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उत्तराखंड की जनता की तरह नेता भी कर गए पहाड़ से पलायन

राजेन्द्र जोशी 

नवी मुम्बई :  उत्तराखंड राज्य में पलायन एक बड़ा मुद्दा बन गया है यहाँ के बेरोजगारों ने जहाँ रोजगार की तलाश में  मैदान की तरफ रुख किया है तो वहीँ यहाँ के नेताओं ने भी पहाड़ को धत्ता बताते हुए मैदानी विधानसभाओं की तरफ छलांग लगायी है।  कहने को तो उत्तराखंड में हर चुनाव में बेरोजगारी मुद्दा बनती है लेकिन हालात अब तक जस के तस हैं। यहां के पहाड़ों में आज गांवों के गांव खाली नजर आते हैं जिसके चलते ऐसे गांवों की यह संख्या हज़ार के ऊपर जा पहुंची है। सरकारों द्वारा पहाड़ में ही रोजगार के साधन मुहैया न किये जाने के कारण ज्यादातर लोगों को रोज़गार की तलाश के लिए  सूबे के गांवों को छोड़ तराई के  इलाकों में जाने के लिए मजबूर होना पड़ता रहा है। 

अब तक जिस भी नेता या पार्टी ने इस मसले को सुलझाने का वादा किया है उत्तराखंड की जनता ने उसे सिर आंखों पर बिठाया है। जनता के समर्थन से चप्पल पहनकर गलियों की खाक छानने वाले नेता महंगी कारों में तो घूमने लगे लेकिन पलायन नहीं रुका।  राज्य के ज्यादातर नेता चुनाव जीतने के बाद गांवों को छोड़ मैदान को ही अपना कर्मक्षेत्र बनाकर यही से अपनी चुनावी जमीन तलाशने लगे हैं यही कारण है कि पहाड़ के लोग अब अपने को ठगा हुआ महसूस करने लगे हैं। 

उत्तराखंड की सियासत के वर्तमान में इस ट्रेंड की सबसे बड़ी मिसाल खुद मुख्यमंत्री हरीश रावत हैं। इनसे पहले खंडूड़ी भी अपने  गृह क्षेत्र पौड़ी  को छोड़ कोटद्वार की तरफ पलायन कर गए थे वहीँ  डॉ.रमेश पोखरियाल निष्णाक ने भी कर्णप्रयाग विधानसभा को छोड़ हरिद्वार की तरफ पलायन किया है तो भगत सिंह कोशियारी भी तराई में अपने लिए जमीन तलाश रहे है जबकि भाजपा के ही प्रकाश पन्त भी तराई में तवज्जो न मिलने के कारन एक बार फिर पिथौड़ा गढ़ से भाग्य आजम रहे हैं। जहाँ तक हरीश रावत की बात की जाय तो पहाड़ की सियासत और मुद्दों पर बात करने का कोई मौका ना चूकने वाले रावत ने चुनाव लड़ने के लिए ऐसी सीटों को चुना है, जिनका पहाड़ों से दूर-दूर तक  कोई वास्ता नहीं है।  वे  किच्छा और हरिद्वार-ग्रामीण सीट से विधानसभा के उम्मीदवार के रूप में मैदान में  हैं। 

सूबे के लोग मान रहे हैं कि अगर हरीश रावत   मैदान की सीटों  से चुनाव जीतते हैं तो उनकी तवज्जो सबसे पहले अपने विधानसभा हलके की ओर होगी।  यानी पहाड़ों की जनता एक बार फिर नजरअंदाज होगी। वहीँ इस बार रावत के अलावा यशपाल आर्य ने भी अपने बेटे को तराई से ही टिकट दिलवाया है। उनके अलावा पहाड़ से ताल्लुक रखने वाले हरक सिंह रावत ने भी रुद्रप्रयाग से  पलायन कर कोटद्वार सीट को चुना है। वहीँ कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाघ्याय भी टिहरी को छोड़ सहसपुर जैसे मैदानी इलाके से चुनाव मैदान में उतरे गए हैं। ऐसे में देखने वाली बात अब यह होगी कि पहाड़ की बात करके चुनाव  जीतने के बाद  सूबे के ये नेता राज्य के पर्वतीय इलाकों की ओर कितना ध्यान देंगे, या फिर पहाड़वासियों को एक बार फिर नेताओं की तरह पहाड़  मैदान की तरफ पलायन करना होगा।  

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