Uttarakhand

उत्तराखण्ड का बहुमूल्य उत्पाद मडुंवा / कोदा

तीन हज़ार साल पूर्व का है मंडुवे का इतिहास

डॉ.राजेन्द्र डोभाल 

अनाजों में राजा माना जाने वाला मंडुवा आज से ही नहीं ऋषि मुनियों के काल से ही अपने महत्वपूर्ण गुणों के लिए जाना जाता है। भारत वर्ष में मंडुवे का इतिहास 3000 ई0पूर्व से है। पाश्चात्य की भेंट चढनें वाले इस अनाज को सिर्फ अनाज ही नही अनाज औषधि भी कहा जा सकता है। इन्ही अनाज औषधीय गुणों के कारणः वापस आधुनिक युग में इसे पुनः राष्ट्रीय एंव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थान मिलने लगा है और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय journals तथा मैग्जीन्स इसे आज पावर हाउस नाम से भी वैज्ञानिक तथा शोध जगत में स्थान दे रहे है। इसका वैज्ञानिक नाम इल्यूसीन कोराकाना जो कि पोएसी कुल का पौधा है। इसे देश दुनिया में विभिन्न नामों से जाना जाता है। जैसे कि अंग्रजी में प्रसिद्व नाम फिंगर मिलेट, कोदा, मंडुवा, रागी, मारवा, मंडल नाचनी, मांडिया, नागली आदि।

भारत मे मडुवें की मुख्य रुप से 2 प्रजातियां पायी जाती है जिसे Eleusine indica जंगली तथा Eleusine coracana प्रमुख रुप से उगाई जाती है, जो कि सामान्यतः 2,300 मीटर (समुद्र तल से) की ऊंचाई तक उगाया जाता है। मंडवें की खेती बहुत ही आसानी से कम लागत, बिना किसी भारीभरकम तकनीकी के ही सामान्य जलवायु तथा मिटटी में आसानी से उग जाती है। मडुवा C4 कैटेगरी का पौधा होने के कारण इसमें बहुत ही आसानी से प्रकाश संश्लेषण हो जाता है तथा दिनरात प्रकाष संश्लेषण कर सकता है। जिसके कारण इसमे चार कार्बन कमपाउड बनने की वजह से ही मंडुवे का पौधा किसी भी विषम परिस्थिति में उत्पादन देने की क्षमता रखता है और ईसी गुण के कारण इसे Climate Smart Crop का भी नाम भी दिया गया है। कई वैज्ञानिक अध्ययनो के अनुसार यह माना गया है की मडुवा में गहरी जडों की वजह से सुखा सहने करने की क्षमता तथा विपरीत वातावरण जहां वर्षा 300mm से भी कम पाई जाती है। वस्तुतः सभी Millets में Seed coat, embryo तथा Endosperm आटे के मुख्य अवयव होते है। जहां तक मडुवा का वैज्ञानिक विश्लेषण है कि मडुवे के Multilayered seed coat (5 layers) पाया जाता है जो इसे अन्य Millet से Dietary Fiber की तुलना में सर्वश्रेश्ठ बनाता है। FAO के 1995 के अध्ययन के अनुसार मंडुवे में Starch Granules का आकार भी बडा (3से 21µm) पाया जाता है जो इसे Enzymatic digestion के लिए बेहतर बनाता है।

यद्यपि मंडुवे की उत्पति इथूपिया हॉलैंड से माना जाता है लेकिन भारत विश्व का सबसे ज्यादा मडुवा उत्पादक देश है, जो विश्व मे 40 प्रतिशत का योगदान रखता है तथा विश्व का 25प्रतिशत सर्वाधिक क्षेत्रफल भारत में पाया जाता है। भारत के अलावा मंडवे की खेती प्रतिशतमे अफ्रीका से जापान और ऑस्ट्रेलिया तक की जाती है। दुनिया में लगभग 2.5 मिलियन टन मंडुवे का उत्पादन किया जाता है। भारत में मुख्य फसलों मे शामिल मंडुवे की खेती लगभग 2.0 मिलियन हेक्टेयर पर की जाती है जिसमे औसतन 2.15 मिलियन टन मंडुवे का उत्पादन होता है जो कि दुनिया के कुल उत्पादन का लगभग 40 से 50 प्रतिशत है।

पोषक तत्वों से भरपूर मंडुवे मे औसतन 329 किलो0 कैलोरी, 7.3 ग्राम प्रोटीन, 1.3 ग्राम फैट, 72.0 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 3.6 ग्राम फाइबर, 104 मि0ग्राम आयोडीन, 42 माइक्रो ग्राम कुल कैरोटीन पाया जाता है। इसके अलावा यह प्राकृतिक मिनरल का भी अच्छा स्रोत है। इसमें कैल्शियम 344Mg तथा फासफोरस 283 Mg प्रति 100 ग्राम में पाया जाता है। मंडंवे में Ca की मात्रा चावल और मक्की की अपेक्षा 40 गुना तथा गेहु के अपेक्षा 10 गुना ज्यादा है। जिसकी वजह से यह हडिडयों को मजबूत करने में उपयोगी है। प्रोटीन , एमिनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट तथा फीनोलिक्स की अच्छी मात्रा होने के कारण इसका उपयोग वजन करने से पाचन शक्ति बढाने में तथा एंटी एजिंग में भी किया जाता है। मंडुवे का कम ग्लाइसिमिक इंडेक्स तथा ग्लूटोन के कारण टाइप-2 डायविटीज में भी अच्छा उपयोग माना जाता है जिससे कि यह रक्त में शुगर की मात्रा नही बढने देता है।

अत्यधिक न्यूट्रेटिव गुण होने के कारण मंडवे की डिंमाड विश्वस्तर पर लगातार बढती जा रही है जैसे कि आज यू0एस0ए0, कनाडा, यू0के०, नॉर्वे, ऑस्ट्रेलिया, ओमान] कुवैत तथा जापान में इसकी बहुत डिमांड है। भारत के कुल निर्यात वर्ष 2004-2005 के आकडों के अनुसार 58 प्रतिशत उत्पादन सिर्फ कर्नाटक में होता है। कर्नाटक मे लगभग 1,733 हजार टन जबकि उत्तराखण्ड में 190 हजार टन उत्पादन हुआ था जबकि 2008-2009 में भारत के कुल 1477 किलोग्राम हैक्टेयर औसत उत्पादन रहा। अनाज के साथ-साथ मडवे को पशुओ के चारे के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं जो कि लगभग 3 से 9 टन/हैक्टेयर की दर से मिल जाता है।

वर्ष 2004 में मंडुवे के बिस्किट बनाने तथा विधि को पेटेंट कराया गया था तथा 2011 में मंडुवे के रेडीमेड फूड प्रोडक्टस बनाने कि लिए पेटेन्ट किया गया था। दुनिया भर में मंडुवे का उपयोग मुख्य रूप से न्यूट्रेटिव डाइट प्रोडक्ट्स के लिए किया जाता है। एशिया तथा अफ़्रीकी देशो में मंडुवे को मुख्य भोजन के रूप में खूब इस्तेमाल किया जाता है जबकि अन्य विकिसत देशो में भी इसकी मुख्य न्यूट्रेटिभ गुणों के कारण अच्छी डिमांड है और खूब सारे फूड प्रोडक्टस जैसें कि न्यूडलस, बिस्किट्स, ब्रेड, पास्ता आदि मे मुख्य अवयव के रूप मे उपयोग किया जाता है। जापान द्वारा उत्तराखण्ड से अच्छी मात्रा में मंडवे का आयात किया जाता है।

इण्डिया मार्ट में मडुवा 30 से 40 रू0 प्रति कि0ग्राम की दर से बिक रहा है। 26 अगस्त 2013 के द टाइम्स ऑफ इण्डिया के अनुसार इण्डिया की सबसे सस्ती फसल (मडुवा) इसके न्यूट्रिशनल गुणों के कारण अमेरिका में सबसे महंगी है। मंडुवा अमेरिका मे भारत से 500 गुना मंहगा बिकता है। यू0एस0ए0 मे इसकी कीमत लगभग 10US डॉलर प्रति किलोग्राम है जो कि यहां 630 रू0 के बराबर है। जैविक मडुवे का आटा बाजार में 150 किलोग्राम तक बेचा जाता है। भारत से कई देशो -अमेरीका, कनाडा , नार्वे, ऑस्ट्रेलिया, कुवैत, ओमान को मंडुवा निर्यात किया गया। केन्या में भी बाजरा तथा मक्का की अपेक्षा मंडुवे की कीमत लगभग दुगुनी है जबकि यूगाण्डा में कुल फसल उत्पादित क्षेत्रफल के आधें में केवल मंडुवे का ही उत्पादन किया जाता है। जबकि भारत में इसका महत्व निर्यात की बढती मांग को देखते हुए विगत 50 वर्षो से 50 प्रतिशत उत्पादन मे बढोतरी हुयी है जबकि नेपाल में मंडुवा उत्पादित क्षेत्रफल 8 प्रतिषत प्रतिशत की दर से बढ रहा है।

चूँकि उत्तराखण्ड प्रदेश का अधिकतम खेती योग्य भूमी असिंचित है तथा मडुवा असिंचित देशो मे उगाये जाने के लिये एक उपयुक्त फसल है जिसका राष्ट्रीय एवम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न पोष्टिक उत्पाद बनाने मे प्रयोग किया जाता है। मंडुवा प्रदेश की आर्थिकी का बेहतर स्रोत बन सकता है।

(लेखक डॉ. राजेंद्र डोभाल, विज्ञान एवम प्रौद्योगिकी परिषद्  उत्तराखंड के महानिदेशक हैं )

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