेश भट्ट
सरकारों का रूख देखकर तो लगता है कि वाकई में पूरा ‘खेल’ सत्ता के लिए ही है। चाहे कोई भी दल हो, सत्ता में बैठते हर किसी के सुर बदल जाते हैं। अब अपने प्रदेश की नई सरकार को ही देख लें। इस सरकार ने तो सुर बदलने के लिए महीने भर का भी इंतजार नहीं किया।
आज हम सिर्फ एक ही गंभीर मसले से जुड़े दो फैसलों की बात कर रहे हैं। मसला है केदारनाथ आपदा, जिससे जुड़ा पहला फैसला कैलाश खेर को भूगतान का, पिछली सरकार ने बालीवुड गायक कैलाश खेर के साथ केदारनाथ के प्रचार-प्रसार के लिए धारावाहिक बनाने के लिए 12 करोड़ रूपये का करार किया, जिसमें से तकरीबन 10 करोड़ रूपये का भुगतान भी कर दिया गया। आज सत्ता में बैठी भाजपा ने तब सरकार के इस फैसले पर न केवल सवाल उठाए, बल्कि इसकी आड़ में बड़ा घोटाला करने का आरोप भी उस पर लगाया।
तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत को कठघरे में खड़ा करते हुए भाजपा ने कहा कि उन्होंने इसके जरिए अपना प्रचार किया है। कैलाश खेर को किए जाने वाले 12 करोड़ रूपये के भुगतान को भाजपा ने आपदा मद की लूट और पीड़ितों के साथ अन्याय बताया था। बहुत हद तक भाजपा के विरोध का ही दबाव था कि तब कैलाश खेर की कंपनी को पूरा भुगतान नहीं हुआ। उन्हें किया जाने वाला लगभग दो करोड़ रुपये का भुगतान रोक दिया गया।
दिलचस्प कहा जाए या आश्चर्यजनक, चौंकाने वाली बात यह है कि अब सत्ता में आकर भाजपा सरकार ने कैलाश खेर को उनकी बची हुई रकम का भुगतान जारी करने का आदेश दे दिया है। एक बार को तो भाजपा सरकार के इस कदम पर यकीन नहीं होता । सवाल यह है कि जो भाजपा कल तक इस फैसले के विरोध में थी वो महीने भर में यह फैसला कैसे ले सकती है? आखिर भर में उसे कौन सा आत्मज्ञान हो गया कि कल तक उसकी नजर में जो घोटाला था, वह अब वाजिब भुगतान हो गया।
भाजपा सरकार की इस पलटी के बाद क्या यह मान लिया जाए कि इस मसले पर पिछली सरकार के निर्णय मे कोई खामी नहीं थी? क्या यह मान लिया जाए कि तब भाजपा का विरोध जायज नहीं था? अब तो यह मामला आश्चर्यजनक से ज्यादा हास्यास्पद भी हो गया है क्योंकि भुगतान के आदेश के बाद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अपनी सरकार को सलाह देते हैं कि कैलाश खेर को भुगतान आपदा मद से न कर किसी और मद से कर दिया जाए। क्या यह जनता को गुमराह करने वाली बात नहीं है? पहले तो इस भुगतान को किसी और मद से किया जाना संभव नहीं है, फिर भी यदि किसी और मद से भुगतान कर भी दिया जाता है तो तब भी पैसा तो राज्य सरकार के खजाने से ही जाएगा? अगर कल तक ये लूट थी, सरकारी खजाने की बर्बादी थी, तो आज ‘धर्मार्थ’ कैसे हो सकता है?
अब दूसरे फैसले पर भी एक नजर, पिछली सरकार के कार्यकाल में नैनीताल हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनाई करते हुए आदेश दिया था कि राज्य सरकार केदारनाथ आपदा पीड़ितों को दी जाने वाली मुआवजा राशि में 50 फीसदी की बढ़ोतरी करे तथा साथ ही आपदा के चलते अनाथ हुए नाबालिग बच्चों को बालिग होने तक प्रतिमाह 7500 रूपये की आर्थिक सहायता दे।
दिलचस्प यह है कि हाईकोर्ट में वह जनहित याचिका भाजपा के ही एक नेता अजेंद्र अजय ने लगाई। तब हाईकोर्ट के आदेश के बाद भाजपा ने बकायदा वाहवाही लूटी और उसे अपनी उपलब्धि बताकर प्रचारित किया। आश्चर्यजनक है कि अब सत्ता में आते ही भाजपा ने इतने संवेदनशील मसले पर भी सुर बदल दिए हैं। भाजपा की सरकार ने अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है।
कल्पना कीजिए, अगर किसी अन्य दल की सरकार ने यह निर्णय लिया होता और भाजपा विपक्ष में होती तो तब उसका क्या स्टैंड होता? आश्चर्य इस बात का भी है कि जनहित याचिका लगाने वाले नेता भी इस पर मौन हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि यह निर्णय जिस केदारघाटी के आपदा प्रभावितों के हित से जुड़ा है, वहां विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल करने वाली भाजपा को चौथे नंबर पर रहना पड़ा। तो क्या सरकार ऐसा करके ‘बदला’ ले रही है? सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि जनता की याददाश्त इतनी भी छोटी नहीं होती कि वह 50 दिन पुराने वादे और दावे भूल जाए।
बहरहाल सरकार का यह रूख सियासत के लिए किसी भी तरह से ठीक नहीं है। इससे जनता के बीच सरकार का भरोसा कम होता है और इस बात को बल मिलता है कि सत्ता में आते ही राजनीतिक दलों के सुर बदल जाते हैं।