UTTARAKHAND

कांग्रेस के लिए ऑक्सीजन बने जो कल तक थे भाजपा के मुद्दे

कांग्रेस को मिल रहा दलबदल का सबसे ज्यादा फायदा 

विकास गुसाईं
देहरादून : प्रदेश में पूरे पांच साल घोटालों की गूंज रही। स्वाभाविक है कि उत्तराखंड विधानसभा चुनाव नजदीक आते-आते अब इन्हें भुनाने का प्रयास हो रहा है। यह बाद दीगर है कि भाजपा की ओर से जो घोटाले शुरुआती दौर में उठाए गए, अब बदले हुए राजनीतिक समीकरण में वे कांग्रेस के मुद्दे बन गए हैं। कहा जा सकता है कि भाजपा के तरकश के कुछ तीर खुद ब खुद निकल कर कांग्रेस की कमान में आ गए हैं। भाजपा भ्रष्टाचार व घोटाले को चुनाव में मुख्य हथियार के रूप में प्रयोग कर रही है, ऐसे में कांग्रेस के हाथ में भी यह हथियार आने से मुकाबला रोचक नजर आ रहा है। क्योंकि भाजपा जिन-जिन नेताओं के  भ्रष्टाचारों को लेकर पिछले कुछ दिन तक कांग्रेस पर निशाना लगाया करती थी आज वे सभी भाजपा के बगलगीर बन चुके हैं …

आपदा राहत में लापरवाही व मुआवजा राशि का वितरण
वर्ष 2013 में आई आपदा निश्चित तौर पर प्रदेश के लिए एक बड़ा झटका थी। आपदा में राहत व बचाव कार्यों में सरकार की अनदेखी इतना बड़ा मुद्दा बना कि सरकार को सदन के भीतर अविश्वास मत का सामना तक करना पड़ा। कांग्रेस सरकार में नेतृत्व परिवर्तन हुआ। इसके बाद सरकार पर आपदा पुनर्निर्माण और मुआवजा राशि में बंदरबांट के आरोप लगे। आरटीआइ के जरिये जुटाई गई जानकारी में आपदा के दौरान सरकारी कर्मचारियों के बिल भुगतान में अनियमितताएं सामने आईं। भाजपा ने इस मुद्दे पर कई बार विधानसभा की कार्यवाही को बाधित किया। इस मसले पर हुई जांच के बाद मुख्य सचिव ने सरकार को क्लीन चिट दे दी थी। हालांकि, तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा अब भाजपा में आ चुके हैं। इस कारण इस मुद्दे पर दोनों ही दल एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं।

आबकारी नीति पर उठे सवाल
प्रदेश में वर्ष 2015 में शराब नीति बदलने के साथ ही इस पर जबरदस्त हंगामा हुआ। इस दौरान मुख्यमंत्री के सचिव मोहम्मद शाहिद का एक स्टिंग भी सार्वजनिक हुआ, जिसमें वह शराब नीति को प्रभावित करने के लिए 25 लाख रुपये की डिमांड करते नजर आए। सरकार ने शराब वितरण की व्यवस्था निजी कंपनियों के हाथ से हटाकर कृषि मंडी को सौंपी। स्थिति यह बनी कि बाजार से तमाम नामी ब्रांड गायब हो गए। इस दौरान एक ब्रांड विशेष ने बाजार में अपना वर्चस्व बनाए रखा। इस ब्रांड से सीधे मुख्यमंत्री का नाम जोड़ा गया। स्थिति यह हुई कि आबकारी विभाग अपने राजस्व के लक्ष्य को भी हासिल नहीं कर पाया। हालांकि, सरकार ने तर्क दिया कि शराब माफियाओं को बाहर करने और मंडी का राजस्व बढ़ाने के लिए यह कदम उठाया गया। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद यह नीति परिवर्तित हुई।

सरकारी शह पर अवैध खनन
प्रदेश में खनन पर लगी रोक हटने से पहले और उसके बाद यहां जम कर अवैध खनन हुआ। सबसे अधिक अवैध खनन के मामले ऐसी जगहों पर देखने को मिले जहां पहले से ही वैध खनन के लिए पट्टे जारी किए गए थे। इन स्थानों पर स्वीकृत से अधिक मात्रा में खनन को अंजाम दिया गया। सरकार से जुड़े लोगों पर अवैध खनन को बढ़ावा देने के आरोप लगे। खनन रोकने के लिए गए अधिकारियों पर हमले की कई घटनाएं भी सामने आई। बावजूद इसके न तो अवैध खनन कम हुआ और न ही सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने वाले लोग पुलिस के हाथ लगे। अवैध खनन रोकने के लिए एक टॉस्क फोर्स तो गठित हुई लेकिन शुरुआती दौर में तेजी से काम करने के बाद इसकी रफ्तार भी सुस्त पड़ गई। इस दौरान टॉस्क फोर्स पर एकतरफा कार्यवाही के आरोप भी लगे।

जमीनों की खुर्द-बुर्द
भूमि घोटालों को लेकर पूरे पांच साल तक आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला। शुरुआती दौर में सरकार पर सिडकुल की भूमि खुर्द बुर्द करने के आरोप लगे। इसके बाद ऋषिकेश में विस्थापितों के लिए आवंटित जमीन को निजी हाथों के बेचने के मामले सामने आए। इस दौरान एक कैबिनेट मंत्री पर भी देहरादून में निजी जमीन को कब्जाने का माला उठा। इन तीनों ही मसलों पर विधानसभा में जम कर हंगामा हुआ। इसके बाद नैनीसार में एक औद्योगिक समूह को स्कूल के लिए सरकारी जमीन के आवंटन पर भी सवाल उठे। स्मार्ट सिटी के लिए प्रेमनगर के पास जमीन चयन में कांग्रेस के एक प्रभावशाली परिवार को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाया गया। यह बात दीगर है कि इनमें से चुनिंदा की ही जांच शुरू हुई और फिलहाल सबकी फाइलें ठंडे बस्ते में पड़ी हैं।

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