मायके से भी पत्नियां दर्ज करा सकती हैं उत्पीड़न का मुकदमा : सुप्रीम कोर्ट
- कोर्ट के इस निर्णय से महिला सशक्तीकरण को और ताकत मिली
- आईपीसी की धारा 498 ए के तहत दर्ज किया जा सकता है मुकदमा
- सीआरपीसी की धारा 179 के तहत कोर्ट इस पर संज्ञान ले सकता है
देवभूमि मीडिया ब्यूरो
नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि पति अथवा रिश्तेदारों की क्रूरता के कारण ससुराल से निकाली गईं पीड़ित पत्नियां अपने आश्रय स्थल या अपने माता-पिता के घर से आईपीसी की धारा 498 ए के तहत मुकदमा दर्ज करा सकती हैं। कोर्ट के इस फैसले से महिला सशक्तीकरण को और ताकत मिली है।
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की वृह्द पीठ ने यह फैसला सात वर्ष बाद दिया है। तीन जजों की पीठ को यह रेफरेंस दो जजों की पीठ ने 2012 में भेजा था। इसमें सवाल यह था कि धारा 498 ए के तहत दहेज प्रताड़ना का केस वैवाहिक घर के क्षेत्राधिकार के बाहर पंजीकृत और जांच किया जा सकता है या नहीं।
दो जजों की पीठ ने इस सवाल को रुचिकर मानते हुए बड़ी पीठ को रेफर किया था। यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील में सुप्रीम कोर्ट आया था। हाइकोर्ट ने कहा था कि धारा 498 ए के तहत क्रूरता एक जारी रहने वाला अपराध नहीं है। इसलिए इससे संबंधित मामले को वैवाहिक घर के क्षेत्राधिकार के बाहर के दर्ज और जांच नहीं किया जा सकता। यह कहकर हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमे के संज्ञान को रद्द कर दिया था।
इस मामले में पीठ ने कहा कि उत्पीड़न की शिकार हुई महिलाएं बेशक वैवाहिक घर छोड़ देती हैं, लेकिन भावनात्मक तनाव, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का दंश उनको पिता के घर में भी कचोटता रहता है। हमारी सुविचारिक राय है कि धारा 498 ए लाने का उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ उसके पत्नी और रिश्तेदारों की हिंसा को रोकने का है, जिससे आत्महत्याएं और गंभीर चोटों के मामले भी समाने आते हैं।
पीठ ने कहा कि उत्पीड़न की शिकार हुई महिलाओं को यदि उसे पति के घर में ही केस दायर करने तक सीमित कर दिया जाएगा, तो इस संशोधन (1983) का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। न्यायिक प्रयास हमेशा यही होना चाहिए कि कानूनों का प्रभाव स्पष्ट और सतत बना रहे। इसलिए हमारी राय है कि निस्कासित पत्नी अपने पिता के घर से भी आईपीसी की धारा 498 ए के तहत केस दायर कर सकती है और सीआरपीसी की धारा 179 के तहत कोर्ट इस पर संज्ञान ले सकता है।