थैलीसैण, बीरोंखाल, नैनीडांडा पोखड़ा, रिखणीखाल को मिलकर अलग जिले की मांग
डॉ. बिहारीलाल जलन्धरी
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के अति पिछड़े क्षेत्र के पांच ब्लॉकों को मिलकर एक जिला बनाने की मांग वर्षों से चल रही है। इन ब्लॉकों में थैलीसैण, बीरोंखाल, नैनीडांडा पोखड़ा, रिखणीखाल को मिलकर अलग जिले की मांग चल रही है। क्षेत्र विकास के लिए यह जरुरी भी है।
हमारे कुछ ब्लॉक बहुत बड़े हैं जिनमे लगभग 95 से 115 तक ग्राम सभाएं हैं। विस्तृत क्षेत्र होने के कारण कई ग्राम सभाओं की पहुँच ब्लॉक मुख्यालय से बहुत कम हो पाती है। क्षेत्र कल्याण और प्रशाशनिक दृष्टि से यदि ईमानदारी पूर्ण काम करने की मनसा होती तो इन बड़े ब्लॉकों का परिसीमन कर छोटी ब्लॉक इकाईयों का गठन कर लिया गया होता। जैसे इस क्षेत्र में रिखणीखाल ब्लाक भी बहुत बड़ा है इस ब्लॉक के एक हिस्से के लोग इस नए जिले की मांग में लगातार शामिल हो रहे हैं जबकि दूसरे हिस्से के लोग कोरद्वार जिले की मांग में बहुत सक्रिय रहे। वे कोटद्वार के बजाय दूसरे जिले के पक्षधर नहीं हैं। इसी प्रकार थैलीसैण और बीरोंखाल ब्लॉक भी बड़े हैं जिनका परिसीमन किया जाना समय की मांग कही जा सकती है।
जिस प्रकार पौड़ी जिले के यह ब्लॉक विकास की दृष्टि से बहुत पिछड़े हैं उसी प्रकार इसके नैनीडांडा और बीरोंखाल ब्लॉक की सीमा से लगे अल्मोड़ा जिले के तीन ब्लॉक भी विकास की दृष्टि से बहुत पिछड़े हैं । नए जिले की स्थापना की मांग में यदि कुमाऊं के तीन ब्लॉकों को भी जोड़ दिया जाय और इसका मुख्यालय इन ब्लॉकों के केंद्रीय स्थल में स्थापित कर दिया जाय तो यहाँ विकास की अपार संभावनाएं उत्पन्न होती हैं।
यहाँ एक अहम मुद्दे को समाज के समुख उठाना जरूरी समझता हूँ। वर्तमान में बीरोंखाल ब्लॉक की सीमा तीन विधानसभा क्षेत्रों में बंटी हुयी हैं। ब्लॉक की सीमा क्षेत्र के इस प्रकार बंटवारा होने के कारण और तीन विधानसभाओं के प्रत्येक का अंतिम छोर होने के कारण इस ब्लॉक में क्षेत्रीय प्रतिनिधि पहुँच ही नहीं पाते। वर्तमान में इस ब्लॉक की सीमा क्रमशः चौबट्टा खाल विधानसभा, श्रीनगर विधानसभा तथा लैंसडोन विधानसभा में आती हैं। वर्तमान परिस्थिति से ऐसा लगता है कि विधानसभाओं के परिसीमन के दौरान इस क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने किसी भी प्रकार के विकल्प नहीं भरे होंगे नहीं तो इस प्रकार की स्थिति नहीं बनती।
एक पृथक जिला इकाई की मांग और उसके गठन की प्रक्रिया में कई इस प्रकार के बिंदु होते हैं जिनपर गहनता से मंथन नहीं हो पाता जिससे कई बुनियादी प्रक्रियायें पीछेे छूट जाती हैं जिला आंदोलनकारियों को इस प्रकार के बुनियादी छोटे छोटे बिन्दुओं का ध्यान रखना होगा क्योंकि जिला या राज्य गठन के लिए बनाई गयी कमेटी का निर्णय भी जिला या राज्य आंदोलनकारियों के या क्षेत्रीय प्रतिनिधियों के समन्वय के आधार पर ही लिए जाते हैं।
यदि जिले की मांग उठ रही है तो एक दिन निश्चित ही अलग जिला बनेगा परन्तु उसके बाद उसकी सीमा उसका मुख्यालय जिला योजना के अंतर्गत आने वाली योजनाओं के सभी विभाग तथा जिले में संचालित होने वाली केंद्रीय योजनाओं के कार्यालय के साथ साथ सभी ब्लॉक मुख्यालयों से संपर्क मार्ग व परिवहन सुबिधायें आदि पर विचार व स्थापित करना अनिवार्य हो जाता है इन सब के स्थापना के बाद ही पृथक जिला इकाई स्वतंत्र रूप से काम करने लगेगी।
अलग जिला इकाई के लिए छिडे इस आंदोलन से उन सभी पिछड़े ब्लॉकों के निवाशियों को लाभ मिल पायेगा जो वर्षो से उस लाभ से बंचित हैं। जिले का बड़ा होना व जिला मुख्यालय से अधिक दूरी होने के कारण जो क्षेत्र विकास की दौड़ में बहुत पिछड़ चुके हैं उन छेत्रौ को एक जिला इकाई के रूप में स्थापित करना उस प्रदेश सरकार की नैतिक जिम्मेदारी होती है परंतु उत्तराखंड में सरकार बनने वालौं की डिक्शनरी में नैतिक शब्द कहीं है ही नहीं । तो किस प्रकार वै सूबे की जनता के साथ नैतिकता का प्रयोग कर जनता को उसका अधिकार दिलाएंगे।
इस वैज्ञानिक युग में उत्तराखंड के लोग आज भी भोले भाले हैं वे चुनाव लड़ने वाले कुटिल लोगों की बातों पर बहुत जल्दी विश्वास कर लेते हैं और उन्हीं को वोट देकर पांच साल का राजा बना देते हैं। उत्तराखंड में इस प्रकार के कई आन्दोलन दुःखी जनता द्वारा अपने चरम पर पहुंचाए गये परंतु क्या कभी किसी नेता ने जनता की मांग के पक्ष में अपनी पार्टी अपनी सरकार का बीटो कर विधानसभा या संसद से वाक आउट किया।उत्तराखंड के किसी नेता ने अपनी छेत्र की जनता के खातिर शायद ही कभी इस तरह का काम किया होगा। संसद व विधानसभा में ये लोग फोन पर खेलते चना काजू बादाम खाते या ऊंघते जम्हाई लेते या बैठे बैठे सो जाते दिखे गये हैं।
वास्तव में बार बार संसद या विधानसभा पंहुचने वाले यह कुटिल लोग जनता को निरीह मूर्ख समझते हैं इनका केवल एक ही काम होता है अपने चमचौं खिदमद दारौं एजेंटों और फाइनेन्सरौं को खुश करना और यही लोग जनता के बीच र्यूमर फैलाते हैं अपनी वोट खराब मत करना वह जीत रहा है उसी को वोट देना। आखिर वही नेता अपनी कुटिल चाल से दुबारा जीत जाता है।
कई उदाहरण यक्ष प्रश्न बनकर उत्तराखंड की जनता के सामने हैं जिनको उन्हीं द्वारा हल किया जाना है। उसके बाद ही इस तरह की बुनियादी समस्याओं का समाधान हो सकेगा।