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तीन तलाकः तीन टांग की कुर्सी

  • सिर्फ 246 सदस्यों ने इसके पक्ष में वोट किया 

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

तीन तलाक के विधेयक को लोकसभा ने दुबारा पास कर दिया है। यह एक गुनाह बेलज्जत है, क्योंकि इसे लोकसभा के आधे सदस्यों का भी समर्थन नहीं मिला। सिर्फ 246 सदस्यों ने इसके पक्ष में वोट दिया। ज्यादातर दलों ने इसका बहिष्कार किया। पिछले साल भी इस विधेयक को इसी तरह पास कर दिया गया था लेकिन वह राज्यसभा में पिट गया था।

हमारी सर्वज्ञ सरकार को कुछ अकल आई और उसने इसमें कई जरुरी संशोधन कर दिए। अब भी यह विधेयक तीन टांग की कुर्सी बना हुआ है। हमारे सर्वज्ञजी की सरकार की काबिलियत का हाल यह है कि वह जो भी शेरवानी बनाती है, वह तब तक पहनने लायक नहीं होती, जब तक कि उसमें दर्जनों थेगले न लग जाएं। तीन तलाक जैसा हाल नोटबंदी, जीएसटी और फर्जिकल स्ट्राइक का पहले ही हम देख चुके हैं।

इस तीन तलाक कानून में यह प्रावधान अभी तक बना हुआ है कि जिस मियां ने अपनी बीवी को तीन तलाक बोला, वह तुरंत जेल की हवा खाएगा लेकिन सर्वज्ञजी से पूछिए कि वह बीवी और वे बच्चे क्या खाएंगे ? उनके भरण-पोषण की इस कानून में क्या व्यवस्था है ? और तीन साल की जेल ? इसका क्या मतलब है ? मामला है, दीवानी और सजा है, फौजदारी ! क्या खूब ? तीन तलाक गैर-कानूनी है, इसीलिए मियां को बीवी का मियां ही बने रहना पड़ेगा लेकिन बीवी घर में रहेगी और मियां जेल में ! ये कानून है या कानून का मजाक ? इसका मतलब यह नहीं कि तीन तलाक की कुप्रथा खत्म नहीं होनी चाहिए। जरुर होनी चाहिए।

मोदी सरकार को बधाई कि उसने यह पहल की लेकिन असली सवाल यह है कि यह इतने पुण्य का काम है और इस पर संसद में दंगल हो रहा है ? क्यों हो रहा है ? सर्वसम्मति क्यों नहीं हो रही है ? क्योंकि सरकार इस तीन टांग की कुर्सी पर बैठकर दो निशाने लगा रही है। एक तो वह मुस्लिम महिलाओं की सहानुभूति बटोरना चाहती है और दूसरा, अपने हिंदू वोटरों को वह यह बताना चाहती है कि देखो, हमने मुसलमानो को कैसे तान दिया है।

इसीलिए जब पहली बार यह विधेयक गिरा तो सरकार ने अध्यादेश जारी कर दिया था। उसने जानबूझ कर साल भर खो दिया। इस बीच यह विधेयक यदि संसद की प्रवर समिति के पास चला जाता तो यह सचमुच एक सार्थक कानून बन जाता और यह सर्वसम्मति से पारित हो जाता। सरकार की पगड़ी में एक नया मोरपंख लग जाता। 

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