शहद चटाने की परंपरा बन रही खतरा — किडनी और लीवर पर कर रहा हमला

शहद चटाने की परंपरा बन रही खतरा — किडनी और लीवर पर कर रहा हमला
शहद चटाने का रिवाज बिगाड़ रहा नवजातों की सेहत का मिजाज, किडनी और लीवर पर हमलावर
देहरादून।
एक वर्ष से कम उम्र के बच्चों को शहद चटाना उनकी सेहत के लिए घातक बन रहा है। शहद में मौजूद माइक्रो ऑर्गेनिज्म बैक्टीरिया नवजात की आंत, किडनी और लीवर पर सीधे हमला कर रहे हैं। इससे बच्चे शिशु बोटुलिज्म नाम की बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। दून अस्पताल के बाल रोग विभाग की ओपीडी में प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से हर सप्ताह इससे पीड़ित करीब 15 बच्चे पहुंच रहे हैं।
शिशु बोटुलिज्म बीमारी की गंभीरता को पहचानने के लिए गत मार्च में एलीवेट सिरीज की ओर से एक अध्ययन भी जारी किया गया था। इसमें बीमारी से जुड़े कई खुलासे किए गए थे। अध्ययन के अनुसार फिलिस्तीन स्थित वेस्ट बैंक के 10 शहरों को इस शोध में शामिल गया। यह अध्ययन 469 अभिभावकों पर किया गया। इसमें 89 प्रतिशत महिलाएं व अन्य पुरुष हैं। इसमें यह बात सामने आई कि 62 प्रतिशत अभिभावक इस बात को जानते थे कि शहद और बोटुलिज्म के बीच कुछ संबंध है लेकिन यह गंभीर बीमारियों का कारण है इस बात से अनभिज्ञ थे। जबकि 68 प्रतिशत अभिभावक इस बात से अनभिज्ञ थे कि शहद का बैक्टीरिया शिशु बोटुलिज्म बीमारी का कारण है।
बोटुलिज्म बीमारी जूझ रहे हर सप्ताह करीब 15 आ रहे
विशेषज्ञों के अनुसार शिशुओं में बोटुलिज्म बीमारी का मुख्य कारण अभिभावकों में इसके प्रति कम जागरूकता है। वहीं अब शिशु बोटुलिज्म से जूझने वाले नवजात उत्तराखंड के अलग-अलग हिस्सों में भी सामने आ रहे हैं। दून अस्पताल के बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार बताते हैं कि उनकी ओपीडी में हर सप्ताह करीब 15 ऐसे नवजात आ रहे हैं जो शिशु बोटुलिज्म बीमारी से जूझते हैं। उनको यह बीमारी शहद चटाने से हो रही है। इतना ही नहीं नवजातों को शहद चटाने से दौरा पड़ने का भी खतरा बढ़ रहा है। डॉ. कुमार ने बताया कि नवजातों को शहद चटाने का पुराना रिवाज है।
लकवे का भी बढ़ सकता है खतरा
चिकित्सक डॉ. कुमार के अनुसार शहद में मौजूद बैक्टीरिया नवजातों की आंतों में जाकर जहरीले पदार्थ बनाते हैं। यह जहर शिशु की नसों पर हमला करता है। इससे उसकी मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं। इससे नवजात में लकवा का खतरा बढ़ जाता है। साथ ही श्वसन तंत्र भी प्रभावित होता है। संक्रमण के बाद आंतों की गतिशीलता पर भी इसका गहरा असर पड़ता है।
लक्षण
बच्चे का कमजोर तरीके से रोना
मांसपेशियों में कमजोरी
पलकें झुकना
चेहरे की अभिव्यक्ति में कमी
दूध और पानी को कमजोर तरीके से चूसना
बचाव के उपाय
1- नवजात को शहद न खिलाएं।
2- चिकित्सकीय सलाह से तुरंत एंटीटॉक्सिन लें।
3- उन्हें सिर्फ मां का दूध ही पिलाएं।